कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

दोहा दुनिया


शिव से यह संसार है, शिव का यह संसार।
शिव में यह संसार है, शिव अंसार में सार।।
*
जीव रूप शिव लिंग हैं, आत्म रूप शिव बिंदु।
देह रूप शिव पिंड हैं, नेह रूप शिव सिंधु।।
*
शिव से मोह न कीजिए, शिव से रहें न दूर।
शिव आराधें स्नेह से, शिव चाहें भरपूर।।
*
शिव जी शुभ संकल्प हैं, शिव का नहीं विकल्प।
निमिष-निमिष हैं एक शिव, कल्प-कल्प शिव तल्प।।
*
शिव भावों से शून्य हैं, शिव ही सारे भाव।
शिव अतिरेकी हैं नहीं, शिव में नहीं अभाव।।
*
भावाभाव न शंभु में, शिव थिर शांत स्वभाव।
कोई नहीं जिस पर न शिव, छोड़ें अमिट प्रभाव।।
*
सहज सरल शिव मति विमल, शिव कुशाग्र मतिधीर।
परमानंदित शिव रहें, शिव जीतें हर पीर।।
***
२२.१.२०१८
सरिता विहार, दिल्ली

कोई टिप्पणी नहीं: