शिव-परिवार न जन्मना,
नहीं देह-संबंध.
स्नेह-भावना तंतुमय,
है अनादि अनुबंध.
.
शिवा-पुत्र शिव का नहीं,
शिव लें अपना मान.
शिव-सुत अपनातीं शिवा,
छिड़कें उस पर जान.
.
वृषभ-बाघ दुश्मन मगर,
संग भुलाकर बैर.
कुशल तभी जब मनाएँ,
सदा परस्पर खैर.
.
अमृत-विष शशि-सर्प भी,
हैं विपरीत स्वभाव.
किंतु परस्पर प्रेम से,
करते 'सलिल' निभाव.
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गजमुख गणपति स्थूल हैं,
कार्तिक चंचल-धीर.
कोई किसी से कम नहीं,
दोनों ही मति-धीर.
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गरल ताप को शांत कर,
बही नर्मदा धार,
शिव-तनया सोमात्मजा
दर्शन से उद्धार.
.
शिव न शत्रुता पालते,
रहते परम प्रसन्न.
रहते खाली हाथ पर,
होते नहीं विपन्न.
.
3.1.2018
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 3 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
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