चंदा को लग गया है,
ग्रहण मनाएं हर्ष।
चंदा अब मत दीजिए,
तब होगा उत्कर्ष।।
*
चंद्रग्रहण को देखकर,
चंद्रमुखी हैरान।
नीली-लाल अगर हुई,
कौन सके पहचान?
*
लगा टकटकी देखते,
चंद्रमुखी को लोग।
हुई लाल-पीली बहुत,
लगा क्रोध का रोग।।
*
संसद की अध्यक्ष भू,
रवि-शशि पक्ष-विपक्ष।
अनुशासन रखती कड़ा,
धरा सभापति दक्ष।।
*
बदल रहा है चंद्रमा,
तरह-तरह के रंग।
देख-देखकर हो रहा,
गिरगिट हैरां-दंग।।
***
३१.१.२०१८, जबलपुर
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 31 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें