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बुधवार, 17 जनवरी 2018

doha duniya

दोहा दुनिया
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शिव में खुद को देख मन,
मनचाहा है रूप।
शिव को खुद में देख ले,
हो जा तुरत अरूप।।
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शिव की कर ले कल्पना,
जैसी वैसा जान।
शिव को कोई भी कहाँ,
कब पाया अनुमान?
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शिव जैसे शिव मात्र हैं,
शिव सा कोई न अन्य।
आदि-अंत, नागर सहज,
सादि-सांत शिव वन्य।। 
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शिव से जग उत्पन्न हो,
शिव में ही हो लीन।
शिवा शक्ति अपरा-परा,
जड़-चेतन तल्लीन।।
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'भग' न अंग,ऐश्वर्य षड,
धर्म ज्ञान वैराग।
सुख समृद्धि यश समन्वित,
'लिंग' सृजन-अनुराग।।
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राग-विराग समीप आ,
बन जाते भगवान।
हों प्रवृत्ति तब भगवती,
कर निवृत्ति का दान।।
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ज्योति लिंग शिव सनातन,
ज्योतिदीप हैं शक्ति।
दोनों एकाकार हो,
देते भाव से मुक्ति।।
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१७-१-२०१८ 
   
 




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