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शनिवार, 31 जुलाई 2021

हास्य रचना: मेरी श्वास-श्वास में कविता

हास्य रचना:
मेरी श्वास-श्वास में कविता
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मेरी श्वास-श्वास में कविता, छींक-खाँस दूँ तो हो गीत।
युग क्या जाने खर्राटों में, मेरे व्याप्त मधुर संगीत।

पल-पल में कविता कर देता, क्षण-क्षण में मैं लिखूँ निबंध।
मुक्तक-क्षणिका क्षण-क्षण होते, चुटकी बजती काव्य प्रबंध।

रस-लय-छंद-अलंकारों से लेना-देना मुझे नहीं।
बिंब-प्रतीक बिना शब्दों की, नौका खेना मुझे यहीं।

धुंआधार को नाम मिला है, कविता-लेखन की गति से।
शारद भी चकराया करतीं हैं; मेरी अद्भुत मति से।

खुद गणपति भी हार गए, कविता सुन लिख सके नहीं।
खोजे-खोजे अर्थ न पाया, पंक्ति एक बढ़ सके नहीं।

एक साल में इतनी कविता, जितने सर पर बाल नहीं।
लिखने को कागज़ इतना हो, जितनी भू पर खाल नहीं।

वाट्स एप को पूरा भर दूँ, अगर जागकर लिख दूँ रात।
गूगल का स्पेस कम पड़े, मुखपोथी की क्या औकात?

ट्विटर, वाट्स एप, मेसेंजर, मुझे देख डर जाते हैं।
वेदव्यास भी मेरे सम्मुख, फीके से पड़ जाते हैं।

वाल्मीकि भी पानी भरते, मेरी प्रतिभा के आगे।
जगनिक और ईसुरी सम्मुख, जाऊँ तो पानी माँगे।

तुलसी सूर निराला बच्चन, से मेरी कैसी समता?
अब का कवि खद्योत सरीखा, हर मेरे सम्मुख नमता।

किसमें क्षमता है जो मेरी, प्रतिभा का गुणगान करे?
इसीलिये मैं खुद करता हूँ, धन्य वही जो मान करे।

विन्ध्याचल से ज्यादा भारी, अभिनंदन के पत्र हुए।
स्मृति-चिन्ह अमरकंटक सम, जी से प्यारे लगें मुए।

करो न चिता जो व्यय; देकर मान पत्र ले, करूँ कृतार्थ।
लक्ष्य एक अभिनंदित होना, इस युग का मैं ही हूँ पार्थ।
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७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com

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