कलम खामोश क्यों?
*
तीन-पांच कर रही है,
राजनीति दिन-रात।
जनप्रतिनिधि जन से करें,
घात कहें सौगात।।
देश मदहोश क्यों?
क़लम ख़ामोश क्यों?
*
अफसरशाही चूसती,
आमजनों का खून।
लोकतंत्र का खा रही,
भर्ता पल-पल भून।
देश बेहोश क्यों?
क़लम ख़ामोश क्यों?
*
धनी अधिक धनवान हो,
निर्धन अधिक गरीब।
सांसों-आसों को मिली,
निश-दिन हाय! सलीब।
शेर खरगोश क्यों?
कलम खामोश क्यों?
***
गोंडवाना एक्सप्रेस, बी ३, ५७
९.१.२०१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 9 जनवरी 2018
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