शिव अनंत ज्यों नील नभ,
मिलता ओर न छोर।
विष पी अमृत बांटते,
नील कण्ठ तमखोर।।
*
घनगर्जन स्वर रुदन सम,
अश्रुपात बरसात।
रुद्र नाम दे भक्तगण,
सुमिरें कहकर तात।।
*
सुबह-सांझ की लालिमा,
बने नेत्र का रंग।
मिला नीललोहित विरुद,
अनगिन तारे संग।।
*
चंद्र शीशमणि सा सजा,
शशिशेखर दे नाम।
चंद्रनाथ शशिधर सदय,
हैं बालेंदु अकाम।।
*
महादेव महनीय हैं,
असुरेश्वर निष्काम।
देवेश्वर कमनीय को,
करतीं उमा प्रणाम।।
*
जलधर विषधर अमियधर,
ले त्रिशूल त्रिपुरारि।
डमरूधर नगनाथ ही,
काममुक्त कामारि।।
*
विश्वनाथ समभाव से,
देखें सबकी ओर।
कथनी-करनी फलप्रदा,
अमिट कर्म की डोर।।
*
जो बोया सो काट ले,
शिव का कर्म-विधान।
भेंट-चढ़ोत्री व्यर्थ है,
करते नजर नादान।।
*
महाकाल निर्मम निठुर,
भूले माया-मोह।
नहीं सत्य-पथ से डिगें,
सहते सती-विछोह।।
*
करें ओम् का जप सतत,
ओंकारेश्वर-भक्त।
सोमनाथ सौंदर्य प्रिय,
चिदानंद अनुरक्त।।
*
शूलपाणि हर कष्ट सह,
हॅंसकर करते नष्ट।
आपद से डरते नहीं,
जीत करें निज इष्ट।।
***
२२.१.२०१८, जबलपुर
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
सोमवार, 22 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें