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रविवार, 7 सितंबर 2025

हिंदी, सिंहली, भाषा सेतु, भारत, श्रीलंका, देवनागरी

हिंदी और सिंहली : एक अध्ययन   

                    हिंदी और सिंहली, दोनों ही भाषाएँ इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित हैं। श्रीलंका की मुख्य भाषा सिंहली, इंडो-आर्यन भाषा परिवार का अंग है।  सिंहली भाषा सीलोन (श्रीलंका) में राजा अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ अस्तित्व में आई। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में  भारतीय बौद्ध धर्म प्रचारक पाली/संस्कृत बोलते थे। उनके प्रारंभिक उपदेशों में पाली, संस्कृत, तमिल तथा अन्य स्थानीय बोलियों का मिश्रण होता था।  क्रमश: उन्होंने सिंहली को एक नई भाषा बना दिया। सिंहली व्याकरण, वर्णमाला और ध्वन्यात्मक संरचना तमिल से समानता रखती है। संस्कृत और पाली के प्रभाव के कारण सिंहली भाषा में बा, गा और फा को छोड़कर दोनों भाषाओं में अक्षरों की संख्या लगभग समान है। 

                    हिंदी भारत की एक प्रमुख भाषा है। दोनों भाषाओं की व्याकरणिक संरचना में  संस्कृत और पाली के प्रभाव के कारण कुछ समानताएँ हैं। हिंदी में पाली, संस्कृत, अरबी और उत्तर भारत, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि की स्थानीय बोलियों का प्रभाव  है। इसका कारण भाषिक क्षेत्रों में वैवाहिक संबंध, श्रमिक आप्रवासी तथा व्यापार-वाणिज्य है। हिंदी और सिंहली में कई ऐसे शब्द समान हैं जिनकी जड़ें संस्कृत और पाली में हैं। 

शब्द-भंडार:
                    सिंहली भाषा में पार्किएर्ट+ तमिल+ बाली+ मिस्री भाषाओं के शब्द अधिक हैं। हिंदी भाषा में अपभ्रंश, संस्कृत, उर्दू , पुर्तगाली, जापानी, अंग्रेजी आदि सहित विश्व की अनेक भाषाओं के शब्द हैं। दोनों भाषाओं में विज्ञान संबंधी विषयों के अध्ययन के लिए अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग क्रमश: बढ़ता जा रहा है। हिंदी-सिंहली तथासिंहली-हिंदी में जीवन के विविध आयामों से संबंधित साहित्य का अनुवाद कार्य किया जाए तो न केवल दो भाषाओं अपितु दो देशों के मध्य संबंध सुदृढ़ होंगे जिससे दोनों देशों में पर्यटन, शिक्षा, साहित्य तथा व्यापार-वाणिज्य को प्रातसहन मिलेगा और आर्थिक समृद्धि का पथ प्रशस्त होगा। 

समानताएँ:
                    हिंदी और सिंहली दोनों भाषाएँ इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित हैं, जो उनकी संरचना और शब्दावली में कुछ समानताएँ लाती है। दोनों भाषाओं पर संस्कृत और पाली भाषाओं का प्रभाव है, जिससे व्याकरण और शब्दावली में कुछ समानताएँ और कुछ भिन्नताएँ होना स्वाभाविक है। .

द्वि रूपता:
                    हिंदी और सिंहली दोनों में  साहित्यिक भाषा और सामान्य जन-जीवन या बाजार में बोली जाने वाली भाषा में अंतर होता है। हिंदी  में स्थानीय बोलिओं के प्रभाव इसकी बहुवर्णीय छटाओं (बुंदेली, बृज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मालवी, निमाड़ी, मारवाड़ी, मेवाड़ी आदि) को जन्म देता है।
बोलचाल की सिंहली साहित्यिक सिंहली से काफी अलग है।  

बोलचाल की सिंहली

मैंने किया = मामा / मांग कला।

हमने किया = अपी कला.

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = उम्बा काला।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = उम्बाला कला।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओया कला।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओयाला / ओयागोलो काला।

उसने किया = ईया कला.

उसने किया = ईया कला.

उन्होंने किया = इयाला / एगोलो काला।

वर्तमान काल

मैं करता हूँ = मामा / मांग कारणवा।

हम करते हैं = अपि कारणवा।

आप (एकवचन) करते हैं = ओया / उम्बा करणवा।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओयाला / उम्बाला करनवा।

वह करता है = एया कारणवा।

वह करती है = एया कारणवा।

वे करते हैं = इयाला / एगोलो करणवा।

भविष्य काल

मैं करूँगा = मामा कारणवा।

मैं कल कार चलाऊंगा = मामा / मांग हेता कार एका ड्राइव करानावा।

ठीक है, मैं कल कार चलाऊंगा = हरि, मामा / मांग हेता कार एका ड्राइव करनांग।

हम करेंगे = अपि कारणवा।

हम कल कार को पेंट करेंगे = अपी हेता कार एका पेंट करनावा।

चलो कल कार को पेंट करते हैं = Api heta Car eka Paint karamu.

आप (एकवचन) करेंगे = ओया कराई।

आप (बहुवचन) करेंगे = ओयाला / ओयागोलो कराई।

वह करेगा = ईया कराई।

वह करेगी = ईया कराई।

वे करेंगे = इयाला / एगोलो कराई।

भूतकाल

साहित्यिक सिंहली 

मैंने किया = मामा कलेमी.

हमने किया = अपी कालेमु.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = नुम्बा कालेही। (संपादन सुझाएँ)

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = नम्बला कालेहु। (संपादन सुझाएँ)

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओबा कालेही। (संपादन सुझाएँ)

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओबाला कालेहु। (संपादन सुझाएँ)

उसने किया = ओहु कालेया.

उसने किया = ईया कलाया.

उन्होंने किया = ओवुन कालोया / कलहा। 

ध्वनि:
                    सिंहली में, कुछ ध्वनियाँ (महाप्राण व्यंजन) हिंदी से अलग हैं। हिंदी के महाप्राण व्यंजन वे हैं जिनके उच्चारण में मुख से अधिक वायु निकलती है जबकि अल्प प्राण व्यंजनों का उच्चारण करते समय मुख से वायु प्रवाह कम होता है।  महाप्राण व्यंजन में सभी वर्ग (क, च, ट, त, प) का दूसरा और चौथा वर्ण तथा सभी ऊष्म वर्ण (श, ष, स, ह) शामिल हैं। इस प्रकार ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह और एक उच्छिप्त व्यंजन ढ़, हिंदी के १५ महाप्राण व्यंजन कहलाते हैं। सिंहली भाषा (sinhala) में महाप्राण व्यंजन में ध्वन्यात्मक अंतर को दर्शाने के लिए ऐतिहासिक रूप से मौजूद महाप्राण ध्वनियों को वर्तनी में दिखाया जाता है। आधुनिक सिंहली ध्वनियों में महाप्राण और अल्पप्राण ध्वनियों के बीच वास्तविक अंतर नहीं है, क्योंकि सभी ध्वनियों को शुद्ध अक्षरों से दर्शाया जा सकता है। कुछ व्यंजन समूहों को सिंहली में अनुमति दी जाती है, जैसे कि संस्कृत से लिए गए "प्रश्नाय" (praśnaya) शब्द में, लेकिन यह जटिल व्यंजन समूह ऋण शब्दों में ही मिलते हैं। सिंहली भाषा में महाप्राण व्यंजन का विचार मुख्य रूप से ऐतिहासिक वर्तनी और ध्वन्यात्मकताओं के संदर्भ में है, जबकि हिंदी में यह उच्चारण-आधारित अवधारणा है जिसमें अधिक वायु-प्रवाह के साथ उच्चारित होने वाले व्यंजन शामिल हैं। तमिल आदि भाषाओं में महाप्राण व्यञ्जन होते ही नहीं और अंग्रेजी आदि ऐसी भी भाषाएँ  हैं जिनमें महाप्राण और अल्पप्राण व्यञ्जन दोनों बोलनेवालों को एक जैसे प्रतीत होते हैं  

लिपि:
                    प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई देवनागरी और सिंहली लिपियाँ क्रमश: भारत और श्रीलंका में अलग-अलग भाषाओं के लेखन में प्रयुक्त होती तथा बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं। देवनागरी भारत की कई भाषाओं जैसे हिंदी, संस्कृत, मराठी और अनेक बोलियों) को लिखने में प्रयुक्त होती है, जबकि सिंहली श्रीलंका की आधिकारिक भाषा सिंहली को लिखने के काम आती है। दोनों लिपियाँ बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं और इनमें स्वर और व्यंजन होते हैं। भारत में किसी समय साक्षरता का पर्याय समझे जाने वाले कायस्थ समाज में प्रचलित कैथी आदि अन्य लिपियाँ समय के साथ काल के गाल में समा गईं जबकि मुगल और ब्रिटिश शासनकाल में प्रचाली हुई फारसी और रोमन लिपियाँ क्रमश: उर्दू और अंग्रेजी लेखन में प्रयुक्त हो रही हैं।  

                    देवनागरी प्राचीन भारत में पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक विकसित और ७वीं शताब्दी ईस्वी तक नियमित उपयोग में रही। देवनागरी लिपि, जिसमें ५२ अक्षर (१४ स्वर और ३८ व्यंजन) हैं, दुनिया में चौथी सबसे व्यापक रूप से अपनाई जाने वाली लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग १२० से अधिक भाषाओं के लिए होता है। भारतीय ही नहीं विश्व की लगभग सभी भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में संभव नहीं है, जब तक कि उनका आइट्राँस या अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत लिप्यंतरण वर्णमाला में विशेष मानकीकरण न किया जाए भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग होते हुए भी उच्चारण व वर्णक्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि उर्दू को छोड़कर वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों का परस्पर लिप्यंतरण आसानी से संभव है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौंदर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।

                    भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि अक्षरात्मक (सिलेबिक) लिपि है। लिपि की दृष्टि से "चित्रात्मक", "भावात्मक" और "भावचित्रात्मक" लिपियों के बाद "अक्षरात्मक" स्तर की लिपियों का विकास होना मान्य है।से लिपि की अक्षरात्मक अवस्था के बाद वर्णात्मक (अल्फाबेटिक) प्रणाली का विकास हुआ। ध्वन्यात्मक (फोनेटिक) लिपि सर्वकाधिक विकसित प्रणाली है। "देवनागरी" के वर्ण-अक्षर (सिलेबिल) स्वर भी हैं और व्यंजन भी।  "क", "ख" आदि सस्वर व्यंजन  केवल ध्वनियाँ नहींअपितु सस्वर अक्षर भी हैं। ग्रीक, रोमन आदि वर्णमालाएँ हैं। भारत की "ब्राह्मी" या "भारती" वर्णमाला की ध्वनियों में व्यंजनों का "पाणिनि" ने वर्णसमाम्नाय के १४ सूत्रों में जो स्वरूप परिचय दिया है, उसके विषय में "पतंजलि" (द्वितीय शताब्दी ई॰ पू॰) ने यह स्पष्ट कहा कि व्यंजनों में संनियोजित "अकार" स्वर का उपयोग केवल उच्चारण के उद्देश्य से है। वह तत्वतः वर्ण का अंग नहीं है। अत: देवनागरी लिपि की वर्णमाला तत्वतः ध्वन्यात्मक है, अक्षरात्मक नहीं।

                    सिंहली भाषा श्रीलंका में सर्वाधिक नागरिकों द्वारा बोली जानेवाली भाषा है। सिंहल द्वीप की विशेषता है कि उसमें बसनेवाली जाति और उस जाति द्वारा व्यवहृत होने वाली भाषा दोनों "सिंहल" हैं। अनेक भारतीय भाषाओं की लिपियों की तरह सिंहल भाषा की लिपि भी ब्राह्मी लिपि का ही परिवर्तित विकसित रूप हैं। सिंहल भाषा के दो रूप शुद्ध सिंहल तथा मिश्रित सिंहल हैं। शुद्ध सिंहल में  ३२  अक्षर अ, आ, ऍ, ऐ, इ, ई, उ, ऊ, ऒ, ओ, ऎ, ए क, ग ज ट ड ण त द न प ब म य र ल व स ह क्ष तथा अं हैं। सिंहल के प्राचीनतम व्याकरण ग्रन्थ सिदत्संगरा (Sidatsan̆garā (१३०० ए डी)) के अनुसार ऍ तथा ऐ - अ, तथा आ की ही मात्रा वृद्धि वाली मात्राएँ हैं। वर्तमान मिश्रित सिंहल ने अपनी वर्णमाला को न केवल पाली वर्णमाला के अक्षरों से समृद्ध कर लिया है, बल्कि संस्कृत वर्णमाला में भी जो और जितने अक्षर अधिक थे, उन सब को भी अपना लिया है। इस प्रकार वर्तमान मिश्रित सिंहल में अक्षरों की संख्या ५४ है। १८ अक्षर "स्वर" तथा शेष ३६ अक्षर  "व्यंजन" हैं। 

शब्द क्रम:
                    हिंदी और सिंहली दोनों में, शब्द क्रम कर्ता-कर्म-क्रिया या विषय-वस्तु-क्रिया (SOV सब्जेक्ट-ऑब्जेक्ट-वर्ब ) होता है, जो जापानी और कोरियाई जैसी कुछ अन्य एशियाई भाषाओं से साम्यता रखता है। 

वचन (संख्या भेद):
                    हिंदी, सिंहली और अंग्रेजी तीनों में  वचन दो (एकवचन और बहुवचन) होते हैं। संस्कृत में ३ वचन (एक वचन, द्वि वचन, तथा बहुवचन) होते हैं। 

काल:
                    हिंदी में ३ काल (वर्तमान, भूत और भविष्यत) होते हैं जबकि सिंहली में दो काल (वर्तमान तथा भूत) होते हैं। अंग्रेजी में ३ काल प्रेजेंट, पास्ट और फ्यूचर (Present-Past-Future)  होते हैं। 

लिंग:
                    हिंदी और शुद्ध सिंहल दोनों में दो लिंग स्त्रीलिंग और पुल्लिंग होते हैं। संकृत में ३ लिंग स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुंसक लिंग हॉटे हैं जबकि अंग्रेजी में ४ लिंग स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, उभय लिंग और नपुंसक (फेमिनाइन, मैसक्यूलाइन, कॉमन और न्यूट्रल जेंडर) लिंग होते हैं। हिंदी का लिंगभेद समझना अहिंदीभाषियों के लिए कठिन है किंतु सिंहल भाषा इस दृष्टि से सरल है। वहाँ "अच्छा" शब्द के समानार्थी "होंद" शब्द का प्रयोग  "लड़का" तथा "लड़की" दोनों के लिए होता है।

पुरुष: 
                    हिंदी और सिंहल दोनों  में तीन पुरुष- प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष तथा उत्तम पुरुष। तीनों पुरुषों में व्यवहृत होने वाले सर्वनामों के आठ कारक हैं, जिनकी अपनी-अपनी विभक्तियाँ हैं। "कर्म" के बाद प्राय: "करण" कारक की गिनती होती है, किंतु सिंहल के आठ कारकों में "कर्म" तथा "करण" के बीच में "कर्तृ" कारक है। "संबोधन" कारक नहीं होने से "कर्तृ" कारक के बावजूद ८ कारक हैं। 

क्रिया:

                    सिंहल व्याकरण अधिकांश बातों में संस्कृत तथा हिंदी के समान है किंतु उसमें संस्कृत की तरह न तो  "परस्मैपद" तथा "आत्मनेपद" हैं, न ही लट्, लोट् आदि दस लकार। सिंहल में क्रियाओं के आठ प्रकार कर्ता कारक क्रिया, कर्म कारक क्रिया, प्रयोज्य क्रिया, विधि क्रिया, आशीर्वाद क्रिया, असंभाव्य, पूर्व क्रिया तथा मिश्र क्रिया हैं। 

संधि:

                    शुद्ध सिंहल में संधियों के दस प्रकार हैं। आधुनिक सिंहल में संस्कृत शब्दों की संधि अथवा संधिच्छेद संस्कृत व्याकरणों के नियमों के अनुसार किया जाता है। "एकाक्षर" अथवा "अनेकाक्षरों" के समूह पदों को भी संस्कृत की ही तरह चार भागों में विभक्त किया जाता है - नामय, आख्यात, उपसर्ग तथा निपात। सिंहल में हिंदी की ही तरह दो वचन (एकवचन" तथा "बहुवचन") हैं, संस्कृत की तरह "द्विवचन" नहीं है। 

मुहावरे, लोकोक्तियाँ:

                    प्रत्येक भाषा के मुहावरे उसके अपने होते हैं। दूसरी भाषाओं में उनके ठीक-ठीक पर्याय खोजना व्यर्थ की कसरत है। अनुभव साम्य के कारण दो भिन्न जातियों द्वारा बोली जाने वाली दो भिन्न भाषाओं में एक जैसी मिलती-जुलती कहावतें उपलब्ध हो सकती हैं। सिंहल तथा हिंदी के कुछ मुहावरों तथा कहावतों में एकरूपता होते हुए भी अधिकतर भिन्नता है। 

सिंहली मुहावरे 

मुहावराहिंदी अनुवादअर्थ
इंगुरू दीला मिरिस गत्था वेज जैसे अदरक की जगह मिर्च लेना किसी बुरी चीज़ से छुटकारा पाने के बाद, उससे भी बुरी चीज़ मिलती है।
रावुलाई केंदई देकामा बेरागन्ना बाए कोई भी व्यक्ति अपनी मूछों पर दलिया लगे बिना इसे पी नहीं सकता।ऐसी स्थिति जहाँ दो विकल्प समान रूप से महत्वपूर्ण हों।
वेराडी गहाता केतुवे गलत पेड़ पर चोंच मार दी।कठिन कार्य करने के प्रयास में मुसीबत में पड़ जाना।
हिसाराधेता कोट्टे मारु काला वेगी सिर दर्द से छुटकारा पाने के लिए तकिया बदलना।किसी समस्या का वास्तविक कारण ढूंढकर उसे ठीक करने का प्रयास करना चाहिए।
गंगाता केपु इनि वेज जैसे बाड़ के खंभे काटकर उन्हें नदी में फेंक देना।ऐसे व्यर्थ कार्यों करना जिनसे कोई लाभ या प्रतिफल नहीं मिला है।
जिया लूला महा एका लू जो मछली आपके हाथ से बच निकली है वह सबसे बड़ी है।एक बड़े अवसर के नुकसान का वर्णन करता है।
गहाता पोत्था वेगी एक दूसरे के उतने ही करीब जितने पेड़ की छाल तने के करीब होती है।वास्तव में करीबी दोस्तों/लोगों का वर्णन करता है।
मिति थेनिन वाथुरा बहिनावा पानी सबसे निचले बिंदु से नीचे की ओर बहता है।जब गरीब और निर्दोष लोगों के साथ दूसरों द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता है।
अनुंगे मगुल दाता थमांगे अडारे पेनवन्ना वेगी जैसे वह व्यक्ति जो किसी दूसरे की शादी में अपना आतिथ्य दिखाता है।जब कोई व्यक्ति किसी विशेष अनुकूल परिस्थिति का लाभ उठाता है, और उसका श्रेय लेने का प्रयास करता है।
कटुगाले पिपुनु माला वेगी उस फूल की तरह जो झाड़ियों के बीच खिलता है।आमतौर पर यह उस व्यक्ति को संदर्भित करता है जो भ्रष्ट और अनैतिक लोगों से घिरे होने पर भी धर्मी बना रहता है।
एंजेय इंदन काना कनवालु सींग पर बैठकर कान से भोजन लेना।साथ रहते हुए भी चोट पहुँचाना या फायदा उठाना।
मिते उन कुरुल्ला अरला गाहे उन कुरुल्ला अल्लीमाता गिया वेगी हाथ में लिए पक्षी को छोड़कर पेड़ पर चढ़े हुए पक्षी को पकड़ने की कोशिश करना।हाथ में एक पक्षी जंगल में दो पक्षियों से बेहतर है।
ओरुवा पेरलुना पिटा होंडाई कीवा वेगी जैसे यह कहना कि नाव पलटने पर नीचे का हिस्सा बेहतर होता है।जब कोई व्यक्ति बुरी परिस्थिति में भी उजला पक्ष देखने का प्रयास करता है।
एंजें अतायक गन्नावा वेगी जैसे किसी के शरीर से हड्डी मांगना।जब कोई व्यक्ति किसी का उपकार करने में बहुत अनिच्छुक हो।
अल्लापु अट्ठथ न, पया गहापु अथथथ न हाथ में पकड़ी शाखा तथा जिस शाखा पर पैर टिके हों, दोनों को खोना।जब कोई व्यक्ति अधिक पाने की कोशिश करता है और अंत में वह सब खो देता है जो उसके पास पहले से था।
आनंदी हाथ देनागे केंदा हलिया वागेई सात अण्डीयों के कुन्जी (दलिया) के बर्तन की तरह।हर व्यक्ति योगदान देने की बात कहे लेकिन वास्तव में कोई भी योगदान न करे। 
बलालुन लावा कोस अता बावा वेगी बिल्लियों से भुने हुए जैक बीजों को आग से बाहर निकालने को कहना।जब किसी व्यक्ति का उपयोग किसी अन्य के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है।
यकाता बया नाम सोहोने गेवल हदन्ने हेहे जो लोग शैतान से डरते हैं वे कब्रिस्तान पर घर नहीं बनाएंगे।यदि आप किसी चीज़ से डरते हैं, तो आप जानबूझकर खुद को उसके दायरे में नहीं रखेंगे।

सिंहली कहावतें

कहावतअंग्रेजी अनुवादअर्थ
पिरुनु काले दिया नोसेले पानी भरा बर्तन हिलाने पर आवाज नहीं करता।जिन्हें कम जानकारी है वे बहुत अधिक बोलते हैं, जबकि जिन्हें अच्छी जानकारी है वे चुप रहते हैं।
उगुराता होरा बेहेथ गन्ना बा गले को बताए बिना दवा नहीं निगल सकते।आप अपने आप से सच्चाई नहीं छिपा सकते।
उदा पन्नोथ बीमा वटेलु उत्थान के बाद पतन अवश्यंभावी है।जो चीज ऊपर उठी है , उसे अंततः नीचे गिरना ही होगा।
उनाहापुलुवेगे पतिया उता मानिकक लू लोरिस का बच्चा उसके लिए एक रत्न है एक व्यक्ति के लिए बेकार चीज़ दूसरे के लिए बहुत मूल्यवान हो सकती है।
अथथिन अट्ठथा पनीना कुरुल्ला थीमी नासी जो पक्षी वर्षा से बचने हेतु एक डालसे दूसरी डाल पर कूदता है, ठंड से मर जाता है।पक्ष बदलना या लगातार किसी समस्या से भागना आपको दीर्घकाल में नुकसान पहुँचाएगा।
अंदायाता मोना पाहन एलियादा अंधे आदमी के लिए दीपक किस काम का?लोगों को ऐसी चीजें न दें जिनका वे उपयोग न कर सकें।
हदीसियता कोरोस कटेथ अथलंता बारिलु जल्दबाजी में कोई व्यक्ति अपना हाथ मिट्टी के बर्तन में भी नहीं डाल सकता।जल्दबाजी और जल्दबाजी में काम करने से आप साधारण चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं।
काना कोकागे सुदा पेनेने इगिलुनामालु सारस की सफेदी केवल तभी दिखाई देती है जब वह उड़ता है।लोगों को किसी चीज़ का मूल्य तभी पता चलता है जब वह चली जाती है।
गिनिपेनेलेन बटाकापू मिनिहा कानामादिरी एलियाथ बययी लूजो व्यक्ति आग की लपटों से मारा गया हो, वह जुगनू की रोशनी से भी डरता है।जब कोई व्यक्ति किसी दर्दनाक अनुभव से गुजरता है, तो वह हर उस चीज से बचने की कोशिश करता है जो उस अनुभव से थोड़ी भी मिलती-जुलती हो।
जिया हकुराता नादान्ने, थियेना हकुरा राकागन्ने खोए हुए गुड़ के टुकड़े पर शोक किए बिना बचे हुए गुड़ के टुकड़े को बचाकर रखना ।किसी भी नुकसान की स्थिति में आगे बढ़ना सीखना चाहिए।
राए वेतुनु वलेह दवल वतेन्ने नै जो आदमी रात को गड्ढे में गिर गया, वह दिन के उजाले में फिर उसमें नहीं गिरता।लोगों को अपनी गलतियों से सीखना चाहिए।
पाला अथि गहे कोई साथथ वाहनवालु एक फलदार वृक्ष हर प्रकार के जीव को आकर्षित करता है।सफलता और धन कई लोगों को आकर्षित करते हैं।
थलेना याकदे दुतुवामा अचारिया उडा पाना पाना थलानावालु लोहार को लचीला लोहा मिल जाए तो वह अपना हथौड़ा नीचे लाने के लिए खुशी से उछल पड़ता है।जितना अधिक कोई झुकता है, उतना ही अधिक उसे पीटा जाता है।

कुछ प्रमुख सिंहल शब्द और उनके हिंदी पर्यायवाची  

गिया -- गया
यायी -- जायेगा
अवे -- आया
मम -- मैं
ओहु -- वह
अय -- वह
ओय -- तुम
 -- यह
ओयाघे -- तुम्हारा धन्यवाद
सुदु -- सफेद
सीनि -- चीनी
हिना वेनवा -- हँसना
हितनवा -- सोचना
सीय -- सौ
सिंहय -- शेर
सेप -- स्वास्थ्य
सेकय -- संदेह
सम -- समान
सपत्तुव -- जूता
सत्यय -- सत्य
सतिय -- सप्ताह
मून्न -- चेहरा
मिहिरि -- मीठा
मिनिसा -- मनुष्य
मिट्टि -- छोटा
मामा -- मामा
माल्लुवा -- मछली
मासय -- मास
मन -- मन
हिम -- बर्फ
सिहिनय -- सपना
सुलंग -- हवा
मल -- गन्दगी
मरनवा -- मारना
मरन्नय -- मृत्यु
अवुरुद्द -- वर्ष
सामय -- शान्ति
रूपय -- सुन्दरता
रोगय -- रोग
रोहल -- अस्पताल
रुवन -- रत्न
रिदी -- चाँदी
रेय -- रात
रहस -- रहस्य
रस्ने -- गरम
रस्नय -- गर्मी
रिदेनवा -- चोट पहुँचाना
रॅय -- रात
रहस -- रहस्य
रसने -- गरम
रसनय -- गरमी
रतु -- लाल
रजय -- सरकार
रज -- राजा
रट -- विदेश
रट -- देश
ओबनवा -- प्रेस
ओककोम -- सब
एळिय -- प्रकाश
एया -- वह
एनवा -- आना
ऋतुव -- ऋतु
ऋण -- ऋण
उयनवा -- खाना बनाना
ईये -- कल
ईलन्गट -- बाद में
ईय -- तीर
ॲनुम अरिनवा -- जम्हाई लेना
ॲत -- दूर
इरनवा -- देखा
ऍस कण्णडिय -- चश्मा

ऍन्गिलल -- अंगुलू
सेनसुरादा -- शनिवार
सिकुरादा -- शुक्रवार
ब्रहसपतिनदा -- गुरुवार
ब्रदादा -- बुधवार
अन्गहरुवादा -- मंगलवार
सन्दुदा -- सोमवार
इरिदा -- रविवार
देसॅमबरय -- दिसम्बर
नोवॅमबरय -- नवम्बर
ओकतोबरय -- अक्टूबर
सॅपतॅमबरय -- सितम्बर
अगोसतुव -- अगस्त
जूलि -- जुलाई
जूनि -- जून
मॅयि -- मई
अप्रियेल -- अप्रैल
मारतुव -- मार्च
पेबरवारिय -- फरवरी
जनवारिय -- जनवरी
चूटि -- छोटा
गहनवा -- पीटना
गल -- पत्थर
गननवा -- लेना
गन्ग -- नदी
क्रीडव -- खेल
कोपि -- कॉफी
केटि -- छोटा
कुससिय -- रसोईघर
कुलिय -- वेतन
कुरुलला -- पक्षी
किकिळी -- मुर्गी
कट -- मुँह
कतुर -- कैंची
आता -- दादा
आच्ची -- दादी
सिंहल -- सिंहली
गम -- गाँव
मिनिहा -- आदमी
मिनिससु -- मनुष्य
हरिय -- क्षेत्र
कोयि -- कौन सा
पलात -- प्रान्त
दकुण्उ -- दक्षिण
उपन गम -- जन्मस्थान
नमुत -- लेकिन
पदिंcइय -- निवासी
कोहे -- कहाँ
ने -- ऐसा है या नहीं?
आयुबोवन -- Hello
नम -- नाम
सुब उपनदिनयक -- शुभ जन्मदिन
दननवा -- जानना
मतकय -- स्मृति
मतक वेनवा -- याद करना
कोलल -- बालक
केलल -- स्त्री
लोकु -- लम्बा
लससण -- सुन्दर
दत -- दाँत
दत -- दाँत
दिव -- जीभ
गसनवा -- beat
गॅयुव -- गाया
गयनवा -- गाना
हदवत -- हृदय
कपनवा -- काटना
कॅपुव -- काटा
कोन्द -- बाल
पोड्इ -- तुच्छ
रिदेनव -- hurt
ककुल -- पाँव
ऍस -- आँख
कन -- कान

ऍन्ग -- शरीर
कोनन्द -- पीठ
बलला -- कुत्ता
गिया -- जाना (perfect)
इससर -- पहले
नपुरु -- निर्दयी
पोहोसती -- धनी स्त्री
पोहोसता -- धनी पुरुष
पोहोसत -- धनी
तर -- मजबूत
तद -- कठिन
नव -- आधुनिक
ऍयि -- क्यों
कवद -- कौन
अद -- आज
मगे -- खान
ऊरो -- सूअर
ऊरु मस -- सूअर का मांस
ऊरा -- सूअर
उण -- ज्वर
गेवल -- घर
गेय -- घर
वॅड करनवा -- काम करनाकार्य
वॅड -- कार्य
देवल -- वस्तुएँ
देय -- वस्तु
देननु -- गायें
देन -- गाय
अशवयो -- घोड़े
अशवय -- घोड़ा
कपुटो -- कौवे
कपुट -- कौवा
दिविया -- चीता
बोहोम सतुतियि -- बहुत-बहुत धन्यवाद
करुणाकर -- कृपया
ओवु -- हाँ
एकदाह -- हजार
एकसीय -- सौ
दहय -- दस
नवय -- नौ
अट -- आठ
हत -- सात
हय -- छ:
पह -- पाँच
हतर -- चार
तुन -- तीन
देक -- दो
इर -- सूर्य
वन्दुरा -- बन्दर
नॅवत हमुवेमु -- अलविदा
सललि -- धन
वॅसस -- वर्षा
वहिनवा -- बरसना (वर्षा होना) पिहिय -- चाकू
हॅनद -- चम्मच
लियुम -- पत्र
कनतोरुव -- कार्यालय
तॅPआआEल -- डाकघर
यवननवा -- भेजना
पनसल -- मन्दिर
आदरय -- प्यार
गोविपळअ -- खेत
मेसय (न.) -- मेज
मेहे -- यहाँ
काल -- चौथाई
कालय -- समय
कल -- समय
कोच्चर -- कितना देर
ओया -- तुम
इननवा -- होना
होन्द -- अच्छा
इसतुति -- धन्यवाद
सनीप -- स्वास्थ्य
सॅप -- स्वास्थ्य

नगरय -- शहर
अपिरिसिदु -- गन्दा
पिरिसिदु वेनवा -- साफ होना
पिरिसिदु करनवा -- साफ
पिरिसिदु -- साफ करना
यट -- नीचे
कलिन -- पहले
नरक -- बुरा
ळदरुवा -- बच्चा
नॅनद -- चाची
सतुन -- जानवर
सह -- और
पिळितुर -- उत्तर
अतर -- के बीच में
तनिव -- अकेले
अवसर दिम -- अनुमति देना
सियलल -- सब
वातय -- हवा
एकन्गयि -- सहमत हुआ
कलहख़कर -- आक्रामक
वयस -- आयु
विरुदडव -- विरुद्ध
नॅवत -- पुन:
पसुव -- बाद में
अहसयानय -- वायुयान
वॅड्इहिति -- वयस्क
लिपिनय -- पता
हरहा -- आर-पार
अनतुर -- दुर्घटना
पिळिगननवा -- स्वीकार करना
पिटरट -- बाहर
उड -- उपर
करनवा -- काम करना
ओळूव -- सिर
मललि -- छोटा भाई
नंगि -- छोटी बहन
अकका -- बड़ी बहन
अयया -- बड़ा भाई
मेसय -- मेज
बत -- उबला चावल
हरि -- ठीक है
हरि -- बहुत
नॅहॅ -- नहीं
मोककद -- क्या
अममा -- माँ
दुवनव -- दौड़ना
गेदर -- घर
लोकु मीया -- चूहा
मीया -- चूहा
उड -- के उपर
इरिदा -- रविवार
एक -- यह
एक -- एक
एपा -- नहीं
दोर -- दरवाजा
वहनवा -- बन्द करना
पोत -- पुस्तक
इकमन -- तेज
कनवा -- खाना
अत -- भुजा
मल -- फूल
वतुर -- पानी
ले -- रक्त
किरि -- दूध
अपि -- हम लोग
मम -- मै
यनवा -- जाना
मोकक्द -- क्या
कीयद -- कितना
कोहेन्द 

 भाषिक साम्य 


सिंहली और भारतीय भाषाओं में पर्याप्त साम्य है।  


हिंदी-सिंहली

मैं आया = मामा आवेमी।  

हम आये = अपी आवेमु 

तू आया = नुम्बा आवेही।

तुम (बहुवचन) आए = नम्बला आवेहु।

आप (विनम्र, एकवचन) आए = ओबा आवेही।

आप (विनम्र, बहुवचन) आए = ओबाला आवेहु।

वह आया = ओहु आवेया।

वह आई = ईया आवाया।

वे आए = ओवुन आवोया.

मैं करता हूँ = मामा करामी/कर्णनेमि।

हम करते हैं = अपि करामु / करणनेमु।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

हिंदी : वचन देना 

सिंहली : वचन (याक) दीमा। 

बंगाली और सिंहली 

                    बंगाली और सिंहली दोनों ही इंडो-आर्यन भाषाएँ हैं। इसलिए इन दोनों भाषाओं में काफ़ी समानताएँ हैं। कोई इनमें से एक भाषा जानता हो तो वह दूसरी भाषा आसानी से सीख सकता है।  

सिंहली 
मैंने किया = मामा कलेमी.

हमने किया = अपी कालेमु.

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = नुम्बा कलेही।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = नुम्बाला कलेहु।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओबा कालेही।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओबाला कालेहु।

उसने किया = ओहु कालेया.

उसने किया = ईया कलाया.

उन्होंने किया = ओवुन कालोया / कलहा।

बांग्ला 

मैंने किया = अमी कोरलाम.

हमने किया = अमरा कोरलाम.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तुई कोर्ली।

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = तोरा कोर्ली।

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = तुमी कोरले।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = टॉमरा कोरले।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = अपनी कोरलेन।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = अपनारा कोरलेन।

उसने / उसने किया = से कोर्लो।

उसने/उसने (विनम्र) किया = टिनी कोरलेन।

उन्होंने किया = तारा कोरलो.

सिंहली 

मैं करता हूँ = मामा करामि (/करणनेमि)।

हम करते हैं = अपि करामु (/करणनेमु)।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

बांग्ला 

मैं करता हूँ = अमी कोरी.

हम करते हैं = अमरा कोरी.

आप (अशिष्ट, एकवचन) करते हैं = तुई कोरिस।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करते हैं = तोरा कोरिस।

आप (अभद्र, एकवचन) करते हैं = तुमी कोरो।

आप (अभद्र, बहुवचन) करते हैं = तोमरा कोरो।

आप (विनम्र, एकवचन) करते हैं = अपनी कोरेन।

आप (विनम्र, बहुवचन) करते हैं = अपनारा कोरेन।

वह / वह करता है = से कोरे.

वह / वह (विनम्र) करता है = टिनी कोरेन।

वे करते हैं = तारा कोरे.

सिंहली 

मैं करूँगा = मामा करामी.

हम करेंगे = अपी करमु.

आप (एकवचन) करेंगे = ओबा / नुम्बा करन्नेही।

आप (बहुवचन) करेंगे = ओबाला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करेगा = ओहु कराई।

वह करेगी = ईया कराई।

वे करेंगे = ओवुन कराथी.

बांग्ला 

मैं करूँगा = अमी कोरबो.

हम करेंगे = अमरा कोरबो.

आप (अशिष्ट, एकवचन) करेंगे = तुई कोरबी।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करेंगे = तोरा कोरबी।

आप (अभद्र, एकवचन) करेंगे = तुमी कोर्बे।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करेंगे = तोमरा कोर्बे।

आप (विनम्र, एकवचन) करेंगे = अपनी कोरबेन।

आप (विनम्र, बहुवचन) करेंगे = अपनारा कोरबेन।

वह / वह करेगा = से कोर्बे।

वह/वह (विनम्र) करेगा = टिनी कोरबेन।

वे करेंगे = तारा कोर्बे.

                    बंगाली में 'बा' ध्वनि को सिंहली में 'वा' ध्वनि से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। सिंहली भाषा में बंगा का उच्चारण वंगा होता है। शारीरिक भाग
                    शब्दों की अधिकांश समानताएँ स्पष्ट हैं और किसी विस्तार की आवश्यकता नहीं है। केश - केस, नाक - नासय, अक्षी - अस, मुख - मुकाय, जीव - दिवा, दथ - दथ, रिदोई - हरदय, हाथ - हाथ - अथ, अंगुल - अंगिली, लप - कुले - उकुले, पद - पाड़ा, लिंग - लिंग, देवियों - नारी - नारी, छोटा आदमी - बेटी मानुष - बेटी मिनिसा, लंबा आदमी - लोम्बा - लम्बायक जितना लंबा। इसके अलावा रक्थो का अर्थ लाल होता है और इसका तात्पर्य रक्त से है।

फल- 

                    आम - आंब - अंबा, बेल फल - बेल - बेली, अमरूद - पेरा - पेरा, गन्ना - आक - उक, अनानास - अन्नास - अन्नासी, केला - कोला - केसेल। यहां बंगाली व्यंजनों में से दो तीन सिंहली व्यंजनों के बीच दिखाई देते हैं और लेखक को छिपी हुई समानता का एहसास करने में कई साल लग गए क्योंकि कोला ध्वनि आपको पत्तियों या हरे रंग की ओर ले जाती है। स्टार फल - कबरंका - काबरंका। यह संयोग से था, जब मैंने कोलकाता में एक फुटपाथ विक्रेता को 'कबरंका, कबरंका' कहते सुना। इस गैर-व्यावसायिक, कुछ हद तक दुर्लभ फल को सिंहली शब्द से पुकारा जाना एक बड़ा आश्चर्य था।

खाद्य पदार्थ- 

                    चावल - भात - स्नान, खाना - कबेन - कन्ना, पानी - झोल - जलाया, लाल मिर्च - मोरिच - मिरिस, रोटी - रोटी, गिंगिली बॉल्स - थिला गुली - थाला गुली, कड़वा - थेथो - थिट्ठा, शराब - शरा - रा, आलू - आलू - आलु।  

स्थानों के नाम- 
                    निम्नलिखित स्थानों के नाम महानगर कोलकाता से हैं। रत्नों का मैदान - मानिकतला - मानिक थलावा, धर्म का मैदान - धर्मतला - धर्मतालवा, साल्ट लेक - नून पोकुर - लुनु पोकुना, नेशन लवर्स पार्क - देशप्रियो पार्क - देशप्रिया पार्क आदि। 

कैलेंडर/समय- 

                    चार ऋतुओं को ग्रिशमो-ग्रीष्मा, शोरोट-सारथ, शीथ-शीथा और बोसोन्टो-वसंथा कहा जाता है। सप्ताह के अंत में दिनों के बंगाली नाम 'बार' में होते हैं। ध्वनि 'बा' को सिंहली समकक्ष के लिए 'वा' से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए ताकि 'बार' 'वर' या 'वरया' या 'टर्न' हो। सोमवार से शुरू होने वाले दिनों के नाम हैं - रोबिबर - रविगेवरया, सोंबर, मोंगलबार - मंगलावरया, बुधबार - बदादा, बृहस्पतिबर - ब्रहस्पतिंडा, शुक्रोबर - सिकुराडा और शोनिबार - सेनासुरधा। नामों की ये दोनों सूची कुछ ग्रहों को संदर्भित करती हैं। एएम, पीएम - शोकले, विकले। रात्रि - रात्रि - रात्रि, शुभ रात्रि - शुबा रात्रि - सुबा रात्रिक।

तमिल और सिंहल 

                    तमिल और सिंहल दोनों में, वाक्यांश संरचना ज़्यादातर मामलों में काफी समान होती है। उदाहरण के लिए, "मैं भूखा हूँ" को "सिंहल" में "माता बदागिनी" और "तमिल" में "एनक्कु पासिक्कुथु" कहा जा सकता है। यहाँ "माता" का अर्थ "एनक्कु" और "बदागिनी" का अर्थ "पसिक्कुथु" है। कोई शिक्षक या दोस्त जब जवाब चाहता है, तो वह कहता है "कियान्ना बलन्ना", जिसका अनुवाद "सोली परपोम" है।"कियाला देनावादा" - "सोल्ली थरवा"। 

उड़िया और सिंहल  

मैंने किया = म्यू करिली.

हमने किया = अमे करिलु.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तू करिलु।

तुमने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तुमे करीला।

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = तुमेमेन करीला। (संपादन सुझाएँ)

आपने (Polite) किया = अपोनो करिले. (संपादन सुझाएँ)

उसने / उसने किया = से करीला।

उसने / उसने (विनम्र) किया = से करिले।

उन्होंने किया = सेमेन कारिले.

सिंहली

मैं करता हूँ = मामा करामि (/करणनेमि)।

हम करते हैं = अपि करामु (/करणनेमु)।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

उड़िया  

मैं करता हूँ = मु करे.

हम करते हैं = अमे कारू।

आप (अशिष्ट, एकवचन) करते हैं = तू करु।

तुम (अशिष्ट, एकवचन) करते हो = तुमे कारा।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करते हैं = तुममेमने कारा।

आप (विनम्र, एकवचन) करते हैं = अपोनो कारंती।

वह / वह करता है = से करे।

वह/वह (विनम्र) करता है = से कारंति।

वे करते हैं = सेमने कारंती।

अन्य साम्यताएँ  
                    भारत और लंका में व्यक्तियों के नाम प्रसन्ना, महेंद्र, आदि एक जैसे हैं। सिंहली नाम "विजयरत्न" तमिल में "विजयरत्नम" हो जाता है। सिंहली लोग "भगवान कटारागामा" की पूजा करते हैं । भगवान कटारागामा को  "भगवान कंठस्वामी" के नाम से जाना जाता है, जो शिव के पुत्र हैं। सिंहली और तमिल दोनों ही उनके अनुयायी हैं। बौद्ध सिंहली कोविल भी जाते हैं। 

                    
                    सिंहली भाषा में वाक्यांशों को “कर्ता-क्रिया-कर्ता” (अंग्रेजी में शब्द क्रम सख्त है) प्रारूप का पालन करना आवश्यक नहीं है।अंग्रेजी में, यदि आप कहते हैं “लड़के ने लड़की का पीछा किया”, और यदि आप एसवीओ से शब्दों के क्रम को पलट देते हैं, और इसे “लड़की ने लड़के का पीछा किया” लिखते हैं, तो विचार अलग होगा। सिंहल में SVO क्रम लचीला है। उदाहरण के लिए, "मामा अय्याता गहुवा (मैं, भाई को, मारो)" को "अय्याता, मामा, गहुवा" (भाई को, मैं, मारो) भी कहा जा सकता है। 

                    सिहली और तमिल संस्कृतियाँ मिलती-जुलती हैं। सिंहली महिलाएँ हल्के रंग की साड़ियाँ पहनती हैं, और तमिल महिलाएँ चटकीले और गहरे रंग की साड़ियाँ पहनती हैं। सिंहली और तमिल दोनों ही रूढ़िवादी हैंऔर उन्हें अपनी भाषा और इतिहास पर बहुत गर्व है। सिंहली और तमिल लोग एक जैसे दिखते हैं। 

                        सार यह कि दक्षिण भारतीयों और सिंहलियों में कई समानताएँ और असमानताएँ  हैं तथापि इस समूचे भूखंड के निवासियों की सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, धर्म, भाषाएँ, परंपराएँ और भाग्य साझा हैं। आधुनिक विश्व के फलक पर भारत और लंका का भविष्य भी एक समान रहना संभावित है। विश्व की महाशक्तियाँ भारत और अलंका को अलग-अलग करने  के कितने भी प्रयास कर लें, सफल नहीं हो सकेंगे। श्री लंका और भारत की सरकारें और राजनेता पारस्परिक हितों का संरक्षण करते हुए साझा उज्जवल भविष्य का निर्माण करने की दिशा में सक्रिय हैं। भारत और श्रीलंका के साहित्यकारों का दायित्व है कि वे समय की पुकार को सुनकर एक दूसरे के साथ मिलकर सारस्वत अनुष्ठानों को साकार करें और साझा साहित्य का सृजन करें। 

***
संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन। जबलपुर ४८२००१, वाट्स ऐप ९४२५१८३२४४ 

शनिवार, 4 जनवरी 2025

जनवरी ४, सॉनेट, वागीश्वरी सवैया, श्रीलंका, घनाक्षरी, राजस्थानी, हिंदी वंदना, नवगीत, दोहा,

सलिल सृजन जनवरी ४
*
सॉनेट
.
क्षण में युग को जीना सीखें
अपनी किस्मत आप लिखें हम
भिन्न तनिक औरों से दीखें
अपनी मंजिल आप चुनें हम।
अपने पग हैं; अपनी राहें
मन ठोकर से मत घबराना
अपनी बाँहें; अपनी चाहें
जो मन भाए; हृदय लगाना।
अवगाहन श्रम-सीकर में कर
बिंदु सिंधु को जन्म दे सके
हो भगवान भक्त के वश में
भोग लगे जो विहँस ले सके।
नित नव कोशिश-माला जपते
प्रभु! तब हाथ शीश पर रखते।
०००
मुक्तक
नए साल में शशि अनुरागी हो पल-पल
नए साल में रवि सहभागी हो पल-पल
जनता कसे कसौटी पर नित नेता को-
नए साल में सत्ता त्यगी हो पल-पल
४.१.२०२५
०००
सवैया सलिला १:
वागीश्वरी सवैया
*
गले आ लगो या गले से लगाओ, तिरंगी पताका उड़ाओ।
कहो भी, सुनो भी, न बातें बनाओ, भुला भेद सारे न जाओ।।
जरा पंछियों को निहारो, न जूझें, रहें साथ ही ये हमेशा।
न जोड़ें, न तोड़ें, न फूँकें, न फोड़ें, उड़ें साथ ही ये हमेशा।।
विधान: (सात यगण) प्रति पंक्ति ।
***
सॉनेट
हयात
है हयात यह धूप सुनहरी
चीर कोहरा हम तक आई
झलक दिखाए ठिठक रुपहली
ठिठुर रहे हर मन को भाई
गौरैया बिन आँगन सूना
चपल गिलहरी भी गायब है
बिन खटपट सूनापन दूना
छिपा रजाई में रब-नब है
कायनात की ट्रेन खड़ी है
शीत हवाओं के सिगनल पर
सीटी मारे घड़ी, अड़ी है
कहे उठो पहुँचो मंज़िल पर
दुबकी मौत शीत से डरकर
चहक हयात रही घर-बाहर
संजीव
४-१-२०२३, ८•२२
●●●
सॉनेट
नूपुर
नूपुर की खनखन हयात है
पायल सिसक रही नूपुर बिन
नथ-बेंदी बिसरी बरात है
कंगन-चूड़ी करे न खनखन
हाई हील में जीन्स मटकती
पिज्जा थामे है हाथों में
भूल नमस्ते, हैलो करती
घुली गैरियत है बातों में
पीढ़ी नई उड़ रही ऊँचा
पर जमीन पर पकड़ खो रही
तनिक न भाता मंज़र नीचा
आँखें मूँदे ख्वाब बो रही
मान रही नूपुर को बंधन
अब न सुहाता माथे चंदन
संजीव
४-१-२०२३, ८•५७
●●●
सॉनेट
दीवार
*
क्या कहती? दीवार मनुज सुन।
पीड़ा मन की मन में तहना।
धूप-छाँव चुप हँसकर सहना।।
हो मजबूत सहारा दे तन।।
थक-रुक-चुक टिक गहे सहारा।
समय साइकिल को दुलराती।
सुना किसी को नहीं बताती।।
टिके साइकिल कह आभार।।
झाँक झरोखा दुनिया दिखती।
मेहनत अपनी किस्मत लिखती।
धूप-छाँव मिल सुख-दुख तहती।
दुनिया लीपे-पोते-रँगती।।
पर दीवार न तनिक बदलती।।
न ही किसी पर रीझ फिसलती।।
संवस
४-१-२०२२
*
आश्चर्यजनक पुरातात्विक स्थल सिगिरिया (श्रीलंका)
आप दुनिया के सबसे महान पुरातात्विक स्थलों में से एक को सिगिरिया कहा जाता है जिसे रावण के महलों में से एक माना जाता है। श्रीलंका में स्थित यह अद्भुत स्थल दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है, इसीलिए इसे दुनिया का 8वां अजूबा भी कहा जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि इस साइट में ऐसा क्या खास है। यह वास्तव में एक विशाल अखंड चट्टान है, लगभग 660 फीट लंबा, और आप देख सकते हैं कि इसका एक सपाट शीर्ष है, जैसे किसी ने इसे एक विशाल चाकू से काटा। शीर्ष पर अविश्वसनीय खंडहर हैं जो बेहद रहस्यमय हैं।
जैसा कि आप देख सकते हैं कि यहां और वहां बहुत सी अजीबोगरीब ईंट संरचनाएं हैं और यह न केवल आगंतुकों के लिए भ्रमित करने वाली है, बल्कि पुरातत्वविद भी पूरी तरह से यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इन संरचनाओं का उपयोग किस लिए किया गया था। वे पुष्टि करते हैं कि आप जो कुछ भी देखते हैं वह कम से कम 1500 वर्ष पुराना है। लेकिन रहस्य यह नहीं है कि ये संरचनाएं क्या हैं, यह है कि इन संरचनाओं का निर्माण कैसे हुआ। प्राचीन बिल्डरों ने इन सभी ईंटों को चट्टान के शीर्ष पर ले जाने का प्रबंधन कैसे किया? बताया जाता है कि यहां कम से कम 30 लाख ईंटें मिलती हैं, लेकिन इन ईंटों को चट्टान के ऊपर बनाना असंभव होगा, यहां पर्याप्त मिट्टी उपलब्ध नहीं है। उन्हें इन ईंटों को जमीन से ले जाना होगा।
अब, वास्तव में विचित्र बात यह है कि जमीनी स्तर से कोई प्राचीन सीढ़ियां नहीं हैं जो चट्टान की चोटी तक जाती हैं। देखिए, ये सभी धातु सीढ़ियां पिछली शताब्दी में बनाई गई थीं। इन नई सीढ़ियों के बिना इस चट्टान पर चढ़ना काफी मुश्किल होगा। यह पूरी चट्टान अब विभिन्न प्रकार की सीढ़ियों से स्थापित है, यह एक अलग स्तर पर सर्पिल सीढ़ियाँ हैं। प्राचीन बिल्डरों ने बहुत सीमित सीढ़ियाँ बनाईं, लेकिन ये सीढ़ियाँ निश्चित रूप से ऊपर तक नहीं पहुँचीं। यही कारण है कि 200 साल पहले तक सिगिरिया के बारे में यहां तक ​​कि स्थानीय लोगों को भी नहीं पता था क्योंकि ऊपर तक सीढ़ियां नहीं थीं। 1980 के दशक के दौरान श्रीलंकाई सरकार ने धातु के खंभों का उपयोग करके सीढ़ियों का निर्माण किया ताकि इसे एक पर्यटक स्थल के रूप में इस्तेमाल किया जा सके और मुर्गी ने इसे एक विरासत स्थल घोषित किया।
और यही कारण है कि जोनाथन फोर्ब्स के नाम से एक अंग्रेज ने 1831 में सिगिरिया के खंडहरों की "खोज" की। तो प्रारंभिक मानव सिगिरिया के शीर्ष पर कैसे पहुंचे? आइए मान लें कि इन बहुत खड़ी, जंगली इलाकों के माध्यम से चढ़ाई करना संभव है। लेकिन जमीनी स्तर से 30 लाख ईंटें लाने के लिए आपको उचित सीढ़ियों की जरूरत जरूर पड़ेगी। इसके बिना उन्हें शीर्ष पर पहुंचाना असंभव होगा। भले ही हम यह दावा करें कि ईंटों को चट्टान के ऊपर ही किसी चमत्कारी तरीके से बनाया गया था, यहां के निर्माण कार्य में सैकड़ों श्रमिकों की आवश्यकता होती। उन्हें अपना भोजन कैसे मिला? और टूल्स के बारे में क्या? उन्होंने अपने विशाल आदिम औजारों को कैसे ढोया? वे कहाँ आराम और सोते थे?
यहाँ केवल ईंटें ही नहीं हैं, आप संगमरमर के विशाल ब्लॉक भी पा सकते हैं। दूधिया सफेद संगमरमर के पत्थर इस क्षेत्र के मूल निवासी नहीं हैं। ये ब्लॉक वास्तव में बहुत भारी होते हैं, एक कदम बनाने वाले हर पत्थर का वजन लगभग 20-30 किलोग्राम होता है। और हम यहां हजारों संगमरमर के ब्लॉक पा सकते हैं। विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि संगमरमर प्राकृतिक रूप से आस-पास कहीं नहीं पाया जाता है, तो उन्हें 660 फीट की ऊंचाई तक कैसे ले जाया गया, खासकर बिना सीढ़ियों के? इसमें पानी की एक बड़ी टंकी भी है। यदि आप इसके चारों ओर ईंटों और संगमरमर के ब्लॉकों को नजरअंदाज करते हैं, तो आप समझते हैं कि यह ग्रेनाइट से बना दुनिया का सबसे बड़ा मोनोलिथिक टैंक है। यह पत्थर के ब्लॉकों को जोड़कर नहीं बनाया गया है, इसे ग्रेनाइट को हटाकर, सॉलिड रॉक से टन और टन ग्रेनाइट को निकालकर बनाया गया है।
यह पूरा टैंक 90 फीट लंबा और 68 फीट चौड़ा और करीब 7 फीट गहरा है। इसका मतलब है कि कम से कम 3,500 टन ग्रेनाइट को हटा दिया गया है। तो आप वास्तव में वापस बैठने के लिए एक मिनट ले सकते हैं और सोच सकते हैं कि मुख्यधारा के पुरातत्वविद सही हैं या नहीं। यदि मनुष्य ग्रेनाइट पर छेनी, हथौड़े और कुल्हाड़ी जैसे आदिम औजारों का उपयोग कर रहे होते, जो कि दुनिया की सबसे कठोर चट्टानों में से एक है, तो 3,500 टन को हटाने में वर्षों लग जाते। और इतने सालों में ये मजदूर अपना पेट कैसे पालते थे, जब उनके पास जमीनी स्तर तक जाने के लिए सीढ़ियां भी नहीं हैं? मुख्यधारा की इतिहास की किताबों में कुछ मौलिक रूप से गलत है जो प्राचीन लोगों को छेनी और हथौड़े से चट्टानों को काटने की बात करती है। लेकिन यह सिर्फ एक सिद्धांत नहीं है, हमारे आंखों के सामने वास्तविक सबूत हैं। क्या यह अद्भुत नहीं है?
***
:छंद सलिला:
घनाक्षरी
*
सघन संगुफन भाव का, अक्षर अक्षर व्याप्त.
मन को छूती चतुष्पदी, रच घनाक्षरी आप्त..
तीन चरण में आठ सात चौथे में अक्षर.
लघु-गुरु मात्रा से से पदांत करते है कविवर..
*
लाख़ मतभेद रहें, पर मनभेद न हों, भाई को हमेशा गले, हँस के लगाइए|
लात मार दूर करें, दशमुख सा अनुज, शत्रुओं को न्योत घर, कभी भी न लाइए|
भाई नहीं दुश्मन जो, इंच भर भूमि न दें, नारि-अपमान कर, नाश न बुलाइए|
छल-छद्म, दाँव-पेंच, द्वंद-फंद अपना के, राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइये||
*
जिसका जो जोड़ीदार, करे उसे वही प्यार, कभी फूल कभी खार, मन-मन भाया है|
पास आये सुख मिले, दूर जाये दुःख मिले, साथ रहे पूर्ण करे, जिया हरषाया है|
चाह-वाह-आह-दाह, नेह नदिया अथाह, कल-कल हो प्रवाह, डूबा-उतराया है|
गर्दभ कहे गधी से, आँख मूँद - कर - जोड़, देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है||
(श्रृंगार तथा हास्य रस का मिश्रण)
*
शहनाई गूँज रही, नाच रहा मन मोर, जल्दी से हल्दी लेकर, करी मनुहार है|
आकुल हैं-व्याकुल हैं, दोनों एक-दूजे बिन, नया-नया प्रेम रंग, शीश पे सवार है|
चन्द्रमुखी, सूर्यमुखी, ज्वालामुखी रूप धरे, सासू की समधन पे, जग बलिहार है|
गेंद जैसा या है ढोल, बन्ना तो है अनमोल, बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है||
*
ये तो सब जानते हैं, जान के न मानते हैं, जग है असार पर, सार बिन चले ना|
मायका सभी को लगे - भला, किन्तु ये है सच, काम किसी का भी, ससुरार बिन चले ना|
मनुहार इनकार, इकरार इज़हार, भुजहार, अभिसार, प्यार बिन चले ना|
रागी हो, विरागी हो या हतभागी बड़भागी, दुनिया में काम कभी, 'नार' बिन चले ना||
(श्लेष अलंकार वाली अंतिम पंक्ति में 'नार' शब्द के तीन अर्थ ज्ञान, पानी और स्त्री लिये गये हैं.)
*
बुन्देली
जाके कर बीना सजे, बाके दर सीस नवे, मन के विकार मिटे, नित गुन गाइए|
ज्ञान, बुधि, भासा, भाव, तन्नक न हो अभाव, बिनत रहे सुभाव, गुनन सराहिए|
किसी से नाता लें जोड़, कब्बो जाएँ नहीं तोड़, फालतू न करें होड़, नेह सों निबाहिए|
हाथन तिरंगा थाम, करें सदा राम-राम, 'सलिल' से हों न वाम, देस-वारी जाइए||
छत्तीसगढ़ी
अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान, धरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे|
बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव, महुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे|
बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय, थोरको न ओतियाय, टूरी इठलावथे|
भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल, घोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे||
निमाड़ी
गधा का माथा का सिंग, जसो नेता गुम हुयो, गाँव खs बटोsर वोsट, उल्लूs की दुम हुयो|
मनखs को सुभाsव छे, नहीं सहे अभाव छे, हमेसs खांव-खांव छे, आपs से तुम हुयो|
टीला पाणी झाड़s नद्दी, हाय खोद रएs पिद्दी, भ्रष्टs सरsकारs रद्दी, पता नामालुम हुयो|
'सलिल' आँसू वादsला, धsरा कहे खाद ला, मिहsनतs का स्वाद पा, दूरs माsतम हुयो||
मालवी:
दोहा:
भणि ले म्हारा देस की, सबसे राम-रहीम|
जल ढारे पीपल तले, अँगना चावे नीम||
कवित्त
शरद की चांदणी से, रात सिनगार करे, बिजुरी गिरे धरा पे, फूल नभ से झरे|
आधी राती भाँग बाटी, दिया की बुझाई बाती, मिसरी-बरफ़ घोल्यो, नैना हैं भरे-भरे|
भाभीनी जेठानी रंगे, काकीनी मामीनी भीजें, सासू-जाया नहीं आया, दिल धीर न धरे|
रंग घोल्यो हौद भर, बैठी हूँ गुलाल धर, राह में रोके हैं यार, हाय! टारे न टरे||
राजस्थानी
जीवण का काचा गेला, जहाँ-तहाँ मेला-ठेला, भीड़-भाड़ ठेलं-ठेला, मोड़ तरां-तरां का|
ठूँठ सरी बैठो काईं?, चहरे पे आई झाईं, खोयी-खोयी परछाईं, जोड़ तरां-तरां का|
चाल्यो बीज बजारा रे?, आवारा बनजारा रे?, फिरता मारा-मारा रे?, होड़ तरां-तरां का.||
नाव कनारे लागैगी, सोई किस्मत जागैगी, मंजिल पीछे भागेगी, तोड़ तरां-तरां का||
हिन्दी+उर्दू
दर्दे-दिल पीरो-गम, किसी को दिखाएँ मत, दिल में छिपाए रखें, हँस-मुस्कुराइए|
हुस्न के न ऐब देखें, देखें भी तो नहीं लेखें, दिल पे लुटा के दिल, वारी-वारी जाइए|
नाज़ो-अदा नाज़नीं के, देख परेशान न हों, आशिकी की रस्म है कि, सिर भी मुड़ाइए|
चलिए न ऐसी चाल, फालतू मचे बवाल, कोई न करें सवाल, नखरे उठाइए||
भोजपुरी
चमचम चमकल, चाँदनी सी झलकल, झपटल लपकल, नयन कटरिया|
तड़पल फड़कल, धक्-धक् धड़कल, दिल से जुड़ल दिल, गिरल बिजुरिया|
निरखल परखल, रुक-रुक चल-चल, सम्हल-सम्हल पग, धरल गुजरिया|
छिन-छिन पल-पल, पड़त नहीं रे कल, मचल-मचल चल, चपल संवरिया||
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राजस्थानी मुक्तिकाएँ :
संजीव 'सलिल'
*
१. ... तैर भायला
लार नर्मदा तैर भायला.
बह जावैगो बैर भायला..
गेलो आपून आप मलैगो.
मंजिल की सुण टेर भायला..
मुसकल है हरदां सूँ खडनो.
तू आवैगो फेर भायला..
घणू कठिन है कविता करनो.
आकासां की सैर भायला..
सूल गैल पै यार 'सलिल' तूं.
चाल मेलतो पैर भायला..
*
२. ...पीर पराई
देख न देखी पीर पराई.
मोटो वेतन चाट मलाई..
इंगरेजी मां गिटपिट करल्यै.
हिंदी कोनी करै पढ़ाई..
बेसी धन स्यूं मन भरमायो.
सूझी कोनी और कमाई..
कंसराज नै पटक पछाड्यो.
करयो सुदामा सँग मिताई..
भेंट नहीं जो भारी ल्यायो.
बाके नहीं गुपाल गुसाईं..
उजले कपड़े मैले मन ल्ये.
भवसागर रो पार न पाई..
लडै हरावल वोटां खातर.
लोकतंत्र नै कर नेताई..
जा आतंकी मार भगा तूं.
ज्यों राघव ने लंका ढाई..
४.१.२०२०
***
एक कविता:
कौन हूँ मैं?...
*
क्या बताऊँ, कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.
दूरियों को नापता हूँ.
दिशाओं में व्यापता हूँ.
काल हूँ कलकल निनादित
कँपाता हूँ, काँपता हूँ.
जलधि हूँ, नभ हूँ, धरा हूँ.
पवन, पावक, अक्षरा हूँ.
निर्जरा हूँ, निर्भरा हूँ.
तार हर पातक, तरा हूँ..
आदि अर्णव सूर्य हूँ मैं.
शौर्य हूँ मैं, तूर्य हूँ मैं.
अगम पर्वत कदम चूमें.
साथ मेरे सृष्टि झूमे.
ॐ हूँ मैं, व्योम हूँ मैं.
इडा-पिंगला, सोम हूँ मैं.
किरण-सोनल साधना हूँ.
मेघना आराधना हूँ.
कामना हूँ, भावना हूँ.
सकल देना-पावना हूँ.
'गुप्त' मेरा 'चित्र' जानो.
'चित्त' में मैं 'गुप्त' मानो.
अर्चना हूँ, अर्पिता हूँ.
लोक वन्दित चर्चिता हूँ.
प्रार्थना हूँ, वंदना हूँ.
नेह-निष्ठा चंदना हूँ.
ज्ञात हूँ, अज्ञात हूँ मैं.
उषा, रजनी, प्रात हूँ मैं.
शुद्ध हूँ मैं, बुद्ध हूँ मैं.
रुद्ध हूँ, अनिरुद्ध हूँ मैं.
शांति-सुषमा नवल आशा.
परिश्रम-कोशिश तराशा.
स्वार्थमय सर्वार्थ हूँ मैं.
पुरुषार्थी परमार्थ हूँ मैं.
केंद्र, त्रिज्या हूँ, परिधि हूँ.
सुमन पुष्पा हूँ, सुरभि हूँ.
जलद हूँ, जल हूँ, जलज हूँ.
ग्रीष्म, पावस हूँ, शरद हूँ.
साज, सुर, सरगम सरस हूँ.
लौह को पारस परस हूँ.
भाव जैसा तुम रखोगे
चित्र वैसा ही लखोगे.
स्वप्न हूँ, साकार हूँ मैं.
शून्य हूँ, आकार हूँ मैं.
संकुचन-विस्तार हूँ मैं.
सृष्टि का व्यापार हूँ मैं.
चाहते हो देख पाओ.
सृष्ट में हो लीन जाओ.
रागिनी जग में गुंजाओ.
द्वेष, हिंसा भूल जाओ.
विश्व को अपना बनाओ.
स्नेह-सलिला में नहाओ..
***
हिंदी वंदना
हिंद और हिंदी की जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
*
भाषा सहोदरी होती है, हर प्राणी की
अक्षर-शब्द बसी छवि, शारद कल्याणी की
नाद-ताल, रस-छंद, व्याकरण शुद्ध सरलतम
जो बोले वह लिखें-पढ़ें, विधि जगवाणी की
संस्कृत सुरवाणी अपना, गलहार करें हम
हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
*
असमी, उड़िया, कश्मीरी, डोगरी, कोंकणी,
कन्नड़, तमिल, तेलुगु, गुजराती, नेपाली,
मलयालम, मणिपुरी, मैथिली, बोडो, उर्दू
पंजाबी, बांगला, मराठी सह संथाली
सिंधी सीखें बोल, लिखें व्यवहार करें हम
हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
*
ब्राम्ही, प्राकृत, पाली, बृज, अपभ्रंश, बघेली,
अवधी, कैथी, गढ़वाली, गोंडी, बुन्देली,
राजस्थानी, हल्बी, छत्तीसगढ़ी, मालवी,
भोजपुरी, मारिया, कोरकू, मुड़िया, नहली,
परजा, गड़वा, कोलमी से सत्कार करें हम
हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
*
शेखावाटी, डिंगल, हाड़ौती, मेवाड़ी
कन्नौजी, मागधी, खोंड, सादरी, निमाड़ी,
सरायकी, डिंगल, खासी, अंगिका, बज्जिका,
जटकी, हरयाणवी, बैंसवाड़ी, मारवाड़ी,
मीज़ो, मुंडारी, गारो मनुहार करें हम
हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
*
देवनागरी लिपि, स्वर-व्यंजन, अलंकार पढ़
शब्द-शक्तियाँ, तत्सम-तद्भव, संधि, बिंब गढ़
गीत, कहानी, लेख, समीक्षा, नाटक रचकर
समय, समाज, मूल्य मानव के नए सकें मढ़
'सलिल' विश्व, मानव, प्रकृति-उद्धार करें हम
हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम
****
गीत में ५ पद ६६ (२२+२३+२१) भाषाएँ / बोलियाँ हैं।
***
एक द्विपदी :
*
मन अमन की चाह में भटका किया है
भले बेमन ही सही पर मन जिया है
*
***
दोहा सलिला :
*
इधर घोर आतंक है, उधर तीव्र भूडोल
रखें सियासत ताक पर, विष में अमृत घोल
*
गर्व शहीदों पर अगर, उनसे लें कुछ सीख
अनुशासन बलिदान के, पथ पर आगे दीख
*
प्राण निछावर कर गये, जो कर उन्हें सलाम
शपथ उठायें आयेंगे, ;सलिल' देश के काम
*
आतंकी यह चाहते, बातचीत हो बंद
ठेंगा उन्हें दिखाइए, करें न वार्ता मंद
*
सेना भारत-पाक की, मिल जाए यदि साथ
दहशतगर्दों को कुचल, बढ़े उठाकर माथ
*
अखबारी खबरें रहीं, वातावरण बिगाड़
ज्यों सुन्दर उद्यान में, उगें जंगली झाड़
*
सबसे पहले की न हो, यदि आपस में होड़
खबरी चैनल ना करें, सच की तोड़-मरोड़
*
संयम बरत नहीं सके,पत्रकार नादान
रुष्ट हुआ नेपाल पर,उन्हें नहीं है भान
*
दूरदर्शनी बहस का, होता ओर न छोर
सत्य न कोई बोलता, सब मिल करते शोर
४-१-२०१६
***
नवगीत:
.
संक्रांति काल है
जगो, उठो
.
प्रतिनिधि होकर जन से दूर
आँखें रहते भी हो सूर
संसद हो चौपालों पर
राजनीति तज दे तंदूर
संभ्रांति टाल दो
जगो, उठो
.
खरपतवार न शेष रहे
कचरा कहीं न लेश रहे
तज सिद्धांत, बना सरकार
कुर्सी पा लो, ऐश रहे
झुका भाल हो
जगो, उठो
.
दोनों हाथ लिये लड्डू
रेवड़ी छिपा रहे नेता
मुँह में लैया-गज़क भरे
जन-गण को ठेंगा देता
डूबा ताल दो
जगो, उठो
.
सूरज को ढाँके बादल
सीमा पर सैनिक घायल
नाग-सांप फिर साथ हुए
गुँजा रहे बंसी-मादल
छिपा माल दो
जगो, उठो
.
नवता भरकर गीतों में
जन-आक्रोश पलीतों में
हाथ सेंक ले कवि तू भी
जाए आज अतीतों में
खींच खाल दो
जगो, उठो
*
***
नवगीत:
.
गोल क्यों?
चक्का समय का गोल क्यों?
.
कहो होती
हमेशा ही
ढोल में कुछ पोल क्यों?
.
कसो जितनी
मिले उतनी
प्रशासन में झोल क्यों?
.
रहे कड़के
कहे कड़वे
मुफलिसों ने बोल क्यों?
.
कह रहे कुछ
कर रहे कुछ
ओढ़ नेता खोल क्यों?
.
मान शर्बत
पी गये सत
हाय पाकी घोल क्यों?
...
नवगीत:
.
भारतवारे बड़े लड़ैया
बिनसें हारे पाक सियार
.
घेर लओ बदरन नें सूरज
मचो सब कऊँ हाहाकार
ठिठुरन लगें जानवर-मानुस
कौनौ आ करियो उद्धार
बही बयार बिखर गै बदरा
धूप सुनैरी कहे पुकार
सीमा पार छिपे बनमानुस
कबऊ न पइयो हमसें पार
.
एक सिंग खों घेर भलई लें
सौ वानर-सियार हुसियार
गधा ओढ़ ले खाल सेर की
देख सेर पोंके हर बार
ढेंचू-ढेचूँ रेंक भाग रओ
करो सेर नें पल मा वार
पोल खुल गयी, हवा निकर गयी
जान बखस दो करें पुकार
(प्रयुक्त छंद: आल्हा, रस: वीर, भाषा रूप: बुंदेली)
...

नवगीत:
संजीव
.
करना सदा
वह जो सही
.
तक़दीर से मत हों गिले
तदबीर से जय हों किले
मरुभूमि से जल भी मिले
तन ही नहीं मन भी खिले
वरना सदा
वह जो सही
भरना सदा
वह जो सही
.
गिरता रहा, उठता रहा
मिलता रहा, छिनता रहा
सुनता रहा, कहता रहा
तरता रहा, मरता रहा
लिखना सदा
वह जो सही
दिखना सदा
वह जो सही
.
हर शूल ले, हँस फूल दे
यदि भूल हो, मत तूल दे
नद-कूल को पग-धूल दे
कस चूल दे, मत मूल दे
सहना सदा
वह जो सही
तहना सदा
वह जो सही
(प्रयुक्त छंद: हरिगीतिका)
...
नवगीत:
.
भारतवारे बड़े लड़ैया
बिनसें हारे पाक सियार
.
घेर लओ बदरन नें सूरज
मचो सब कऊँ हाहाकार
ठिठुरन लगें जानवर-मानुस
कौनौ आ करियो उद्धार
बही बयार बिखर गै बदरा
धूप सुनैरी कहे पुकार
सीमा पार छिपे बनमानुस
कबऊ न पइयो हमसें पार
.
एक सिंग खों घेर भलई लें
सौ वानर-सियार हुसियार
गधा ओढ़ ले खाल सेर की
देख सेर पोंके हर बार
ढेंचू-ढेचूँ रेंक भाग रओ
करो सेर नें पल मा वार
पोल खुल गयी, हवा निकर गयी
जान बखस दो करें पुकार
(प्रयुक्त छंद: आल्हा, रस: वीर, भाषा रूप: बुंदेली)
४.१.२०१५
***
नवगीत:
संजीव
.
उगना नित
हँस सूरज
धरती पर रखना पग
जलना नित, बुझना मत
तजना मत, अपना मग
छिपना मत, छलना मत
चलना नित
उठ सूरज
लिखना मत खत सूरज
दिखना मत बुत सूरज
हरना सब तम सूरज
करना कम गम सूरज
मलना मत
कर सूरज
कलियों पर तुहिना सम
कुसुमों पर गहना बन
सजना तुम सजना सम
फिरना तुम भँवरा बन
खिलना फिर
ढल सूरज
***
२.१.२०१५