मुक्तक-
बिखर जाओ फिजाओं में चमन को आज महकाओ
बजा वीणा निगम-आगम कहें जो सत्य वह गाओ
अनिल चेतन हुआ कैलाश पर श्री वास्तव में पा
बनो हीरो, तजो कटुता, मधुर मन मंजु हो जाओ
*
रहो शिव सम, न चाहो कुछ, बने जो वह विहँस देना
दिया प्रभु ने न जो वह अन्य से मत चाहना-लेना
मुकद्दर खुद लिखो अपना, न थक दिन-रात मेहनत कर
नर्मदा चाहतों की, नाव कोशिश की 'सलिल' खेना
***
बिखर जाओ फिजाओं में चमन को आज महकाओ
बजा वीणा निगम-आगम कहें जो सत्य वह गाओ
अनिल चेतन हुआ कैलाश पर श्री वास्तव में पा
बनो हीरो, तजो कटुता, मधुर मन मंजु हो जाओ
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रहो शिव सम, न चाहो कुछ, बने जो वह विहँस देना
दिया प्रभु ने न जो वह अन्य से मत चाहना-लेना
मुकद्दर खुद लिखो अपना, न थक दिन-रात मेहनत कर
नर्मदा चाहतों की, नाव कोशिश की 'सलिल' खेना
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