शिव सुरमय हैं, असुर को
सदा पढ़ाते पाठ।
सब चाहें जो वही गा,
तब ही होगा ठाठ।।
*
निज-पर हित दो शंकु ले,
रहे संतुलन पूर्ण।
राग चर्म वैराग की,
रही बिना अपूर्ण।।
*
बम-बम अनहद नाद कर,
भोले का जयघोष।
भोलेपन का आचरण,
देता सुख-संतोष।।
*
पौरुष डमरू जब बजे,
करे सफलता नृत्य।
विघ्न सर्प फुंफकार कर,
करे वंदना नित्य।।
*
कर-पग के कंगन बजे,
करते जय-जयकार।
जटा सर्पिणी झूमती,
मुदित नर्मदा- धार।।
*
उन्मीलित सरसिज नयन,
सत-शिव-सुंदर रूप।
लास-रास का समन्वय,
अद्भुत दिव्य अनूप।।
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 8 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
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