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गुरुवार, 28 नवंबर 2024

नवंबर २८, मैथिली पूर्णिका, कनेर, माहिया, सोरठा, पंजाब, व्यंग्य गीत, घनाक्षरी, लघुकथा

सलिल सृजन नवंबर २८
*
मैथिली पूर्णिका
*
बाँटबो साहित्य
नहिं किओ पढ़ल

गुटबाजी खूम
असरदार रहल

चमचा बनि गेल
जे ओही बढ़ल

कविताक उद्देश्य
अर्थ नहिं रख

बेतुका रिवाज
स्वार्थ-सिद्धि पुजल

समाजक विनाश
राजनीति करल

धरातल प' आउ
'सलिल' सत्य कहल
***
कनेर पर दोहे
हों प्रसन्न श्री लक्ष्मी, घर में देख कनेर। पीला-श्वेत लगाइए, बाहर लाल अबेर।।
*
जहरीला पर कर रहा, खुद मिट जगत निरोग।
जय कनेर की कीजिए, भोग न ज्यादा भोग।।
*
बारह मास हरा रहे, धूप-छाँव हँस झेल।
करे आचरण कणगिले, संत सदृश रख मेल।।
***
एक सोरठा
सोलह करिए दान, सोलह करिए कार्य अरु।
सात वचन लें मान, सत चिरजीवी जानिए।।
सोलह संस्कार: गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, कर्णभेद, उपनयन, वेदारम्भ, विवाह. समावर्तन, वानप्रस्थ, संन्यास तथा अंत्येष्टि।
सोलह दान: छत्र, सेज, फल, पान, स्वर्ण, रजत, गौ, पुष्प, भू।
दीप, गंध, कुश, दान अन्न, वस्त्र, जल, पादुका।।
सात चिरंजीवी: बलि, व्यास, विभीषण, हनुमान, कृपाचार्य, परशुराम और अश्वत्थामा।
सात वचन: साथ यात्रा, संबंधी सम्मान, आजीवन साथ, पारिवारिक दायित्व, सहमति, व्यसन त्याग, संयम।
२८.११.२०१४
***
माहिया
भारत को जानें हम
मातृ भूमि अपनी
गुण गा पहचानें हम।
*
पंजाब अनोखा है।
पाँच नदी; गिद्धा
भंगड़ा भी चोखा है।।
*
गुरु नानक की बानी
सुन अमरित चखिए
है यह शुभ कल्याणी।।
*
जिंदादिल पंजाबी
मुश्किल से लड़ते
किंचित न कभी डरते।।
***
पंजाब परिचय
*
हंसवाहिनी मातु कर, कृपा मिले वरदान।
बुद्धि ज्ञान मति कला ध्वनि, नाद ताल विज्ञान।
भारत के गुण गा सकूँ, मैया देना शक्ति।
हिंदी में कह-कर सकूँ, मैया भारत-भक्ति।।
भारत को जानें वही, जो ममता से युक्त।
पानी पी पंजाब का, करें भाँगड़ा मुक्त।।
गुरु नानक की वाणी अनुपम। वाहे गुरु फहराया परचम।।
'सत श्री काल' करें अभिवादन। बलिदानी हों फागुन-सावन।।
हरमंदिर साहिब अमृतसर। पंथ खालसा सबसे बढ़कर।
गुरु गोबिंदसिंह अजरामर। सिंह रणजीत वीर नर नाहर।।
वीणा पर ओंकार गूँजता। शिव-श्री; वास्तव जगत पूजता।।
कृषि; धनेश्वरी धारा घर घर। चंचल रेखा गिद्धा सस्वर।।
है अनुपम मिठास गन्ने में। तनिक न कम माहिये सुनने में।।
ले मन जीत गोगिआ कैनी। ईद गले मिल खा ले फैनी।।
बैसाखी पुष्पा बसंत है। सिक्खी-साखी दिग-दिगंत है।।
अंजलि में अनुराधा खुशियाँ। श्वास सुनीता ले गलबहियाँ।।
सतलज रावी व्यास जल, शक्ति न राज्य विपन्न।
झेलम और चिनाब तट, रहे सलिल संपन्न।।
२८.११.२०२१
***
मुक्तक
*
रात गई है छोड़कर यादों की बारात
रात साथ ले गई है साँसों के नग्मात
रात प्रसव पीड़ा से रह एकाकी मौन
रात न हो तो किस तरह कहिए आए प्रात
*
कोशिश पति को रात भर रात सुलाती थाम
श्रांत-क्लांत श्रम-शिशु को दे जी भर आराम
काट आँख ही आँख में रात उनींदी रात
सहे उपेक्षा मौन रह ऊषा ननदी वाम
२८-११-२०२०
*
एक व्यंग्य गीत
*
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
'विथ डिफ़रेंस' पार्टी अद्भुत, महबूबा से पेंग लड़ावै
बात न मन की हो पाए तो, पलक झपकते जेल पठावै
मनमाना किरदारै सब कछु?
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
कम जनमत पा येन-केन भी, लपक-लपक सरकार बनावै
'गो-आ' खेल आँख में धूला, झोंक-झोंककर वक्ष फुलावै
सत्ता पा फुँफकारै सब कछु?
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
मिले पटकनी तो रो-रोकर, नाहक नंगा नाच दिखावै
रातों रात शपथ लै छाती, फुला-फुला धरती थर्रावै
कैसऊ करो, जुगारै सब कछु
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
जोड़ी पूँजी लुटा-खर्चकर, धनपतियों को शीश चढ़ावै
रोजगार पर डाका डाले, भूखों को कानून पढ़ावै
अफरा पेट, डकारै सब कछु?
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
सरकारी जमीनसेठों को दै दै पार्टी फंड जुटावै
असफलता औरों पर थोपे, दिशाहीन हर कदम उठावै
गुंडा बन दुत्कारै सब कछु?
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
२८.११.२०१९
***
नवगीत
कहता मैं स्वाधीन
*
संविधान
इस हाथ से
दे, उससे ले छीन।
*
जन ही जनप्रतिनिधि चुने,
देता है अधिकार।
लाद रहा जन पर मगर,
पद का दावेदार।।
शूल बिछाकर
राह में, कहे
फूल लो बीन।
*
समता का वादा करे,
लगा विषमता बाग।
चीन्ह-चीन्ह कर बाँटता,
रेवड़ी, दूषित राग।।
दो दूनी
बतला रहा हाय!
पाँच या तीन।
*
शिक्षा मिले न एक सी,
अवसर नहीं समान।
जनभाषा ठुकरा रह,
न्यायालय मतिमान।।
नीलामी है
न्याय की
काले कोटाधीन।
*
तब गोरे थे, अब हुए,
शोषक काले लोग।
खुर्द-बुर्द का लग गया,
इनको घातक रोग।।
बजा रहा है
भैंस के, सम्मुख
जनगण बीन।
*
इंग्लिश को तरजीह दे,
हिंदी माँ को भूल।
चंदन फेंका गटर में,
माथे मलता धूल।।
भारत को लिख
इंडिया, कहता
मैं स्वाधीन।
***
घनाक्षरी
*
नागनाथ साँपनाथ, जोड़ते मिले हों हाथ, मतदान का दिवस, फिर निकट है मानिए।
चुप रहे आज तक, अब न रहेंगे अब चुप, ई वी एम से जवाब, दें न बैर ठानिए।।
सारी गंदगी की जड़, दलवाद है 'सलिल', नोटा का बटन चुन, निज मत बताइए-
लोकतंत्र जनतंत्र, प्रजातंत्र गणतंत्र, कैदी न दलों का रहे, नव आजादी लाइए।। ***
२८-११-२०१८
***
लघुकथा-
विकल्प
पहली बार मतदान का अवसर पाकर वह खुद को गौरवान्वित अनुभव कर रहा था। एक प्रश्न परेशान कर रहा था कि किसके पक्ष में मतदान करे? दल की नीति को प्राथमिकता दे या उम्मीदवार के चरित्र को? उसने प्रमुख दलों का घोषणापत्र पढ़े, दूरदर्शन पर प्रवक्ताओं के वक्तव्य सुने, उम्मीदवीरों की शिक्षा, व्यवसाय, संपत्ति और कर-विवरण की जानकारी ली। उसकी जानकारी और निराशा लगातार बढ़ती गई।
सब दलों ने धन और बाहुबल को सच्चरित्रता और योग्यता पर वरीयता दी थी। अधिकांश उम्मीदवारों पर आपराधिक प्रकरण थे और असाधारण संपत्ति वृद्धि हुई थी। किसी उम्मीदवार का जीवनस्तर और जीवनशैली सामान्य मतदाता की तरह नहीं थी।
गहन मन-मंथन के बाद उसने तय कर लिया था कि देश को दिशाहीन उम्मीदवारों के चंगुल से बचाने और राजनैतिक अवसरवादी दलों के शिकंजे से मुक्त रखने का एक ही उपाय है। मात्रों से विमर्श किया तो उनके विचार एक जैसे मिले। उन सबने परिवर्तन के लिए चुन लिया 'नोटा' अर्थात 'कोई नहीं' का विकल्प।
२८-११-२०१८
***
दोहा सलिला
*
तज कर वाद-विवाद कर, आँसू का अनुवाद.
राग-विराग भुला "सलिल", सुख पा कर अनुराग.
.
भट का शौर्य न हारता, नागर धरता धीर.
हरि से हारे आपदा, बौनी होती पीर.
.
प्राची से आ अरुणिमा, देती है संदेश.
हो निरोग ले तूलिका, रच कुछ नया विशेष.
.
साँस पटरियों पर रही, जीवन-गाड़ी दौड़.
ईधन आस न कम पड़े, प्यास-प्रयास ने छोड़.
.
इसको भारी जिलहरी, भक्ति कर रहा नित्य.
उसे रुची है तिलहरी, लिखता सत्य अनित्य.
.
यह प्रशांत तर्रार वह, माया खेले मौन.
अजय रमेश रमा सहित, वर्ना पूछे कौन?
.
सत्या निष्ठा सिंह सदृश, भूली आत्म प्रताप.
स्वार्थ न वर सर्वार्थ तज, मिले आप से आप.
.
नेह नर्मदा में नहा, कलकल करें निनाद.
किलकिल करे नहीं लहर, रहे सदा आबाद.
२८.११.२०१७
.
मुक्तक
आइये मिलकर गले मुक्तक कहें
गले शिकवे गिले, हँस मुक्तक कहें
महाकाव्यों को न पढ़ते हैं युवा
युवा मन को पढ़ सके, मुक्तक कहें
*
बहुत सुन्दर प्रेरणा है
सत्य ही यह धारणा है
यदि न प्रेरित हो सका मन
तो मिली बहु तारणा है
*
कार्यशाला में न आये, वाह सर!
आये तो कुछ लिख न लाये, वाह सर!
आप ही लिखते रहें, पढ़ते रहें
कौन इसमें सर खपाए वाह सर!
*
जगाते रहते गुरूजी मगर सोना है
जागता है नहीं है जग यही रोना है
कह रहे हम पा सकें सब इसी जीवन में
जबकि हम यह जानते सब यहीं खोना है
२८.११.१०१६
***
मुक्तिका:
[इस रचना में हिंदी की राजस्थानी भंगिमा के उपयोग का प्रयास है. अनजानी त्रुटियों हेतु अग्रिम क्षमा प्रार्थना]
*
म्हारे आँगण चंदा उतरे, आस करूँ हूँ
नाचूँ-गाऊँ, हाथाँ माँ आकास भरूँ हूँ
.
म्हारी दोनों फूटें, थारी एक फोड़ दूँ
पड़यो अकाल पे पत्थर, सत्यानास करूँ हूँ
.
लाग्या छूट्या नहीं, प्रीत-रँग चढ़यो शीस पै
किसन नहीं हूँ, पर राधा सूँ रास करूँ हूँ
.
दिवलै काणी दीठ धरूँला, कपड़ छाणकर
अबकालै सब सुपना बेचूँ, हास करूँ हूँ
.
आमू-सामू बात करैलो रामू भैया!
सुपना हाली, सगली बाताँ खास करूँ हूँ
.
उणियारे रै बसणों चावूँ चित्त-च्यानणै
रचणों चावूँ म्है खुद नै परिहास करूँ हूँ
.
जूझल रै ताराँ नै तोड़र रात-रात भर
मुलकण खातर नाहक 'सलिल' प्रयास करूँ हूँ
***
मुक्तिका (राजस्थानी)
लोग
*
कोरा सुपणां बुणताँ लोग
क्यूँ बैठा सिर धुणतां लोग
.
गैर घराणी को तकतां
गेल बुरी ही चुणतां लोग।
.
ठकुरसुहाती भली लगै
बातां भली न सुणतां लोग
.
दोष छुपाया बग्लयाँ में
गेहूँ जैसा घुणतां लोग
.
कुण निर्दोष पखेरू रा
मारूँ-खाऊँ गुणतां लोग
***
मुक्तिका :
रूप की धूप
*
रूप की धूप बिखर जाए तो अच्छा होगा
रूप का रूप निखर आए तो अच्छा होगा
*
दिल में छाया है अँधेरा सा सिमट जाएगा
धूप का भूप प्रखर आए तो अच्छा होगा
*
मन हिरनिया की तरह खूब कुलाचें भरना
पीर की पीर निथर आए तो अच्छा होगा
*
आँख में झाँक मिले नैन से नैना जबसे
झुक उठे लड़ के मिले नैन तो अच्छा होगा
*
भरो अँजुरी में 'सलिल' रूप जो उसका देखो
बिको बिन मोल हो अनमोल तो अच्छा होगा
२८.११.२०१५
***
नवगीत:
गीत पुराने छायावादी
मरे नहीं
अब भी जीवित हैं.
तब अमूर्त
अब मूर्त हुई हैं
संकल्पना अल्पनाओं की
कोमल-रेशम सी रचना की
छुअन अनसजी वनिताओं सी
गेहूँ, आटा, रोटी है परिवर्तन यात्रा
लेकिन सच भी
संभावनाऐं शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
बिम्ब-प्रतीक
वसन बदले हैं
अलंकार भी बदल गए हैं.
लय, रस, भाव अभी भी जीवित
रचनाएँ हैं कविताओं सी
लज्जा, हया, शर्म की मात्रा
घटी भले ही
संभावनाऐं प्रणय-मिलन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
कहे कुंडली
गृह नौ के नौ
किन्तु दशाएँ वही नहीं हैं
इस पर उसकी दृष्टि जब पडी
मुदित मग्न कामना अनछुई
कौन कहे है कितनी पात्रा
याकि अपात्रा?
मर्यादाएँ शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
***
त्रिपदियाँ
प्राण फूँक निष्प्राण में, गुंजित करता नाद
जो- उससे करिये 'सलिल', आजीवन संवाद
सुख-दुःख जो वह दे गहें, हँस- न करें फ़रियाद।
*
शर्मा मत गलती हुई, कर सुधार फिर झूम
चल गिर उठ फिर पग बढ़ा, अपनी मंज़िल चूम
फल की आस किये बिना, काम करे हो धूम।
*
करी देश की तिजोरी, हमने अब तक साफ़
लें अब भूल सुधार तो, खुदा करेगा माफ़?
भष्टाचार न कर- रहें, साफ़ यही इन्साफ।
२८.११.२०१४

*** 

बुधवार, 27 नवंबर 2024

नवंबर २७, कनेर, मुक्तक, मुक्तिका, नवगीत, लघुकथा

सलिल सृजन नवंबर २७
*
कनेर / करवीर

            कनेर सर्वकालिक उपयोगी लोकप्रिय, सुंदर पुष्प है। कनेर के फूल बेहद आकर्षक और अलग-अलग रंगों के होते हैं। इसकी एक बित्ता लंबी और आध अंगुल से एक अंगुल तक चौड़ी, नुकीली, कड़ी, ऊपर चिकनी, नीचे खुरदरी, गहरे हरे रंग की लगभग २० से. मी. लंबी, १.५ से. मी. चौड़ी दो-दो पत्तियाँ एक साथ आमने-सामने निकलती हैं । डाल में से सफेद दूध निकलता है। यह सफेद, पीला, गुलाबी और लाल ४ रंगों का होता है।  फूलों के झड़ जाने पर आठ दस अंगुल लंबी पतली पतली फलियाँ लगती हैं । फलियों के पकने पर उनके भीतर से बहुत छोटे-छोटे मदार की तरह रूई में लगे बीज निकलते हैं। कनेर के लगभग  ४ मीटर ऊँचे पौधे में लंबी-पतली डंडियाँ होती है। एक अन्य प्रकार के कनेर के पेड़ की पत्तियाँ पतली छोटी और अधिक चमकीली,  फूल बड़ा, पीले रंग का होता है। फूल गिरने पर उसमें लगे गोल  फल के भीतर गोल चिपटे बीज निकलते हैं। 

            कनेर को हिंदी में कनैल, करवीर, संस्कृत में शतकुंभ, अश्वमारक, अश्वघ्न, हयमार, तुरंगारि शतकुंद, स्थल-कुमुद्र, शकुद्र, चंडा, लगुद, भूतद्रावी, उर्दू में कनीर, अंग्रेजी में नेरियम ओलीएंडर, नेरियम इंडिकम, स्वीट सेन्टेड ओलिएन्डर, कॉमन ओलिएन्डर, सीलोन रोज, रोजबे,  आदि, ओड़िया  में कोनेरो/कोरोबीरो, कन्नड़ में कणगिले, गुजराती में कणेर, करेणकणहेर, तमिल मेंअलरी, तेलुगु मेंकस्तूरिपट्टा, गन्नेरू बांग्ला में कराबी, करबी, मराठी में कण्हेर, कनेरी, मलयालम में करवीरम, अरबी में दिफ्ली, सुमेलहीमर,  फारसी में खरजाह्राहकहा जाता है।                                                                                                                                                                                                                                      वास्तु शास्त्र के अनुसार सफेद और पीले रंग के कनेर फूल घर में लगाना बहुत शुभ होता है। कनेर के पौधे का संबंध देवी लक्ष्मी से माना जाता है। कनेर के पौधे को घर में लगाने से धन की देवी का वास स्थापित होता है। घर में मौजूद नकारात्मक शक्ति और बाधा दूर हो जाती है। कनेर को गाय, भेड़, बकरियाँ नहीं खातीं। यह बाड़ (हेच) हेतु उपयुक्त है।  घर में पश्चिम या पूर्व दिशा में सफेद या पीला कनेर लगाने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।  घर में लाल रंग के कनेर फूल वाले पौधा नहीं लगाना चाहिए । कनेर के पौधे को घर में लगाने से सुख, समृद्धि और धन संपन्नता का आगमन होता है। 
 
            वैद्यक ग्रंथों में  गुलाबी फूल और  काले; दो प्रकार के कनेर का उल्लेख मिलता है। काले रंग के कनेर की चर्चा  निघंटु रत्नाकर ग्रंथ में है। आज-कल काला कनेर अनुपलब्ध है। कनेर की जड़, पत्तियाँ, फूल तथा बीज विषैले होते है। कनेर गरम, कृमिनाशक,  घाव, कोढ़ और फोड़े-फुंसी आदि को दूर करता है।  इसकी छाल कड़वी भेदन व बुखार नाशक होती है। छाल की क्रिया बहुत ही तेज होती है, इसलिए इसे कम मात्रा में सेवन करते है। नहीं तो पानी जैसे पतले दस्त होने लगते हैं। कनेर का मुख्य विषैला परिणाम हृदय की मांसपेशियों पर होता है। कनेर का दूध शरीर की जलन को नष्ट करने वाला और विषैला होता है। कनेर का जहर डाइगाक्सीन ड्रग की तरह है। डाइगाक्सीन दिल की धड़कन की रफ्तार कम करता है। इसमें कार्डियक ग्लाइकोसाइड्स रसायन होता है, जिसमें ओलेंड्रिन, फोलिनेरिन और डिजिटॉक्सिजेनिन जैसे तत्त्व सम्मिलित हैं, जो हृदय पर औषधीय प्रभाव डाल सकते हैं। कनेर विषाक्तता के लक्षणों में मतली, दस्त, उल्टी, चकत्ते, भ्रम, चक्कर आना, अनियमित हृदय गति, मंद ह्रदय गति और गंभीर मामलों में मृत्यु होना शामिल हैं।

            भावप्रकाश के अनुसार यह संक्रमित घावों, त्वचा रोगों, रोगाणुओं एवं परजीवियों तथा खुजली के उपचार में उपयोगी है। सफेद कुष्ठ की चिकित्सा के लिए सफेद फूल वाले कनेर का बहुतायत प्रयोग किया जाता है। सफेद कनेर की जड़, कुटज-फल, करंज-फल, दारुहल्दी की छाल और चमेली की नयी पत्तियों को पीसकर लेप कुष्ठ रोग में लाभदायक होता है। कनेर के पत्तों का काढ़ा बनाकर नहाने योग्य जल में मिला लें। नियमित रूप से कुछ दिन तक स्नान करने से कुष्ठ रोग में बहुत लाभ होता है। कनेर के ५० ग्राम ताजे फूल १०० मि.ली. मीठे तेल में पीस लें। इसे एक हफ्ते तक रख दें। फिर २०० मिली जैतून के तेल में मिलाकर लगाएँ। इससे कुष्ठ रोग, सफेद दाग दूर होता है। सफेद कनेर के फूलों को पीसकर चेहरे पर मलने से चेहरे की कान्ति बढ़ती है।

            सफेद बालों को काला करने में कनेर फायदेमंद है। सिर से सफेद बालों को उखाड़ लें, या बालों को जड़ से काट लें। इस स्थान पर दूध में पिसे हुए कनेर की जड़ के पेस्ट का लेप करें। इससे बालों के सफेद होने की समस्या में लाभ होता है। बराबर मात्रा में हरीतकी, बहेड़ा, आँवला, कनेर की जड़ के साथ विजयसार, भृंगराज तथा गुड़ की मसी बनाकर बालों पर लेप करने से सफेद बालों की समस्या में लाभ होता है।यह कुष्ठ रोग जैसी दुःसाध्य और निरंतर बनी रहने वाली त्वचा की बीमारियों में लाभ दायक है। कनेर तथा दुग्धिका को कूट लें। इसे गोदधि के साथ मिलाकर सिर पर लेप करें। इससे बालों का असमय सफेद होना तथा गंजापन रोग में लाभ होता है।

            सिर दर्द  मिटाने के लिए कनेर के फूल तथा आँवले को काँजी में पीस लें। इसे मस्तक पर लेप करने से सिर का दर्द ठीक होता है। सफेद कनेर के पीले पत्तों को सुखाकर महीन पीस लें। सिर के जिस तरफ दर्द हो रहा हो उस तरफ से नाक में एक दो बार सूंघें। इस छींक आएगी और सिर दर्द ठीक हो जाएगा।

            ह्रदय रोग, बुखार, रक्त-विकार आदि में पीला कनेर का उपाय करने पर लाभ मिलता है।

            लिंग के ढीलेपन की समस्या हेतु १०  ग्राम सफेद कनेर की जड़ को पीसकार २० ग्राम घी में पकाएँ। ठंडा करके लिंग (कामेन्द्रिय) पर मालिश करें। इससे लिंग के कम तनाव (कामेन्द्रिय की शिथिलता) की समस्या दूर होती है। कनेर के ५० ग्राम ताजे फूलों को १०० मि.ली. मीठे तेल में पीस लें। इसे एक हफ्ते तक रख दें। फिर २०० मि.ली. जैतून के तेल में मिलाकर २-३ बार लगाएँ। इससे कामेन्द्रिय पर उभरी नसों, लिंग की कमजोरी की समस्या दूर होती है। सिफलिस (उपदंश) के घावों को कनेर-पत्तों के काढ़ा से  धोएँ। सफेद कनेर की जड़ पानी के साथ पीसकर उपदंश के घावों पर लगाएँ। इससे लाभ होता है।

            लकवा लगने पर कनेर के ५० ग्राम ताजे फूल १०० मि.ली. मीठे तेल में पीस लें। इसे एक हफ्ते तक रख दें। फिर २०० मिली जैतून के तेल में मिलाकर लगाएँ । सफेद कनेर की जड़ की छाल, सफेद गुंजा की दाल तथा काले धतूरे के पत्ते को समान मात्रा में लेकर पेस्ट बना लें। इसके बाद चार गुना जल लें। पेस्ट के बराबर मात्रा में तेल लें। सभी को कलई वाले बर्तन में धीमी आग पर पकाएं। जब केवल तेल शेष रह जाए तब कपड़े से छान लें। 

            अफीम की आदत ५० मि.ग्रा. कनेर की जड़ का महीन चूर्ण दूध के साथ कुछ हफ्ते तक दिन में दो बार खिलाते रहने से  छूट जाती है।
कीड़े-मकौड़े के काटने पर कनेर के पत्तों को तेल में पका लें। इससे मालिश करें। इससे आराम मिलता है। संक्रमण वाले कीड़े या जीव शरीर पर नहीं बैठते हैं।

            सांप के काटने पर पीले कनेर के पत्ते को १२५ से २५० मि.ग्रा. की मात्रा में या १-२ की संख्या में थोड़े-थोड़े अंतर पर देते रहें। इसके कारण उल्टी होकर सांप का विष उतर जाता है।

            जोड़ों के दर्द में कनेर के पत्तों को पीसकर तेल में मिलाकार बनाया  लेप करने लगाएँ। कनेर के ५० ग्राम ताजे फूलों को १०० मि.ली. मीठे तेल में पीस लें। इसे एक हफ्ते तक रख दें। फिर २०० मिली जैतून के तेल में मिलाकर लगाएं। इससे पीठ का दर्द, बदन दर्द दूर होता है।

             दाद में कनेर की जड़ की छाल को तेल में पकाकर, छान लें। इसे लगाने से दाद और अन्य त्वचा विकारों में लाभ होता है। कनेर के पत्तों से पकाए हुए तेल को लगाने से खुजली मिटती है। पीले कनेर के पत्ते या फूलों को जैतून के तेल में मिलाकर मलहम बना लें। इसे लगाने से हर प्रकार की खुजली में लाभ होता है।

            सफेद कनेर की डाली से दातुन करने पर दांतों का दर्द भी ठीक हो जाता है।

            कनेर सूखे का सामना करने की अपनी क्षमता के लिये लोकप्रिय है तथा इसका उपयोग आमतौर पर भूनिर्माण एवं सजावटी उद्देश्यों के लिये किया जाता है।

            यदि आपका कोई शत्रु आपको परेशान कर रहा है तो गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले लाल कनेर की जाली तोड़े और इसके सात टुकड़े लेकर उन्हें कपूर के साथ जला दें। किसी व्यक्ति पर मंगल दोष है तो रोजाना कनेर के पौधे की जड़ में जल चढ़ाएँ,  मौजूद मंगल दोष से मुक्ति मिलती है। कनेर का पौधा शुभ प्रभाव देता है। इसे घर में पश्चिम या नैऋत्य कोण में लगाना उत्तम रहता है।
***
मुक्तिका
*
ऋतुएँ रहीं सपना जगा।
मनु दे रहा खुद को दगा।।
*
अपना नहीं अपना रहा।
किसका हुआ सपना सगा।।
*
रखना नहीं सिर के तले
तकिया कभी पगले तगा।।
*
कहना नहीं रहना सदा
मन प्रेम में नित ही पगा।।
*
जिससे न हो कुछ वासता
अपना हमें वह ही लगा।।
***
मुक्तक
*
मतदान कर, मत दान कर, जो पात्र उसको मत
मिले।
सब जन अगर न पात्र हों, खुल कह, न रखना लब सिले।।
मत व्यक्त कर, मत लोभ-भय से, तू बदलना राय निज-
जन मत डरे, जनमत कहे, जनतंत्र तब फूले-फले।।
*
भाषा न भूषा, जात-नाता-कुल नहीं तुम देखना।
क्या योग्यता, क्या कार्यक्षमता, मौन रह अवलोकना।।
क्या नीति दल की?, क्या दिशा दे?, देश को यह सोचना-
उसको न चुनना जो न काबिल, चुन न खुद को कोसना।।
*
जो नीति केवल राज करने हेतु हो, वह त्याज्य है।
जो कर सके कल्याण जन का, बस वही आराध्य है।
जनहित करेगा खाक वह, दल-नीति से जो बाध्य है-
क्यों देश-हित में सत नहीं, आधार सच्चा साध्य है।।
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शासन-प्रशासन मात्र सेवक, लोक के स्वामी नहीं।
सुविधा बटोरें, भूल जनगण, क्या यही खामी नहीं?
भत्ते व वेतन तज सभी, जो लोकसेवा कर सके-
वही जनप्रतिनिधि बने, क्यों भरें सब हामी नहीं??
२७-११-२०१८
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नवगीत :
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अपने मुँह
अपना यश-गान।
*
अब भी हैं
धृतराष्ट्र धरा पर
आत्म-मोह से ग्रस्त।
जाते जिसके निकट
उसी को
करते हैं संत्रस्त।
अहंकार के
मारे को हो
कैसे सुख-संतोष?
देख न निज के दोष
दूसरों को
देते हैं दोष।
जनगण-जनमत
को ठुकराते
कर-पाते अपमान
अपने मुँह
अपना यश-गान।
*
आधा देखें,
आधा लेखें,
मुँह-देखी बोलें।
विष-रस भरा
कनक-घट दिखता
जब भी मुँह खोलें।
परख रहे
औरों की कृतियाँ,
छिपा रहे हैं
खुद की त्रुटियाँ।
माइक पकड़ें
जमकर जकड़ें
मन माना बोलें।
सीख सयानों की
बिसरादी
बात तनिक तोलें।
क्षमा न करता
समय, कुयश का
कोई नहीं निदान
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बर्दाश्तगी
*
एक शायर मित्र ने आग्रह किया कि मैं उनके द्वारा संपादित किये जा रहे हम्द (उर्दू काव्य-विधा जिसमें परमेश्वर की प्रशंसा में की गयी कवितायेँ) संकलन के लिये कुछ रचनाएँ लिख दूँ, साथ ही जिज्ञासा भी की कि इसमें मुझे, मेरे धर्म या मेरे धर्मगुरु को आपत्ति तो न होगी? मैंने तत्काल सहमति देते हुए कहा कि यह तो मेरे लिए ख़ुशी का वायस (कारण) है।
कुछ दिन बाद मित्र आये तो मैंने लिखे हुए हम्द सुनाये, उन्होंने प्रशंसा की और ले गये।
कई दिन यूँ ही बीत गये, कोई सूचना न मिली तो मैंने समाचार पूछा, उत्तर मिला वे सकुशल हैं पर किताब के बारे में मिलने पर बताएँगे। एक दिन वे आये कुछ सँकुचाते हुए। मैंने कारण पूछा तो बताया कि उन्हें मना कर दिया गया है कि अल्लाह के अलावा किसी और की तारीफ में हम्द नहीं कहा जा सकता जबकि मैंने अल्लाह के साथ- साथ चित्रगुप्त जी, शिव जी, विष्णु जी, ईसा मसीह, गुरु नानक, दुर्गा जी, सरस्वती जी, लक्ष्मी जी, गणेश जी व भारत माता पर भी हम्द लिख दिये थे। कोई बात नहीं, आप केवल अल्लाह पर लिख हम्द ले लें। उन्होंने बताया कि किसी गैरमुस्लिम द्वारा अल्लाह पर लिख गया हम्द भी क़ुबूल नहीं किया गया।
किताब तो आप अपने पैसों से छपा रहे हैं फिर औरों का मश्वरा मानें या न मानें यह तो आपके इख़्तियार में है -मैंने पूछा।
नहीं, अगर उनकी बात नहीं मानूँगा तो मेरे खिलाफ फतवा जारी कर हुक्का-पानी बंद दिया जाएगा। कोई मेरे बच्चों से शादी नहीं करेगा -वे चिंताग्रस्त थे।
अरे भाई! फ़िक्र मत करें, मेरे लिखे हुए हम्द लौटा दें, मैं कहीं और उपयोग कर लूँगा। मैंने उन्हें राहत देने के लिए कहा।
उन्हें तो कुफ्र कहते हुए ज़ब्त कर लिया गया। आपकी वज़ह से मैं भी मुश्किल में पड़ गया -वे बोले।
कैसी बात करते हैं? मैं आप के घर तो गया नहीं था, आपकी गुजारिश पर ही मैंने लिखे, आपको ठीक न लगते तो तुरंत वापिस कर देते। आपके यहां के अंदरूनी हालात से मुझे क्या लेना-देना? मुझे थोड़ा गरम होते देख वे जाते-जाते फिकरा कस गये 'आप लोगों के साथ यही मुश्किल है, बर्दाश्तगी का माद्दा ही नहीं है।'
२७.११.२०१५
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