श्री गणेश (बुधवार, 16 सितम्बर, 2015)
लेकर नाम गणेश का, मन में रख विश्वास
कर्म करो सब प्रेम से, पूरी होगी आस
गणपति का घर आगमन, देता है सन्देश
विपदा होगीं दूर सब, मिट जायेंगे क्लेश
गली गली में सज रहा, मेरा भारत देश
एक हाथ लड्डू लिये, शोभित यहाँ गणेश
नित्य नई ऊँचाइयाँ, छुए हमारा देश
सब मिलकर आगे बढ़ें, करिये कृपा गणेश
देवों के हो देवता, पूजित प्रथम गणेश
ऋद्धि सिद्धि के साथ प्रभु, घर में करो प्रवेश
जय माता दी
घर आँगन में सज रहा, माता का दरबार
दुर्गा माँ की भक्ति में, आनंदित संसार
मतलब के संसार में, तुम्हीं एक अवलंब
नैया पार लगाइये, हे माता जगदम्ब
करते जो आतंक का, दुनिया में व्यापार
माँ रणचंडी बन करो, उन सब का संहार
भीतर बाहर हर जगह, छिड़ा हुआ है युद्ध
माता रानी कर कृपा, हो जाए सब शुद्ध
आतंकी करने लगे, चारों और प्रहार
माँ दुर्गा अब कीजिये, दुष्टों का संहार
मानवता संसार से, हो न कभी भी लुप्त
आकर मातु जगाइए, पड़े हुए सब सुप्त
भोतिकता की चमक में, अंधे हैं सब लोग
माँ अब अब आँखें खोल दो, बढे न अब ये रोग
छुए न मन को छल कपट, जब तक तन में जान |
देना मातु सरस्वती, मुझको यह वरदान ||
भोले बाबा (05.08.15)
भोले बाबा के यहाँ, लम्बी लगी कतार
दूध फूल पत्ते चढ़ें, महिमा अपरम्पार
पात फूल से खुश रहें, मेरे भोले नाथ
बाँटें सबको सम्पदा, भर भर दोनों हाथ
खुला हुआ सबके लिए, भोले का दरबार
रोक-टोक कुछ भी नहीं, मिलता सबको प्यार
हिंसा से होने लगा, दुखी आज संसार
भोले बाबा कीजिये, दुष्टों का संहार
कान्हा (04 सितम्बर 2015)
सुंदर वस्त्रों से सजे, जगह जगह बाजार |
आया कान्हा जन्मदिन, छाई ख़ुशी अपार ||
कान्हा तेरी बाँसुरी, लेती मन को मोह |
मधुर मधुर आरोह है, मधुर मधुर अवरोह ||
जब कान्हा ने बांसुरी, होठों से ली चूम |
नाची धरती मोर सी, गगन उठा फिर झूम ||
मुरली सुन कर श्याम की, छाया मन उल्लास |
यमुना तट पर गोपियाँ, चलीं रचाने रास ||
कुछ तो जादू कर रही, मुरली की धुन खास |
गाय रँभाती जा रही, मनमोहन के पास ||
प्यारी छवि घनश्याम की, गहें मुरलिया हाथ |
बड़े प्रेम से नच रहे, हर गोपी के साथ ||
राजमहल को तज दिया, छोड़े भोग विलास |
मीरा होकर बावरी, चली कृष्ण के पास ||
वीर जवान (24 अप्रैल 2015)
सरहद पर रहता खड़ा, लिये हथेली जान |
ऐसे वीर जवान पर, क्यों न करें अभिमान ||
न्योछावर तन मन किया, किया न कोई शोक |
ऐसे वीर जवान को, मेरी शत शत ढोक ||
सुख में दुख में हर जगह, आ जाता है काम |
हे आँसू तू धन्य है, मेरा तुझे सलाम ||
टी वी पर दिन रात ही, होता है यह शोर
कब किसने घपले किये, कौन बड़ा है चोर
(25 अक्तूबर 2015)
जो था दर दर घूमता, करवाने सब काज
दर्शन दुर्लभ हो गये, उस नेता के आज
नेता भाषण दे रहे, भूखे मरें किसान
उनके घर रोटी नहीं, उनके घर पकवान
दे गरीब रिश्वत यहाँ, काट काट कर पेट
नेता अफसर के मगर, बढ़ते जाते रेट
भरें तिजोरी रात दिन, लगे हुए हैं रोग
नहीं भरोसा आज का, कल को जोड़ें लोग
सावन सूखा ही गया, हुयी नहीं बरसात
खेतों में पीले पड़े, कोमल कोमल पात
छंद लिखो दोहा लिखो, और लिखो नवगीत
शेर शायरी ग़ज़ल से, सदा बढाओ प्रीत
पानी को तरसे कभी, कभी न मिलती धूप |
जिन्दा है पीपल मगर, बिगड़ गया है रूप ||
बुद्ध यहाँ पैदा हुए, मिला यहीं पर ज्ञान
अब उनके ही देश में, लड़ते हैं इंसान
जाति-धर्म के नाम पर, नेता माँगें वोट
चमचे भी कुछ जुगत कर, कमा रहे हैं नोट
यहां वहां भटके फिरें, मन में रखकर खोट
लोभ मोह के फेर में, खाते दिल पर चोट
सच को बस पकड़े रहो, है यह सच्चा मीत
झूठ हमेशा हारता, होती सच की जीत
हँसते हँसते कीजिये, आप अतिथि सत्कार
छोटी सी मुस्कान भी, देती ख़ुशी अपार
तन से श्रम करते रहो, मन को रखो फ़क़ीर
आती अच्छी नींद फिर, रहता स्वस्थ शरीर
आओ हम सब खोल लें, बंद हृदय के द्वार
आर-पार बहती रहे, शीतल प्रेम बयार
सदाचार सद्भावना, मानवता का मूल
आदत इसे बनाइये, खिलें प्रेम के फूल
प्रेम और सद्भाव का, सस्ता सरल उपाय
आओ सब मिल बैठकर, पियें एक कप चाय
मन से मन जब मिल गया, मिला हाथ से हाथ
एक दूसरे का हुआ, जीवन भर का साथ
होतीं सबसे गल्तियाँ, तुरत कीजिये माफ़
मान बढ़ेगा आपका, हृदय रहेगा साफ़
खुशियाँ सब तुझको मिलें, मिले न कोई पीर
मेरे नयनों से बहे, तेरे दुख का नीर
भीड़ भाड़ है सड़क पर, लगा हुआ है जाम
गाँव छोड़कर शहर में, मिला किसे आराम
जाट आन्दोलन (22/2/16)
जाने कैसे हो गये, हरियाणा के जाट
पूरे भारत देश की, खड़ी कर रहे खाट
आरक्षण की आग में, झुलस रहा है देश
नेताओं के हैं मजे, कलुषित है परिवेश
जो भी देखो कर रहा, रेलों का नुकसान
जाट कभी गुर्जर कभी, कभी पटेल महान
फसल कटी पैसा मिला, नहीं बचा कुछ काम
जाटों ने मिलकर किया, सबका चक्का जाम
आतंक
गली गली फैला रहे, इतना जो आतंक
भूलें सारी चौकड़ी, ऐसा काटो डंक
पिद्दी सा इक देश है, जिद्दी पाकिस्तान
कब तक झेलेगा इसे, मेरा हिंदुस्तान
पाक सुधर सकता नहीं, कर लो कितनी बात
बातचीत को छोड़कर, अब मारो दो लात
मैदानों में जीत है, टेबल पर है हार
हमें समझ आयी नहीं, अपनी ही सरकार
सारी दुख तकलीफ का, मिला हमें उपचार
सुमिरन गुरुवर का किया, दिल में बारम्बार
तरसें महलों बीच हम, दिखती कहीं न धूप |
शुद्ध हवा भी खो गयी, लुप्त हुए जलकूप ||
लालबहादुर ने किया, सबसे ये आह्वान |
इज्जत मिले किसान को, वीरों को सम्मान ||
सरकारी परियोजना, बस कागज़ का फूल
दिखने में अच्छी लगे, है आँखों में धूल
जाति-धर्म अब हो गये, नेता के हथियार
भोली जनता पर करें, मिलकर खूब प्रहार
वे तो सोये चैन से, सुनी नहीं फरियाद
हम ही तड़पे रात भर, कर कर उनकी याद
यहाँ वहाँ पर बन गयीं, पत्थर की दीवार
कच्चे आँगन जो मिला, था अदभुत वह प्यार
करवा चौथ मनाइये, पत्नी जी के साथ
जीवन भर मत छोड़िये, पकड़ा है जो हाथ
घर पर जल्दी आइये, छोड़ छाड़ सब काम
मिले नहीं पतिदेव बिन, पत्नी को आराम
चाँद निरखता चाँद को, मधुर सुहानी रात
पति की पूजा रोज हो, बन जाये फिर बात
करक चतुर्थी में मिला, पतियों को सम्मान
फूले फूले सब फिरें, प्यार चढ़ा परवान
वर्षा ऋतु और सावन (05.08.15)
सबको मिले न एकसा, सावन जी का प्यार
धरती प्यासी है कहीं, कहीं मूसलाधार
हरियाली करने लगी, धरती का श्रृंगार
श्रावण जैसा मास कब, आता बारम्बार
कुहू कुहू कोयल करे, वन में नाचे मोर
जियरा ये धक धक करे, कहाँ छिपा चितचोर
तितली भंवरे खुश हुए, मन में सजी उमंग
कलियों को भाने लगा, अब भँवरों का संग
बहुत दिनों के बाद में, निकली है कुछ धूप
बैठ लॉन में पीजिये, गरम टमाटर सूप
शीत लहर चलती रही, पूरे दिन भर आज
थर थर हम काँपत रहे, हुआ न कोई काज
घंटी बजती द्वार पर, जाकर खोले कौन
ओढ़ रजाई खाट में, पड़े हुए सब मौन
बसंत ऋतु
पंछी कोटर छोड़कर, निकले बाहर आज
छूना है आकाश को, है बुलंद परवाज
बौर आम पर छा रहा, आया है मधुमास
मौसम है ये प्रीति का, दिला रहा अहसास
वासंती मौसम हुआ, फूल बिखेरें रंग
चलो बाग़ में घूम लें, आप और हम संग
सद्भाव
बड़े बड़े हैं देश जो, डाल रहे हैं फूट
हथियारों को बेचकर, मचा रहे हैं लूट
हर घर में दीपक जले, अन्धकार हो नष्ट
खुशहाली से दूर हों, जनता के सब कष्ट
सड़क किनारे जल रहा, देखो एक अलाव
सारे मिलकर तापते, अदभुत है सद्भाव
चार चरण दो पंक्तियाँ, मात्राएँ चौबीस
तेरह ग्यारह बाद यति, दोहा लिखो नफीस
भारत की संसद हुई, भिन्डी का बाजार
इतना ज्यादा शोरगुल, कान पक गये यार
लोकतंत्र को कर रहे, ये नेता बदनाम
पूरा वेतन ले रहे, करें न कोई काम
संसद करते ठप्प सब, मचा मचा कर शोर
खुद के अन्दर झाँक लें, मिल जायेगा चोर
पचासवें जन्मदिवस पर
धीरे धीरे उम्र के, बीते बरस पचास
झोली खुशियों से भरी, मन में है उल्लास
दुनियाँ में मिलता रहा, मुझे सभी का प्यार
जीवन के सपने सभी, आज हुए साकार
जे एन यू विवाद पर (16 फरवरी 2016)
अभिव्यक्ति के नाम पर, मत करिये विद्रोह
इतना भी अच्छा नहीं, आतंकी से मोह
पढ़ने लिखने को खुला, सरकारी संस्थान
आज वहाँ पर हो रहा, भारत का अपमान
दुश्मन मेरे देश के, हुए जहाँ आबाद
जनता का पैसा वहाँ, करिये मत बर्बाद
विद्यालय में छात्र का, कैसा था बर्ताव
एक मीन ने कर दिया, गन्दा सब तालाब
इलाहाबाद (18/04/16)
मिलकर सबने आज जब, थामा मेरा हाथ
खुशियाँ दूनी हो गयी, पाकर सबका साथ
गर्मी के दोहे (05/05/16)
गर्म हवाएं कर रहीं, सबका मन बेचैन
हरियाली को देखने, तरस रहे हैं नैन
भले आज हम हो गए, कम्प्यूटर में दक्ष
मगर देश में जल बिना, सूख रहे हैं वृक्ष
फल
जगह जगह पर दिख रहे, तरबूजे के ढेर |
गर्मी से राहत मिले, बीस रुपैया सेर ||
सबसे बढिया पीजिये, गन्ने जी का जूस |
थोड़े पैसे में करो, तुम राहत महसूस ||
कोल्ड ड्रिंक मत पीजिये, होती है बेकार
मीठी लस्सी में मिले, अपनों जैसा प्यार
जब अनार देने लगा, निज मूँछों पर ताव
मौसम्मी के चढ़ गए, आसमान पर भाव
लीची जी कहने लगीं, तू मुझसे रह दूर
तेरे बस का कुछ नहीं, तू ठहरा मजदूर
दुनिया में असमानता, फैलाती आक्रोश
कभी-कभी मानव यहाँ, खो देता है होश
पंछी सब गायब हुए, नहीं घोंसले आज
सुबह-सुबह आती नहीं, कोयल की आवाज
स्वागत करना अतिथि का, रही हमारी रीत
कितना भी अनजान हो, हो जाती है प्रीत
कितना भी परिश्रम करे, दुनिया में इंसान
बिन श्रद्धा पाता नहीं, गुरु से पूरा ज्ञान
नहीं किसी का टिक सका, जग में कभी गरूर
लाखों के मालिक यहाँ, हो जाते मजदूर
पूर्ण समर्पण से करो, चाहे जो हो काम
मिले सफलता आपको, हो फिर जग में नाम
बिना त्याग होते नहीं, हैं रिश्ते मजबूत
जहाँ त्याग की भावना, होता प्रेम अकूत
दौलत से जो पा रहे, दुनिया में सम्मान
जैसे ही दौलत गयी, झेलें फिर अपमान
आप कभी मत मानिए, उल्टे सीधे तर्क
मेहनत निष्ठा लगन से, करते रहिये वर्क
आज विदेशों में बढ़ी, भारतीय की मांग
पर भारत में खींचते, इक दूजे की टांग
देश छोड़ कर जा रहीं, क्यूँ प्रतिभाएं आज
कुछ तो गड़बड़ है यहाँ, जो इतनीं नाराज
जल्दी ही कुछ कीजिये, कर प्रतिभा सम्मान
वर्ना कैसे देश का, होगा अब कल्यान
सावन में नचते रहे, कभी जहाँ पर मोर |
मोटर कारें आजकल, वहाँ मचातीं शोर ||
योग
कुछ खर्चा आता नहीं, सरल सहज है योग |
रोजाना अभ्यास से, दूर रहें सब रोग ||
सारी दुनिया कर रही, अब भारत का योग |
सबका तन मन स्वस्थ है, हर्षित हैं सब लोग ||
जगह जगह पर चल रही, योग ध्यान की क्लास |
तन मन कर के शुद्ध सब, कर लो कुछ अभ्यास ||
जो देखो वो कर रहा, आसन प्राणायाम |
गूँज रहा है विश्व में, भारत का ही नाम ||
कर कपाल भाती जरा, फिर अनुलोम विलोम |
स्वस्थ रहेंगे फेफड़े, बोलो यदि नित ओम ||
चीन के सन्दर्भ में (24/06/2016)
रोजी रोटी के लिए, भारत में व्यापार
लेकिन अंदर से करे, चीन पाक को प्यार
मिल न सकेगा विश्व में, भारत जैसा देश
जहाँ चीन के माल का, होता खूब प्रवेश
जिस दिन मेरे देश के, भड़क गए सब लोग
बंद सभी हो जायेंगे, चीन तुम्हारे भोग
खेती जो आतंक की, करता है दिन रात
दुनिया में अब कर रहा, चीन उसी की बात
बरसात
बड़े दिनों के बाद में, हुई यहाँ बरसात
मेरे पौधों के हुए ,आज प्रफुल्लित गात
बारिश से सड़कें धुलीं, गायब सारी धूल
नव उमंग लेकर खिले,आस पास में फूल
मानव ने पैदा किये, कैसे ये हालात
बादल रूठा आजकल, सुने न कोई बात
कहीं प्रार्थना हो रहीं, कहीं हो रहा होम
सब कुछ हमने कर लिया, नहीं पसीजा व्योम
रामू हरिया खेत में, बैठे हुए उदास
सूखा गया अषाढ़ तो, अब सावन से आस
सावन अब तो झूम कर, मचा रहा उत्पात
गाँव शहर में बाढ़ से, बिगड़ रहे हालात
नालों के भी आजकल, बढे हुए हैं भाव
जबरन घर में घुस हमें, दिखा रहे हैं ताव
पहली-पहली जब हुई, मौसम की बरसात
भीषण गर्मी से मिली, थोड़ी बहुत निजात
आज घटाएँ कर रहीं, पानी की बौछार
तपती धरती को मिला, आसमान का प्यार
आतंक
धर्मक्षेत्र के नाम पर, कैसा ये आतंक
निर्दोषों को मारकर, माथे लगा कलंक
पाल रहे आतंक जो, देकर अपनी छाँव
सारे जग में फिर कहीं, पा न सकेंगे ठाँव
जब जब रन में तू भिड़ा, हारा है नापाक
फिर क्यों जबरन मुँह उठा, इधर रहा है ताक
पाक न तू ज्यादा उछल, थोड़ी सी रख ठंड
मिलने वाला है तुझे, सब पापों का दंड
पाकिस्तानी हरकतें, सहिये मत अब और
सरहद की हद तोड़कर, कब्जालो लाहौर
आज शहीदों के लिए, हुआ देश बेचैन
उद्वेलित सबका ह्रदय, भीग रहे हैं नैन
जन जन में आक्रोश है, साहब जी हैं मौन
पुरुस्कार सम्मान अब, लौटाएगा कौन
सहनशीलता देश की, देख रहे हैं लोग
धीरे धीरे पल गए, पाकिस्तानी रोग
अब तो करिए सर्जरी, और न बचा इलाज
काट पीट कर फैंक दो, सब आतंकी आज
और बहेगा कब तलक, निर्दोषों का रक्त |
खत्म करो आतंक को, निकल न जाए वक्त ||
है जितनी भी ऊर्जा, करिए मत बेकार
करिए कुछ सत्कर्म तो, होगा बेड़ा पार
हिरन मरा, नर भी मरे, मौन रहा कानून
बरी सदा होते रहे, जो थे अफलातून
सोच समझ कर बोलना, बोलो जो भी बोल
कभी कभी बिन बात के, खुल जाती है पोल
सड़कों पर बरसात का, जमकर हुआ प्रहार
चाँदी ठेकेदार की, खूब हुई इस बार
सड़कों में गड्ढे यहाँ, बने हुए तालाब
नेता मछली ढूँढते, उनका अलग हिसाब
छोटा सा परिवार हो, हो रिश्तों में प्यार
जीवन हो सबका सुखी, सुखी रहे संसार
मजदूरों की जिन्दगी, तनिक नहीं उल्लास
पड़े हुए फुटपाथ पर, ताक रहे आकाश
डंडा देखें पुलिस का, हो जाते भयभीत
कौन गरीबों का यहाँ, हो पाता है मीत
खून पसीना बन बहे, मिले न पूरा मोल
मेहनत कर के भी मिलें, उनको कड़वे बोल
देश विदेशों में बढ़ा, भारत का सम्मान
पूर्ण विश्व अब कर रहा, भारत का गुणगान
तुम्हें बारक जन्मदिन, जियो हजारों साल
जो भी देखे स्वप्न सब, पूरे हों हर हाल
यूँ ही हम सहते रहे, होंगे अत्याचार
आओ सब मिलकर करें, दुष्टों का संहार
सदा रही है एकता, भारत की पहचान
जाति धर्म है बाद में, पहले हम इंसान
दिखें नहीं अख़बार में, नारी अत्याचार
नारी के माँ रूप को, पूजे यदि संसार
ताप्ती नदी
प्यारी बिटिया सूर्य की, नदी ताप्ती नाम
सुबह करो स्नान यदि, पूरे हों सब काम
जन्मी मध्यप्रदेश में, मुलताई के पास
मातु ताप्ती ने भरा, सबके मन उल्लास
शनिदेव की है बहन, है ये गंग समान
मातु ताप्ती नाम से, मिट जाता अज्ञान
महाराष्ट्र गुजरात भी, पाते हैं उपहार
मातु ताप्ती से मिला, सबको खूब दुलार
उन्नत खेती हो गयी, और बढ़ा व्यापार
नदी ताप्ती ने भरे, खुशियों से घर द्वार
सुंदर सुंदर घाटियाँ, सुंदर निर्मल घाट
मातु ताप्ती पर सदा, श्रृद्धा रहे अकाट
अर्पण तर्पण की यहाँ, बड़ी सरल है युक्ति
ताप्ती माता दे सदा, भवसागर से मुक्ति
काला धन
बात हमारी मान ले, ज्यादा धन मत जोड़
कुछ से अपना काम कर, कुछ गरीब को छोड़
काला धन पागल हुआ, मचा रहा उत्पात
भोली जनता को मगर, समझ आ रही बात
अलमारी में कैद थे, जो हजार के नोट
जाते जाते दे गए, नेताजी को चोट
कालेधन पर हो रहा, जब से यहाँ विचार
उधर गाँव में भैंस ने, छोड़ दिया आहार
जब हजार के नोट पर, पड़ी जोर से चोट
संसद में चलने लगे, बड़े पुराने नोट
ख़बरों में है आजकल, नोटों का व्यापार
देश गुलाबी हो गया, और मस्त सरकार
छुटभैये नेता सभी, रोज जा रहे बैंक
नित छपकर अखबार में, बढ़ा रहे हैं रैंक
नहीं बनाते बिल कभी, और न भरते टैक्स
वे व्यापारी अब यहाँ, कैसे करें रिलेक्स
काले धन के जोर पर, खूब पसारे पैर
अब चादर छोटी हुई, करो ठण्ड में सैर
माल हड़प कर और का, भरी तिजोरी खूब
हलुआ पूरी छोड़िये, बची नहीं अब दूब
कैश-लैस व्यापार में, कुछ तो दम है यार
छुप न सकेगा अब यहाँ, कोई भी व्यवहार
रोज हो रही धरपकड़, फँसे हुए हैं चोर
जनता तो रस ले रही, नेता करते शोर
खड़ी हो रही आजकल, काले धन की खाट
मिलकर सारे चोर अब, ढूंढ रहे हैं काट
कालेधन की लालसा, ले आई किस गाँव
उखड़ रहे बरगद यहाँ, कहाँ मिलेगी छाँव
हों चोरों के हाथ में, जब सरकारी कान
लागू कैसे देश में, होंगे नियम विधान
हिन्दुस्तान
नेता अफसर मौज में, मुफलिस यहाँ किसान
प्रतिभा गईं विदेश में, ये है हिंदुस्तान
सूनी सड़क न चल सके, नारी शक्ति महान
बच्चे मजदूरी करें, ये है हिंदुस्तान
पढ़े लिखे जो लोग हैं, करें नहीं मतदान
अनपढ़ मिल नेता चुनें, ये है हिंदुस्तान
बिन पैसे हिलते नहीं, दरवारी, दीवान
पाता न्याय अमीर बस, ये है हिंदुस्तान
हिरन मरे या आदमी, बरी होय सलमान
बेक़सूर हैं जेल में, ये है हिंदुस्तान
फुटपाथों पर सो रही, जनता बिना मकान
नेता, चमचों को महल, ये है हिंदुस्तान
जन्म दिन शुभकामना, सदा रहो खुशहाल
जीवन में बस प्रेम का, उड़ता रहे गुलाल
इक दूजे के साथ में, भरते रहो उड़ान
जीवन भर छाई रहे, अधरों पर मुस्कान
जन्मदिवस पर आपने, मुझे दिया जो प्यार
नहीं भूल सकता कभी, यह अनुपम उपहार
किस मत ने किस्मत बदल, ली है कुर्सी छीन
राहुल जी जिग्नेश से, पूछें बनकर दीन
मांग भरेगा वह तभी, जब पूरी हो मांग
पूरी करो न मांग अब, तोड़ो उसकी टांग
राष्ट्रभक्ति जिसके हृदय, बसती है हर वक्त
कहने में संकोच क्या, हम हैं उसके भक्त
जो भी हो जिसका, रहे, मेरे तो प्रभु राम
उनके ही सानिध्य में, मिला चैन आराम
जगह जगह जाकर किया, सबका ही उद्धार
सबके प्रभु श्री राम हैं, मानवता का सार
मन में सुमिरन जो करे, एक बार बस राम
छोटा हो या फिर बड़ा, बन जाता हर काम
जब भी पृथ्वी पर बढ़ा, दानव अत्याचार
धनुष वाण ले राम ने, किया असुर संहार
बात पते की है यही, करना सदा यकीन
सुख ने आ दुख से कहा, मैं हूँ तुझमें लीन
बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष (११.५.१७)
सदा शांति मन में रखो, होना कभी न क्रुद्ध |
मध्य मार्ग को खोज लो, करो कभी मत युद्ध ||
राग द्वेष छूटे सभी, और हुआ मन शुद्ध |
त्यागे सुख, दुख देखकर, तब कहलाये बुद्ध ||
परमारथ करते रहो, इसमें ख़ुशी अपार |
केवल खुद के ही लिए, जीना है बेकार ||
हरियाली का दिन मना, वृक्ष लगाकर आज
कागज़ मत बर्बाद कर, रख धरती की लाज
नारों में मत उलझिए, करते रहिये काम |
मानव केवल कर्म से, पाता जग में नाम ||
धूल और कालिख उड़े, सड़कें रहतीं जाम |
गाँव छोड़ कर शहर में, रहती मस्त अवाम ||
हर आँगन में पेड़ हो, हर आँगन में गाय |
स्वच्छ रहे पर्यावरण, बड़ा सटीक उपाय ||
गौ माता का जो रखे, अपने घर में ध्यान |
दूध-दही खाकर सदा, स्वस्थ रहे इंसान ||
जन जन के संघर्ष को, जिसने दी आवाज |
ऐसे वीर सुभाष पर, है हम सबको नाज ||
भाषाएँ हैं अनगिनत, तरह तरह के वेश
हिंदी बिंदी के बिना, सूना भारत देश
हिंदी भाषा का करें, हम सब मिल उत्थान
काम काज के साथ में, दिल से हो सम्मान
संसद में होने लगी, हिंदी में कुछ बात
निश्चित ही अब एक दिन, सुधरेंगे हालात
गूगल इनपुट टूल से, लिखना अब आसान
हिंदी छायी नेट पर, भारत की है शान
जर्मन रूस अमेरिका, चीन और जापान
निज भाषा में ही हुआ, इन सबका उत्थान
हिंदी में होने लगे, हर सरकारी काज
करे राजभाषा सदा, सबके दिल पर राज
बनकर अर्जुन युद्ध कर, है यह कार्य पवित्र |
स्थापित कर धर्म को, ज्यादा सोच न मित्र ||
विचलित मत हो कर्म से, है यह तेरा धर्म |
फल ईश्वर के हाथ है, सखा समझ यह मर्म ||
अविनाशी आत्मा सदा, छोड़ो जग का मोह |
होना ही है एक दिन, सबसे यहाँ विछोह ||
चलना सच के मार्ग पर, निश्चित होगी जीत |
थोड़ा सा बस धैर्य रख, विचलित मत हो मीत ||
जीवन भर सहती रही, सड़क हमारा भार |
बदले में हमने दिए, गड्ढों के उपहार ||
बादल गरजे तो बहुत, हुई नहीं बरसात |
आसमान सुनता कहाँ, धरती की कुछ बात ||
मीठी है, तीखी कभी, अंदर तक है मार |
मुझको तो अदभुत लगा, दोहों का संसार ||
तपे पतीला आँच पर, चमचा चमचम खाय |
अन्न उगाता है कृषक, आढतिया ले जाय ||
बगुले बैठे घेरकर, हर नदिया का तीर |
किसने समझी है यहाँ, मछली मन की पीर ||
दीपावली
लक्ष्मी जी का आगमन, लाया हर्ष अपार ||
विघ्न हरण गणपति करें, आकर सबके द्वार |
आँगन में रंगोलिया, सजते तोरण द्वार |
गुझियाँ लेकर आ गया, दीपों का त्यौहार ||
लड़ियाँ मिलकर सड़क पर, जमा रहीं हैं रंग ||
नाच रही है फुलझड़ी, प्रिय अनार के संग |
आग लगी जब पूँछ में, दौड़ चला रॉकेट |
कर लेगा वह आज ही, आसमान से भेट ||
कठिन नहीं कुछ भी यहाँ, सबसे करे अपील |
लिए आग को पेट में, उड़ती है कंदील ||
मना रहे दीपावली, जगमग है संसार |
मिटटी की खुशबू लिए, आये दीप हजार ||
नए नए कपड़े पहन, सखी सहेली संग |
बाल टोलियाँ नाचती, दिल में लिए उमंग ||
सूरज जा कर छुप गया, चंदा भी न समीप |
अंधकार से लड़ रहे, छोटे छोटे दीप ||
विपदाएँ आयीं नहीं, कभी हमारे गाँव |
माँ के आँचल की रही, सबके सिर पर छाँव ||
पंछी बन उड़ते रहो, खुला हुआ आकाश |
अपने पंखों पर सदा, रखो अटल विश्वास ||
खोलो मन की खिड़कियाँ, और हृदय के द्वार |
आर-पार बहती रहे, शीतल प्रेम बयार ||
आगे हाथ बढ़ा दिया, दिल में रखकर प्यार |
अपना सा लगने लगा, मुझको ये संसार ||
औरों की खातिर जिये, बाँटे सबको प्यार
यादों में रखता सदा, उसको ये संसार
आज सुबह जब मिल गया, खत का उन्हें जबाब |
कली कली दिल की खिली, मुखड़ा हुआ गुलाब ||
पथराये से हैं नयन, होठों पर है प्यास |
फिर भी ये मौसम लगे, जाने क्यों मधुमास ||
यादों के बादल घने, मन है बहुत उदास |
दूर हुआ मुझसे बहुत, फिर भी लगता पास ||
दुनिया मुझको चाहती, प्यारा यह अहसास |
लेकिन तू मुझको लगे, अपनों में भी खास ||
खुशियों का होता रहा, थोड़ा सा आभास |
लेकिन तेरे बिन लगा, जीवन ये वनवास ||
सुबह हुआ जब सूर्य के, आने का ऐलान |
कलियों की पलकें खुली, लिए अधर मुस्कान ||
कलियों ने भिजवा दिया, भँवरों को पैगाम |
गाँव हमारे आइये, दिल को अपने थाम ||
पुलकित तन, मन है मुदित, अरुणिम हुए कपोल |
चली सजनियाँ द्वार पर, सुन कागा के बोल ||
पुष्पों की मधुरिम महक, और पिया का ध्यान |
मन को घायल कर रही, मधुर मधुर मुस्कान ||
प्रीतम से नजरें मिली, आई थोड़ी लाज |
भाव-भंगिमा कह गयी, सब कुछ बिन आवाज ||
गागर में सागर भरें, मन को कर दें तृप्त |
बूढ़े बच्चे सब रहे, इन दोहों के भक्त ||
थोड़े दिन ही रह सका, मौसम यहाँ हसीन |
ऋतु बसंत के बाद में, जमकर तपी जमीन ||
मौसम का कश्मीर में, कैसा है बदलाव |
पुष्पनगर में दे रहे, शूल मूँछ पर ताव ||
खत्म कभी होते नहीं, घात और प्रतिघात |
प्रेम और बस प्रेम से, बदलेंगे हालात ||
मत से था मतलब कभी, मत पाकर अब मस्त |
मत देकर कुछ माँग मत, साहब जी हैं व्यस्त ||
इतना भी क्या दे रहे, अब मूंछों पर ताव
थोड़ा सा तो दीजिये, प्रेम-भाव को भाव
कुछ सोने में व्यस्त हैं, कुछ सोने में मस्त |
तुम सोना चाहो अगर, रहो कर्म में व्यस्त ||
धूप छाँव बरसात के, करे प्रकट उदगार |
नोंक जरा सी कलम की, सहती कितना भार ||
जयचंदों ने देश का, किया बहुत नुकसान
अब गौरी ही एक दिन, लेगा उनके प्रान
जिसने तपती रेत पर, बना दिए पदचाप |
निश्चय वह संसार मे, पाता सदा प्रताप ||
कौओं जैसी बोलियाँ, साँपों जैसी चाल |
करते भारत देश में, नेता रोज बवाल ||
पले हुए हैं देश में, तरह तरह के नाग |
गिरगिट जैसे रंग हैं, रोज उगलते आग ||
आज हमारे देश में, हों न अगर जयचंद |
कभी न कुछ भी कर सकें, दुश्मन के छल छंद ||
कथनी करनी हो सदा, भीतर बाहर एक |
ढूंढें से मिलते नहीं, बन्दे ऐसे नेक ||
जरा जरा सी बात पर, मचता यहाँ बबाल |
नाजुक बंधन प्यार का, रखिये इसे सँभाल ||
सत्य अहिंसा अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य अस्तेय |
पालन करना हर नियम, हो जीवन का ध्येय ||
रिश्तों में जब प्रेम का, हो न कभी रविवार |
सुख-दुख बाँटे मिल सभी, तब बनता परिवार ||
यादों के सपने लिए, आये पास कपोत |
जगा गए मेरे हृदय, पुनः प्रीत की जोत ||
बगिया में खिलने लगे, रंग बिरंगे रोज |
मिल जाता हमको सुबह, रोज प्रेम का डोज ||
हिंदी भाषा सा कहाँ, सरल सुगम साहित्य |
भाषाओँ के गगन में, हिंदी है आदित्य ||
ज्ञान और विज्ञान का, हो हिंदी में शोध |
एक राष्ट्र अवधारणा, का है इसमें बोध ||
जन गण की बोली यही, यही राष्ट्र की शान |
दे हर भाषा को जगह, हिंदी हुई महान ||
हों चाहे कितने कठिन, दुनिया में हालात |
अगर प्रेम से बात हो, बन जाती हर बात ||
इक बबूल के पेड़ पर, बसा बया का गाँव
भरी दोपहर में मिले, उसको ठंडी छाँव
सर्दी, गर्मी, बारिशें, हो आँधी तूफ़ान
रहे बया का घोंसला, हरदम सीना तान
फल का राजा आम है, मँहगा उसका दाम |
आम आदमी दूर से, देख रहा है आम ||
फूलों से कुर्सी सजी, साहब जी की रोज |
जन गण को मिलते रहे, बस काँटों के डोज ||
मर जाता रावण अगर, सब के मन का आज
हो जाता फिर देश में, रामचन्द्र का राज
रोज हुआ सीता हरण, प्रति दिन अत्याचार
रावण ने पल पल किया, छल का ही व्यापार
कल की चिंता मत करो, कल होता बेकार
आज हमारे हाथ में, जी लो उसको यार
चाँद दूज का दे गया, हमको ये सन्देश
छोटे बनकर के रहो, पूजें लोग विशेष
भोगों ने बांटा सदा, और दिए हैं रोग |
कला जोड़ने की हमें, सिखलाता है योग ||
देश विदेशों में बढ़ी, आज योग की शान |
सारे रोगों का मिला, सबको मुफ्त निदान ||
राजा रंक फ़क़ीर को, दिखलाई तस्वीर |
जो देखा वह लिख गए, अद्भुत संत कबीर ||
पंछी को मिलतीं कहाँ, आज पेड़ की छाँव |
दे न अतिथि की सूचना, अब कौवे की काँव ||
खून एक इंसान का, क्यूँ करते हो फर्क |
यही फर्क तो कर रहा, सबका बेड़ा गर्क ||
नहीं किसी का टिक सका, जग में कभी गरूर
लाखों के मालिक यहाँ, हो जाते मजदूर
भरी दुपहरी झेलता, सिर पर धूप बबूल |
काँटों के सँग खिल रहे, सुंदर सुंदर फूल ||
गर्मी से व्याकुल सभी, बालक और अधेड़ |
मजे धूप के ले रहा, अमलतास का पेड़ ||
अमलतास से मिल रहा, सबको आज सुकून |
मौसम वासंती हुआ, भले माह है जून ||
अमलतास ने कर दिया, धरती का श्रंगार |
बादल सजकर हो रहे, मिलने को तैयार ||
आँगन में झूला सजा, मन में सजी उमंग |
कर के तेरी याद पिय, फरकत हैं सब अंग ||
रोम रोम पुलकित करे, ठंडी पड़े फुहार |
पर साजन तेरे बिना, सूना है संसार ||
लेकर नाम गणेश का, मन में रख विश्वास
कर्म करो सब प्रेम से, पूरी होगी आस
गणपति का घर आगमन, देता है सन्देश
विपदा होगीं दूर सब, मिट जायेंगे क्लेश
गली गली में सज रहा, मेरा भारत देश
एक हाथ लड्डू लिये, शोभित यहाँ गणेश
नित्य नई ऊँचाइयाँ, छुए हमारा देश
सब मिलकर आगे बढ़ें, करिये कृपा गणेश
देवों के हो देवता, पूजित प्रथम गणेश
ऋद्धि सिद्धि के साथ प्रभु, घर में करो प्रवेश
जय माता दी
घर आँगन में सज रहा, माता का दरबार
दुर्गा माँ की भक्ति में, आनंदित संसार
मतलब के संसार में, तुम्हीं एक अवलंब
नैया पार लगाइये, हे माता जगदम्ब
करते जो आतंक का, दुनिया में व्यापार
माँ रणचंडी बन करो, उन सब का संहार
भीतर बाहर हर जगह, छिड़ा हुआ है युद्ध
माता रानी कर कृपा, हो जाए सब शुद्ध
आतंकी करने लगे, चारों और प्रहार
माँ दुर्गा अब कीजिये, दुष्टों का संहार
मानवता संसार से, हो न कभी भी लुप्त
आकर मातु जगाइए, पड़े हुए सब सुप्त
भोतिकता की चमक में, अंधे हैं सब लोग
माँ अब अब आँखें खोल दो, बढे न अब ये रोग
छुए न मन को छल कपट, जब तक तन में जान |
देना मातु सरस्वती, मुझको यह वरदान ||
भोले बाबा (05.08.15)
भोले बाबा के यहाँ, लम्बी लगी कतार
दूध फूल पत्ते चढ़ें, महिमा अपरम्पार
पात फूल से खुश रहें, मेरे भोले नाथ
बाँटें सबको सम्पदा, भर भर दोनों हाथ
खुला हुआ सबके लिए, भोले का दरबार
रोक-टोक कुछ भी नहीं, मिलता सबको प्यार
हिंसा से होने लगा, दुखी आज संसार
भोले बाबा कीजिये, दुष्टों का संहार
कान्हा (04 सितम्बर 2015)
सुंदर वस्त्रों से सजे, जगह जगह बाजार |
आया कान्हा जन्मदिन, छाई ख़ुशी अपार ||
कान्हा तेरी बाँसुरी, लेती मन को मोह |
मधुर मधुर आरोह है, मधुर मधुर अवरोह ||
जब कान्हा ने बांसुरी, होठों से ली चूम |
नाची धरती मोर सी, गगन उठा फिर झूम ||
मुरली सुन कर श्याम की, छाया मन उल्लास |
यमुना तट पर गोपियाँ, चलीं रचाने रास ||
कुछ तो जादू कर रही, मुरली की धुन खास |
गाय रँभाती जा रही, मनमोहन के पास ||
प्यारी छवि घनश्याम की, गहें मुरलिया हाथ |
बड़े प्रेम से नच रहे, हर गोपी के साथ ||
राजमहल को तज दिया, छोड़े भोग विलास |
मीरा होकर बावरी, चली कृष्ण के पास ||
वीर जवान (24 अप्रैल 2015)
सरहद पर रहता खड़ा, लिये हथेली जान |
ऐसे वीर जवान पर, क्यों न करें अभिमान ||
न्योछावर तन मन किया, किया न कोई शोक |
ऐसे वीर जवान को, मेरी शत शत ढोक ||
सुख में दुख में हर जगह, आ जाता है काम |
हे आँसू तू धन्य है, मेरा तुझे सलाम ||
टी वी पर दिन रात ही, होता है यह शोर
कब किसने घपले किये, कौन बड़ा है चोर
(25 अक्तूबर 2015)
जो था दर दर घूमता, करवाने सब काज
दर्शन दुर्लभ हो गये, उस नेता के आज
नेता भाषण दे रहे, भूखे मरें किसान
उनके घर रोटी नहीं, उनके घर पकवान
दे गरीब रिश्वत यहाँ, काट काट कर पेट
नेता अफसर के मगर, बढ़ते जाते रेट
भरें तिजोरी रात दिन, लगे हुए हैं रोग
नहीं भरोसा आज का, कल को जोड़ें लोग
सावन सूखा ही गया, हुयी नहीं बरसात
खेतों में पीले पड़े, कोमल कोमल पात
छंद लिखो दोहा लिखो, और लिखो नवगीत
शेर शायरी ग़ज़ल से, सदा बढाओ प्रीत
पानी को तरसे कभी, कभी न मिलती धूप |
जिन्दा है पीपल मगर, बिगड़ गया है रूप ||
बुद्ध यहाँ पैदा हुए, मिला यहीं पर ज्ञान
अब उनके ही देश में, लड़ते हैं इंसान
जाति-धर्म के नाम पर, नेता माँगें वोट
चमचे भी कुछ जुगत कर, कमा रहे हैं नोट
यहां वहां भटके फिरें, मन में रखकर खोट
लोभ मोह के फेर में, खाते दिल पर चोट
सच को बस पकड़े रहो, है यह सच्चा मीत
झूठ हमेशा हारता, होती सच की जीत
हँसते हँसते कीजिये, आप अतिथि सत्कार
छोटी सी मुस्कान भी, देती ख़ुशी अपार
तन से श्रम करते रहो, मन को रखो फ़क़ीर
आती अच्छी नींद फिर, रहता स्वस्थ शरीर
आओ हम सब खोल लें, बंद हृदय के द्वार
आर-पार बहती रहे, शीतल प्रेम बयार
सदाचार सद्भावना, मानवता का मूल
आदत इसे बनाइये, खिलें प्रेम के फूल
प्रेम और सद्भाव का, सस्ता सरल उपाय
आओ सब मिल बैठकर, पियें एक कप चाय
मन से मन जब मिल गया, मिला हाथ से हाथ
एक दूसरे का हुआ, जीवन भर का साथ
होतीं सबसे गल्तियाँ, तुरत कीजिये माफ़
मान बढ़ेगा आपका, हृदय रहेगा साफ़
खुशियाँ सब तुझको मिलें, मिले न कोई पीर
मेरे नयनों से बहे, तेरे दुख का नीर
भीड़ भाड़ है सड़क पर, लगा हुआ है जाम
गाँव छोड़कर शहर में, मिला किसे आराम
जाट आन्दोलन (22/2/16)
जाने कैसे हो गये, हरियाणा के जाट
पूरे भारत देश की, खड़ी कर रहे खाट
आरक्षण की आग में, झुलस रहा है देश
नेताओं के हैं मजे, कलुषित है परिवेश
जो भी देखो कर रहा, रेलों का नुकसान
जाट कभी गुर्जर कभी, कभी पटेल महान
फसल कटी पैसा मिला, नहीं बचा कुछ काम
जाटों ने मिलकर किया, सबका चक्का जाम
आतंक
गली गली फैला रहे, इतना जो आतंक
भूलें सारी चौकड़ी, ऐसा काटो डंक
पिद्दी सा इक देश है, जिद्दी पाकिस्तान
कब तक झेलेगा इसे, मेरा हिंदुस्तान
पाक सुधर सकता नहीं, कर लो कितनी बात
बातचीत को छोड़कर, अब मारो दो लात
मैदानों में जीत है, टेबल पर है हार
हमें समझ आयी नहीं, अपनी ही सरकार
सारी दुख तकलीफ का, मिला हमें उपचार
सुमिरन गुरुवर का किया, दिल में बारम्बार
तरसें महलों बीच हम, दिखती कहीं न धूप |
शुद्ध हवा भी खो गयी, लुप्त हुए जलकूप ||
लालबहादुर ने किया, सबसे ये आह्वान |
इज्जत मिले किसान को, वीरों को सम्मान ||
सरकारी परियोजना, बस कागज़ का फूल
दिखने में अच्छी लगे, है आँखों में धूल
जाति-धर्म अब हो गये, नेता के हथियार
भोली जनता पर करें, मिलकर खूब प्रहार
वे तो सोये चैन से, सुनी नहीं फरियाद
हम ही तड़पे रात भर, कर कर उनकी याद
यहाँ वहाँ पर बन गयीं, पत्थर की दीवार
कच्चे आँगन जो मिला, था अदभुत वह प्यार
करवा चौथ मनाइये, पत्नी जी के साथ
जीवन भर मत छोड़िये, पकड़ा है जो हाथ
घर पर जल्दी आइये, छोड़ छाड़ सब काम
मिले नहीं पतिदेव बिन, पत्नी को आराम
चाँद निरखता चाँद को, मधुर सुहानी रात
पति की पूजा रोज हो, बन जाये फिर बात
करक चतुर्थी में मिला, पतियों को सम्मान
फूले फूले सब फिरें, प्यार चढ़ा परवान
वर्षा ऋतु और सावन (05.08.15)
सबको मिले न एकसा, सावन जी का प्यार
धरती प्यासी है कहीं, कहीं मूसलाधार
हरियाली करने लगी, धरती का श्रृंगार
श्रावण जैसा मास कब, आता बारम्बार
कुहू कुहू कोयल करे, वन में नाचे मोर
जियरा ये धक धक करे, कहाँ छिपा चितचोर
तितली भंवरे खुश हुए, मन में सजी उमंग
कलियों को भाने लगा, अब भँवरों का संग
बहुत दिनों के बाद में, निकली है कुछ धूप
बैठ लॉन में पीजिये, गरम टमाटर सूप
शीत लहर चलती रही, पूरे दिन भर आज
थर थर हम काँपत रहे, हुआ न कोई काज
घंटी बजती द्वार पर, जाकर खोले कौन
ओढ़ रजाई खाट में, पड़े हुए सब मौन
बसंत ऋतु
पंछी कोटर छोड़कर, निकले बाहर आज
छूना है आकाश को, है बुलंद परवाज
बौर आम पर छा रहा, आया है मधुमास
मौसम है ये प्रीति का, दिला रहा अहसास
वासंती मौसम हुआ, फूल बिखेरें रंग
चलो बाग़ में घूम लें, आप और हम संग
सद्भाव
बड़े बड़े हैं देश जो, डाल रहे हैं फूट
हथियारों को बेचकर, मचा रहे हैं लूट
हर घर में दीपक जले, अन्धकार हो नष्ट
खुशहाली से दूर हों, जनता के सब कष्ट
सड़क किनारे जल रहा, देखो एक अलाव
सारे मिलकर तापते, अदभुत है सद्भाव
चार चरण दो पंक्तियाँ, मात्राएँ चौबीस
तेरह ग्यारह बाद यति, दोहा लिखो नफीस
भारत की संसद हुई, भिन्डी का बाजार
इतना ज्यादा शोरगुल, कान पक गये यार
लोकतंत्र को कर रहे, ये नेता बदनाम
पूरा वेतन ले रहे, करें न कोई काम
संसद करते ठप्प सब, मचा मचा कर शोर
खुद के अन्दर झाँक लें, मिल जायेगा चोर
पचासवें जन्मदिवस पर
धीरे धीरे उम्र के, बीते बरस पचास
झोली खुशियों से भरी, मन में है उल्लास
दुनियाँ में मिलता रहा, मुझे सभी का प्यार
जीवन के सपने सभी, आज हुए साकार
जे एन यू विवाद पर (16 फरवरी 2016)
अभिव्यक्ति के नाम पर, मत करिये विद्रोह
इतना भी अच्छा नहीं, आतंकी से मोह
पढ़ने लिखने को खुला, सरकारी संस्थान
आज वहाँ पर हो रहा, भारत का अपमान
दुश्मन मेरे देश के, हुए जहाँ आबाद
जनता का पैसा वहाँ, करिये मत बर्बाद
विद्यालय में छात्र का, कैसा था बर्ताव
एक मीन ने कर दिया, गन्दा सब तालाब
इलाहाबाद (18/04/16)
मिलकर सबने आज जब, थामा मेरा हाथ
खुशियाँ दूनी हो गयी, पाकर सबका साथ
गर्मी के दोहे (05/05/16)
गर्म हवाएं कर रहीं, सबका मन बेचैन
हरियाली को देखने, तरस रहे हैं नैन
भले आज हम हो गए, कम्प्यूटर में दक्ष
मगर देश में जल बिना, सूख रहे हैं वृक्ष
फल
जगह जगह पर दिख रहे, तरबूजे के ढेर |
गर्मी से राहत मिले, बीस रुपैया सेर ||
सबसे बढिया पीजिये, गन्ने जी का जूस |
थोड़े पैसे में करो, तुम राहत महसूस ||
कोल्ड ड्रिंक मत पीजिये, होती है बेकार
मीठी लस्सी में मिले, अपनों जैसा प्यार
जब अनार देने लगा, निज मूँछों पर ताव
मौसम्मी के चढ़ गए, आसमान पर भाव
लीची जी कहने लगीं, तू मुझसे रह दूर
तेरे बस का कुछ नहीं, तू ठहरा मजदूर
दुनिया में असमानता, फैलाती आक्रोश
कभी-कभी मानव यहाँ, खो देता है होश
पंछी सब गायब हुए, नहीं घोंसले आज
सुबह-सुबह आती नहीं, कोयल की आवाज
स्वागत करना अतिथि का, रही हमारी रीत
कितना भी अनजान हो, हो जाती है प्रीत
कितना भी परिश्रम करे, दुनिया में इंसान
बिन श्रद्धा पाता नहीं, गुरु से पूरा ज्ञान
नहीं किसी का टिक सका, जग में कभी गरूर
लाखों के मालिक यहाँ, हो जाते मजदूर
पूर्ण समर्पण से करो, चाहे जो हो काम
मिले सफलता आपको, हो फिर जग में नाम
बिना त्याग होते नहीं, हैं रिश्ते मजबूत
जहाँ त्याग की भावना, होता प्रेम अकूत
दौलत से जो पा रहे, दुनिया में सम्मान
जैसे ही दौलत गयी, झेलें फिर अपमान
आप कभी मत मानिए, उल्टे सीधे तर्क
मेहनत निष्ठा लगन से, करते रहिये वर्क
आज विदेशों में बढ़ी, भारतीय की मांग
पर भारत में खींचते, इक दूजे की टांग
देश छोड़ कर जा रहीं, क्यूँ प्रतिभाएं आज
कुछ तो गड़बड़ है यहाँ, जो इतनीं नाराज
जल्दी ही कुछ कीजिये, कर प्रतिभा सम्मान
वर्ना कैसे देश का, होगा अब कल्यान
सावन में नचते रहे, कभी जहाँ पर मोर |
मोटर कारें आजकल, वहाँ मचातीं शोर ||
योग
कुछ खर्चा आता नहीं, सरल सहज है योग |
रोजाना अभ्यास से, दूर रहें सब रोग ||
सारी दुनिया कर रही, अब भारत का योग |
सबका तन मन स्वस्थ है, हर्षित हैं सब लोग ||
जगह जगह पर चल रही, योग ध्यान की क्लास |
तन मन कर के शुद्ध सब, कर लो कुछ अभ्यास ||
जो देखो वो कर रहा, आसन प्राणायाम |
गूँज रहा है विश्व में, भारत का ही नाम ||
कर कपाल भाती जरा, फिर अनुलोम विलोम |
स्वस्थ रहेंगे फेफड़े, बोलो यदि नित ओम ||
चीन के सन्दर्भ में (24/06/2016)
रोजी रोटी के लिए, भारत में व्यापार
लेकिन अंदर से करे, चीन पाक को प्यार
मिल न सकेगा विश्व में, भारत जैसा देश
जहाँ चीन के माल का, होता खूब प्रवेश
जिस दिन मेरे देश के, भड़क गए सब लोग
बंद सभी हो जायेंगे, चीन तुम्हारे भोग
खेती जो आतंक की, करता है दिन रात
दुनिया में अब कर रहा, चीन उसी की बात
बरसात
बड़े दिनों के बाद में, हुई यहाँ बरसात
मेरे पौधों के हुए ,आज प्रफुल्लित गात
बारिश से सड़कें धुलीं, गायब सारी धूल
नव उमंग लेकर खिले,आस पास में फूल
मानव ने पैदा किये, कैसे ये हालात
बादल रूठा आजकल, सुने न कोई बात
कहीं प्रार्थना हो रहीं, कहीं हो रहा होम
सब कुछ हमने कर लिया, नहीं पसीजा व्योम
रामू हरिया खेत में, बैठे हुए उदास
सूखा गया अषाढ़ तो, अब सावन से आस
सावन अब तो झूम कर, मचा रहा उत्पात
गाँव शहर में बाढ़ से, बिगड़ रहे हालात
नालों के भी आजकल, बढे हुए हैं भाव
जबरन घर में घुस हमें, दिखा रहे हैं ताव
पहली-पहली जब हुई, मौसम की बरसात
भीषण गर्मी से मिली, थोड़ी बहुत निजात
आज घटाएँ कर रहीं, पानी की बौछार
तपती धरती को मिला, आसमान का प्यार
आतंक
धर्मक्षेत्र के नाम पर, कैसा ये आतंक
निर्दोषों को मारकर, माथे लगा कलंक
पाल रहे आतंक जो, देकर अपनी छाँव
सारे जग में फिर कहीं, पा न सकेंगे ठाँव
जब जब रन में तू भिड़ा, हारा है नापाक
फिर क्यों जबरन मुँह उठा, इधर रहा है ताक
पाक न तू ज्यादा उछल, थोड़ी सी रख ठंड
मिलने वाला है तुझे, सब पापों का दंड
पाकिस्तानी हरकतें, सहिये मत अब और
सरहद की हद तोड़कर, कब्जालो लाहौर
आज शहीदों के लिए, हुआ देश बेचैन
उद्वेलित सबका ह्रदय, भीग रहे हैं नैन
जन जन में आक्रोश है, साहब जी हैं मौन
पुरुस्कार सम्मान अब, लौटाएगा कौन
सहनशीलता देश की, देख रहे हैं लोग
धीरे धीरे पल गए, पाकिस्तानी रोग
अब तो करिए सर्जरी, और न बचा इलाज
काट पीट कर फैंक दो, सब आतंकी आज
और बहेगा कब तलक, निर्दोषों का रक्त |
खत्म करो आतंक को, निकल न जाए वक्त ||
है जितनी भी ऊर्जा, करिए मत बेकार
करिए कुछ सत्कर्म तो, होगा बेड़ा पार
हिरन मरा, नर भी मरे, मौन रहा कानून
बरी सदा होते रहे, जो थे अफलातून
सोच समझ कर बोलना, बोलो जो भी बोल
कभी कभी बिन बात के, खुल जाती है पोल
सड़कों पर बरसात का, जमकर हुआ प्रहार
चाँदी ठेकेदार की, खूब हुई इस बार
सड़कों में गड्ढे यहाँ, बने हुए तालाब
नेता मछली ढूँढते, उनका अलग हिसाब
छोटा सा परिवार हो, हो रिश्तों में प्यार
जीवन हो सबका सुखी, सुखी रहे संसार
मजदूरों की जिन्दगी, तनिक नहीं उल्लास
पड़े हुए फुटपाथ पर, ताक रहे आकाश
डंडा देखें पुलिस का, हो जाते भयभीत
कौन गरीबों का यहाँ, हो पाता है मीत
खून पसीना बन बहे, मिले न पूरा मोल
मेहनत कर के भी मिलें, उनको कड़वे बोल
देश विदेशों में बढ़ा, भारत का सम्मान
पूर्ण विश्व अब कर रहा, भारत का गुणगान
तुम्हें बारक जन्मदिन, जियो हजारों साल
जो भी देखे स्वप्न सब, पूरे हों हर हाल
यूँ ही हम सहते रहे, होंगे अत्याचार
आओ सब मिलकर करें, दुष्टों का संहार
सदा रही है एकता, भारत की पहचान
जाति धर्म है बाद में, पहले हम इंसान
दिखें नहीं अख़बार में, नारी अत्याचार
नारी के माँ रूप को, पूजे यदि संसार
ताप्ती नदी
प्यारी बिटिया सूर्य की, नदी ताप्ती नाम
सुबह करो स्नान यदि, पूरे हों सब काम
जन्मी मध्यप्रदेश में, मुलताई के पास
मातु ताप्ती ने भरा, सबके मन उल्लास
शनिदेव की है बहन, है ये गंग समान
मातु ताप्ती नाम से, मिट जाता अज्ञान
महाराष्ट्र गुजरात भी, पाते हैं उपहार
मातु ताप्ती से मिला, सबको खूब दुलार
उन्नत खेती हो गयी, और बढ़ा व्यापार
नदी ताप्ती ने भरे, खुशियों से घर द्वार
सुंदर सुंदर घाटियाँ, सुंदर निर्मल घाट
मातु ताप्ती पर सदा, श्रृद्धा रहे अकाट
अर्पण तर्पण की यहाँ, बड़ी सरल है युक्ति
ताप्ती माता दे सदा, भवसागर से मुक्ति
काला धन
बात हमारी मान ले, ज्यादा धन मत जोड़
कुछ से अपना काम कर, कुछ गरीब को छोड़
काला धन पागल हुआ, मचा रहा उत्पात
भोली जनता को मगर, समझ आ रही बात
अलमारी में कैद थे, जो हजार के नोट
जाते जाते दे गए, नेताजी को चोट
कालेधन पर हो रहा, जब से यहाँ विचार
उधर गाँव में भैंस ने, छोड़ दिया आहार
जब हजार के नोट पर, पड़ी जोर से चोट
संसद में चलने लगे, बड़े पुराने नोट
ख़बरों में है आजकल, नोटों का व्यापार
देश गुलाबी हो गया, और मस्त सरकार
छुटभैये नेता सभी, रोज जा रहे बैंक
नित छपकर अखबार में, बढ़ा रहे हैं रैंक
नहीं बनाते बिल कभी, और न भरते टैक्स
वे व्यापारी अब यहाँ, कैसे करें रिलेक्स
काले धन के जोर पर, खूब पसारे पैर
अब चादर छोटी हुई, करो ठण्ड में सैर
माल हड़प कर और का, भरी तिजोरी खूब
हलुआ पूरी छोड़िये, बची नहीं अब दूब
कैश-लैस व्यापार में, कुछ तो दम है यार
छुप न सकेगा अब यहाँ, कोई भी व्यवहार
रोज हो रही धरपकड़, फँसे हुए हैं चोर
जनता तो रस ले रही, नेता करते शोर
खड़ी हो रही आजकल, काले धन की खाट
मिलकर सारे चोर अब, ढूंढ रहे हैं काट
कालेधन की लालसा, ले आई किस गाँव
उखड़ रहे बरगद यहाँ, कहाँ मिलेगी छाँव
हों चोरों के हाथ में, जब सरकारी कान
लागू कैसे देश में, होंगे नियम विधान
हिन्दुस्तान
नेता अफसर मौज में, मुफलिस यहाँ किसान
प्रतिभा गईं विदेश में, ये है हिंदुस्तान
सूनी सड़क न चल सके, नारी शक्ति महान
बच्चे मजदूरी करें, ये है हिंदुस्तान
पढ़े लिखे जो लोग हैं, करें नहीं मतदान
अनपढ़ मिल नेता चुनें, ये है हिंदुस्तान
बिन पैसे हिलते नहीं, दरवारी, दीवान
पाता न्याय अमीर बस, ये है हिंदुस्तान
हिरन मरे या आदमी, बरी होय सलमान
बेक़सूर हैं जेल में, ये है हिंदुस्तान
फुटपाथों पर सो रही, जनता बिना मकान
नेता, चमचों को महल, ये है हिंदुस्तान
जन्म दिन शुभकामना, सदा रहो खुशहाल
जीवन में बस प्रेम का, उड़ता रहे गुलाल
इक दूजे के साथ में, भरते रहो उड़ान
जीवन भर छाई रहे, अधरों पर मुस्कान
जन्मदिवस पर आपने, मुझे दिया जो प्यार
नहीं भूल सकता कभी, यह अनुपम उपहार
किस मत ने किस्मत बदल, ली है कुर्सी छीन
राहुल जी जिग्नेश से, पूछें बनकर दीन
मांग भरेगा वह तभी, जब पूरी हो मांग
पूरी करो न मांग अब, तोड़ो उसकी टांग
राष्ट्रभक्ति जिसके हृदय, बसती है हर वक्त
कहने में संकोच क्या, हम हैं उसके भक्त
जो भी हो जिसका, रहे, मेरे तो प्रभु राम
उनके ही सानिध्य में, मिला चैन आराम
जगह जगह जाकर किया, सबका ही उद्धार
सबके प्रभु श्री राम हैं, मानवता का सार
मन में सुमिरन जो करे, एक बार बस राम
छोटा हो या फिर बड़ा, बन जाता हर काम
जब भी पृथ्वी पर बढ़ा, दानव अत्याचार
धनुष वाण ले राम ने, किया असुर संहार
बात पते की है यही, करना सदा यकीन
सुख ने आ दुख से कहा, मैं हूँ तुझमें लीन
बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष (११.५.१७)
सदा शांति मन में रखो, होना कभी न क्रुद्ध |
मध्य मार्ग को खोज लो, करो कभी मत युद्ध ||
राग द्वेष छूटे सभी, और हुआ मन शुद्ध |
त्यागे सुख, दुख देखकर, तब कहलाये बुद्ध ||
परमारथ करते रहो, इसमें ख़ुशी अपार |
केवल खुद के ही लिए, जीना है बेकार ||
हरियाली का दिन मना, वृक्ष लगाकर आज
कागज़ मत बर्बाद कर, रख धरती की लाज
नारों में मत उलझिए, करते रहिये काम |
मानव केवल कर्म से, पाता जग में नाम ||
धूल और कालिख उड़े, सड़कें रहतीं जाम |
गाँव छोड़ कर शहर में, रहती मस्त अवाम ||
हर आँगन में पेड़ हो, हर आँगन में गाय |
स्वच्छ रहे पर्यावरण, बड़ा सटीक उपाय ||
गौ माता का जो रखे, अपने घर में ध्यान |
दूध-दही खाकर सदा, स्वस्थ रहे इंसान ||
जन जन के संघर्ष को, जिसने दी आवाज |
ऐसे वीर सुभाष पर, है हम सबको नाज ||
भाषाएँ हैं अनगिनत, तरह तरह के वेश
हिंदी बिंदी के बिना, सूना भारत देश
हिंदी भाषा का करें, हम सब मिल उत्थान
काम काज के साथ में, दिल से हो सम्मान
संसद में होने लगी, हिंदी में कुछ बात
निश्चित ही अब एक दिन, सुधरेंगे हालात
गूगल इनपुट टूल से, लिखना अब आसान
हिंदी छायी नेट पर, भारत की है शान
जर्मन रूस अमेरिका, चीन और जापान
निज भाषा में ही हुआ, इन सबका उत्थान
हिंदी में होने लगे, हर सरकारी काज
करे राजभाषा सदा, सबके दिल पर राज
बनकर अर्जुन युद्ध कर, है यह कार्य पवित्र |
स्थापित कर धर्म को, ज्यादा सोच न मित्र ||
विचलित मत हो कर्म से, है यह तेरा धर्म |
फल ईश्वर के हाथ है, सखा समझ यह मर्म ||
अविनाशी आत्मा सदा, छोड़ो जग का मोह |
होना ही है एक दिन, सबसे यहाँ विछोह ||
चलना सच के मार्ग पर, निश्चित होगी जीत |
थोड़ा सा बस धैर्य रख, विचलित मत हो मीत ||
जीवन भर सहती रही, सड़क हमारा भार |
बदले में हमने दिए, गड्ढों के उपहार ||
बादल गरजे तो बहुत, हुई नहीं बरसात |
आसमान सुनता कहाँ, धरती की कुछ बात ||
मीठी है, तीखी कभी, अंदर तक है मार |
मुझको तो अदभुत लगा, दोहों का संसार ||
तपे पतीला आँच पर, चमचा चमचम खाय |
अन्न उगाता है कृषक, आढतिया ले जाय ||
बगुले बैठे घेरकर, हर नदिया का तीर |
किसने समझी है यहाँ, मछली मन की पीर ||
दीपावली
लक्ष्मी जी का आगमन, लाया हर्ष अपार ||
विघ्न हरण गणपति करें, आकर सबके द्वार |
आँगन में रंगोलिया, सजते तोरण द्वार |
गुझियाँ लेकर आ गया, दीपों का त्यौहार ||
लड़ियाँ मिलकर सड़क पर, जमा रहीं हैं रंग ||
नाच रही है फुलझड़ी, प्रिय अनार के संग |
आग लगी जब पूँछ में, दौड़ चला रॉकेट |
कर लेगा वह आज ही, आसमान से भेट ||
कठिन नहीं कुछ भी यहाँ, सबसे करे अपील |
लिए आग को पेट में, उड़ती है कंदील ||
मना रहे दीपावली, जगमग है संसार |
मिटटी की खुशबू लिए, आये दीप हजार ||
नए नए कपड़े पहन, सखी सहेली संग |
बाल टोलियाँ नाचती, दिल में लिए उमंग ||
सूरज जा कर छुप गया, चंदा भी न समीप |
अंधकार से लड़ रहे, छोटे छोटे दीप ||
विपदाएँ आयीं नहीं, कभी हमारे गाँव |
माँ के आँचल की रही, सबके सिर पर छाँव ||
पंछी बन उड़ते रहो, खुला हुआ आकाश |
अपने पंखों पर सदा, रखो अटल विश्वास ||
खोलो मन की खिड़कियाँ, और हृदय के द्वार |
आर-पार बहती रहे, शीतल प्रेम बयार ||
आगे हाथ बढ़ा दिया, दिल में रखकर प्यार |
अपना सा लगने लगा, मुझको ये संसार ||
औरों की खातिर जिये, बाँटे सबको प्यार
यादों में रखता सदा, उसको ये संसार
आज सुबह जब मिल गया, खत का उन्हें जबाब |
कली कली दिल की खिली, मुखड़ा हुआ गुलाब ||
पथराये से हैं नयन, होठों पर है प्यास |
फिर भी ये मौसम लगे, जाने क्यों मधुमास ||
यादों के बादल घने, मन है बहुत उदास |
दूर हुआ मुझसे बहुत, फिर भी लगता पास ||
दुनिया मुझको चाहती, प्यारा यह अहसास |
लेकिन तू मुझको लगे, अपनों में भी खास ||
खुशियों का होता रहा, थोड़ा सा आभास |
लेकिन तेरे बिन लगा, जीवन ये वनवास ||
सुबह हुआ जब सूर्य के, आने का ऐलान |
कलियों की पलकें खुली, लिए अधर मुस्कान ||
कलियों ने भिजवा दिया, भँवरों को पैगाम |
गाँव हमारे आइये, दिल को अपने थाम ||
पुलकित तन, मन है मुदित, अरुणिम हुए कपोल |
चली सजनियाँ द्वार पर, सुन कागा के बोल ||
पुष्पों की मधुरिम महक, और पिया का ध्यान |
मन को घायल कर रही, मधुर मधुर मुस्कान ||
प्रीतम से नजरें मिली, आई थोड़ी लाज |
भाव-भंगिमा कह गयी, सब कुछ बिन आवाज ||
गागर में सागर भरें, मन को कर दें तृप्त |
बूढ़े बच्चे सब रहे, इन दोहों के भक्त ||
थोड़े दिन ही रह सका, मौसम यहाँ हसीन |
ऋतु बसंत के बाद में, जमकर तपी जमीन ||
मौसम का कश्मीर में, कैसा है बदलाव |
पुष्पनगर में दे रहे, शूल मूँछ पर ताव ||
खत्म कभी होते नहीं, घात और प्रतिघात |
प्रेम और बस प्रेम से, बदलेंगे हालात ||
मत से था मतलब कभी, मत पाकर अब मस्त |
मत देकर कुछ माँग मत, साहब जी हैं व्यस्त ||
इतना भी क्या दे रहे, अब मूंछों पर ताव
थोड़ा सा तो दीजिये, प्रेम-भाव को भाव
कुछ सोने में व्यस्त हैं, कुछ सोने में मस्त |
तुम सोना चाहो अगर, रहो कर्म में व्यस्त ||
धूप छाँव बरसात के, करे प्रकट उदगार |
नोंक जरा सी कलम की, सहती कितना भार ||
जयचंदों ने देश का, किया बहुत नुकसान
अब गौरी ही एक दिन, लेगा उनके प्रान
जिसने तपती रेत पर, बना दिए पदचाप |
निश्चय वह संसार मे, पाता सदा प्रताप ||
कौओं जैसी बोलियाँ, साँपों जैसी चाल |
करते भारत देश में, नेता रोज बवाल ||
पले हुए हैं देश में, तरह तरह के नाग |
गिरगिट जैसे रंग हैं, रोज उगलते आग ||
आज हमारे देश में, हों न अगर जयचंद |
कभी न कुछ भी कर सकें, दुश्मन के छल छंद ||
कथनी करनी हो सदा, भीतर बाहर एक |
ढूंढें से मिलते नहीं, बन्दे ऐसे नेक ||
जरा जरा सी बात पर, मचता यहाँ बबाल |
नाजुक बंधन प्यार का, रखिये इसे सँभाल ||
सत्य अहिंसा अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य अस्तेय |
पालन करना हर नियम, हो जीवन का ध्येय ||
रिश्तों में जब प्रेम का, हो न कभी रविवार |
सुख-दुख बाँटे मिल सभी, तब बनता परिवार ||
यादों के सपने लिए, आये पास कपोत |
जगा गए मेरे हृदय, पुनः प्रीत की जोत ||
बगिया में खिलने लगे, रंग बिरंगे रोज |
मिल जाता हमको सुबह, रोज प्रेम का डोज ||
हिंदी भाषा सा कहाँ, सरल सुगम साहित्य |
भाषाओँ के गगन में, हिंदी है आदित्य ||
ज्ञान और विज्ञान का, हो हिंदी में शोध |
एक राष्ट्र अवधारणा, का है इसमें बोध ||
जन गण की बोली यही, यही राष्ट्र की शान |
दे हर भाषा को जगह, हिंदी हुई महान ||
हों चाहे कितने कठिन, दुनिया में हालात |
अगर प्रेम से बात हो, बन जाती हर बात ||
इक बबूल के पेड़ पर, बसा बया का गाँव
भरी दोपहर में मिले, उसको ठंडी छाँव
सर्दी, गर्मी, बारिशें, हो आँधी तूफ़ान
रहे बया का घोंसला, हरदम सीना तान
फल का राजा आम है, मँहगा उसका दाम |
आम आदमी दूर से, देख रहा है आम ||
फूलों से कुर्सी सजी, साहब जी की रोज |
जन गण को मिलते रहे, बस काँटों के डोज ||
मर जाता रावण अगर, सब के मन का आज
हो जाता फिर देश में, रामचन्द्र का राज
रोज हुआ सीता हरण, प्रति दिन अत्याचार
रावण ने पल पल किया, छल का ही व्यापार
कल की चिंता मत करो, कल होता बेकार
आज हमारे हाथ में, जी लो उसको यार
चाँद दूज का दे गया, हमको ये सन्देश
छोटे बनकर के रहो, पूजें लोग विशेष
भोगों ने बांटा सदा, और दिए हैं रोग |
कला जोड़ने की हमें, सिखलाता है योग ||
देश विदेशों में बढ़ी, आज योग की शान |
सारे रोगों का मिला, सबको मुफ्त निदान ||
राजा रंक फ़क़ीर को, दिखलाई तस्वीर |
जो देखा वह लिख गए, अद्भुत संत कबीर ||
पंछी को मिलतीं कहाँ, आज पेड़ की छाँव |
दे न अतिथि की सूचना, अब कौवे की काँव ||
खून एक इंसान का, क्यूँ करते हो फर्क |
यही फर्क तो कर रहा, सबका बेड़ा गर्क ||
नहीं किसी का टिक सका, जग में कभी गरूर
लाखों के मालिक यहाँ, हो जाते मजदूर
भरी दुपहरी झेलता, सिर पर धूप बबूल |
काँटों के सँग खिल रहे, सुंदर सुंदर फूल ||
गर्मी से व्याकुल सभी, बालक और अधेड़ |
मजे धूप के ले रहा, अमलतास का पेड़ ||
अमलतास से मिल रहा, सबको आज सुकून |
मौसम वासंती हुआ, भले माह है जून ||
अमलतास ने कर दिया, धरती का श्रंगार |
बादल सजकर हो रहे, मिलने को तैयार ||
आँगन में झूला सजा, मन में सजी उमंग |
कर के तेरी याद पिय, फरकत हैं सब अंग ||
रोम रोम पुलकित करे, ठंडी पड़े फुहार |
पर साजन तेरे बिना, सूना है संसार ||
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