शिव सत हैं, शिव सनातन,
शिव का आदि न अंत।
शिव सा भोगी कौन है
शिव सा योगी-संत।।
*
सती असत को सत करें,
शिव न सती से भिन्न।
रहें हमेशा मुदित शिव
होते कभी न खिन्न।।
*
सत से जग-कल्याण हो,
रहो असत निरपेक्ष।
सृष्टि सतासत का मिलन,
दृष्टि सत्य-सापेक्ष।।
*
सत प्रकाश छाया असत,
शिव दोनों में व्याप्त।
शिवा मोह-माया मुदित,
रचना करतीं आप्त।।
*
मिलें शिवा-शिव तत्व जब,
हो चेतन-जड़ युक्ति।
खेल खेलते-खिलाते,
जब तक हो न विमुक्ति।।
*
शिव जड़ को संजीव कर,
देते आत्म-प्रबोध।
सलिल-धार बनकर शिवा,
दूर करें अवरोध।।
*
शिवा समर्पित साधना,
शिवा नर्मदा-नेह।
मन्वन्तर तक शिव-शिवा,
पूज्य नहीं संदेह।।
***
१०.१.२०१८
दत्त भवन, नोएडा
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 10 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
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