शिव निष्कल निर्मल सकल,
सजा कलानिधि माथ।
कलाकोकिला उमापति,
शिव पा कला सनाथ।।
*
शिव पिंडी अणु-कणमयी
रूप न जहां विकार।
सिमटे तो हो शून्य ही,
फैल अनंत-अपार।।
*
सृष्टि स्थिती संहार शिव,
तिरोभाव शिव आप।
अनुग्रह पंचम कर्म से,
शिव रहते जग-व्याप।।
*
ब्रम्हा को छल-दण्ड दे,
कहा न पूजन-पात्र।
पछताए विधि, क्षमा पा,
यज्ञ-पूज्य हैं मात्र।।
*
ब्रम्ह-शीश गल-माल कर,
मिटा दिया हर बैर।
भैरव भी शिव-मूर्ति हैं,
मांग रहा जग खैर।।
*
असत-संग कर केतकी,
हर-पूजन से दूर।
शापित, सत्पथ वरण कर,
हरि पूजे, मद चूर।।
*
'अउम' ॐ शिव-बीज जप,
नश्वर होंगे मुक्त।
मंत्र-जाप बिन ॐ के,
हो न सके फल-युक्त।।
*
२३.१.२०१८, जबलपुर
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
मंगलवार, 23 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें