शिव न कर्म करते कभी,
होकर मोहाधीन।
शिव न कर्म तजते कभी,
हो भय-द्रोहाधीन।।
*
शिव जी परम प्रशांत हैं,
शिव ही परम अशांत।
काम क्रोध मद जयी हैं,
होते कभी न भ्रांत।।
*
शिव को बाहर खोज मत,
अंतर्मन में झांक।
शिव तत्त्वों का आइना,
लेकर खुद को आंक।।
*
शिव सत-सुंदर समुच्चय,
शिव ही हैं जग-प्राण।
सत्-चित्-आनंद हैं शिवा,
शिव बिन सब निष्प्राण।।
*
जो सब का शुभ सोचकर,
करता सारे काम।
सच्चा शिव-पूजक वही,
रहता सदा अनाम।।
***
१३.१.२०१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 13 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
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