शिव त्रिनेत्र से देखते,
तीन काल-त्रैलोक.
जो घटता स्वीकारते,
देखें सत्य विलोक.
.
ग्यान-कर्म परिणाम क्या?,
किसका-क्या शुभ-लाभ?
सर्व हितैषी सदा शिव,
श्वेत श्याम नीलाभ.
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शिव न नगरवासी हुए,
शिव का महल न भव्य.
दिशा दिवालें हो गईं,
नील गगन छत नव्य.
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शिव संकल्प न छोड़ते,
शिव न भूलते भाव,
हर अभाव स्वीकारना,
शिव का सहज स्वभाव.
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शिव शंकर पर रीझ मन,
हरि शंकर भज नित्य.
पूज उमा शंकर सलिल-
रवि शंकर सान्निध्य.
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उमा अरुणिमा सूर्य शिव,
हैं श्रद्धा-विश्वास.
श्वास-श्वास में बस रहे,
बने आस-आवास.
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शिव सम्पद चाहें नहीं,
शिव को भाता भाव.
मन रम जा शिव-भक्ति में,
भागे भूत-अभाव.
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2.1.2018
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 2 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
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