वृषभ सवारी कर हुए, शिव पशुओं के साथ।
पशुपति को जग पूजता, विनत नवाया माथ।।
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कृषि करने में सहायक, वृषभ हुआ वरदान।
ऋषभनाथ शिव कहाए, सृजन सभ्यता महान।।
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ऋषभ न पशु को मारते, सबसे करते प्रेम।
पंथ अहिंसक रच किया, सबका सबसे क्षेम।।
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शिवा बाघ शिशु का बदल, हिंसक दुष्ट स्वभाव।
बना अहिंसक सवारी, करतीं नेक प्रभाव।।
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वंशज मनुज को सभ्य कर, हर शंका कर दूर।
शिव शंकर होकर पुजे, पा श्रद्धा भरपूर।।
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७.१.२०१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 7 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
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