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गुरुवार, 25 जनवरी 2018

muktika

मुक्तिका
घर में आग
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घर में आग लगानेवाला, आज मिल गया है बिन खोजे.
खुद को खुदी मिटानेवाला, हाय! मिल गया है बिन खोजे.
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जयचंदों की गही विरासत, क्षत्रिय शकुनी दुर्योधन भी
बच्चों को धमकानेवाला, हाथ मिल गया है बिन खोजे.
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'गोली' बना नारियाँ लूटीं, किसने यह भी तनिक बताओ?
निज मुँह कालिख मलनेवाला, वीर मिल गया है बिन खोजे.
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सूर्य किरण से दूर रखा था, किसने शत-शत ललनाओं को?
पूछ रहे हैं किले पुराने, वक्त मिल गया है बिन खोजे.
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मार मरों को वीर बन रहे, किंतु सत्य को पचा न पाते
अपने मुँह जो बनता मिट्ठू, मियाँ मिल गया है बिन खोजे.
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सत्ता बाँट रही जन-जन को, जातिवाद का प्रेत पालकर
छद्म श्रेष्ठता प्रगट मूढ़ता, आज मिल गया है बिन खोजे.
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अब तक दिखता जहाँ ढोल था, वहीं पोल सब देख हँस रहे
कायर से भी ज्यादा कायर, वीर मिल गया है बिन खोजे.
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२५.१.२०१८

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