शिव अनेक से एक हों,
शिव हैं शुद्ध विवेक.
हों अनेक पुनि एक से,
नेक न कभी अ-नेक.
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शिव ही सबके प्राण हैं,
शिव में सबके प्राण.
धूनी रचा मसान में,
शिव पल-पल संप्राण.
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शिव न चढावा चाहते,
माँगें नहीं प्रसाद.
शिव प्रसन्न हों यदि करे,
निर्मल मन फ़रियाद.
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शिव भोले हैं पर नहीं,
किंचित भी नादान.
पछताते छलिया रहे,
लड़े-गँवाई जान.
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हर भव-बाधा हर रहे,
हर पल हर रह मौन.
सबका सबसे हित सधे,
कहो ना चाहे कौन?
.
सबका हित जो कर रहा,
बिना मोह छल लोभ.
वह सच्चा शिवभक्त है,
जिसे न हो भय-क्षोभ.
.
शक्तिवान शिव, शक्ति हैं,
शिव से भिन्न न दूर.
चित-पट जैसे एक हैं,
ये कंकर वे धूर.
.....
4.1.2018
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 4 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
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