निंगा देव विराट हैं,
वनवासी के इष्ट।
बड़ा देव बनकर भरें,
सबके सभी अनिष्ट।।
*
बड़े-बड़े संकट मिटा,
कंटक कर-कर दूर।
अमरकंटकी ने किया,
सबका शुभ भरपूर।।
*
अनगिन कार्य महान कर,
महादेव पा नाम।
जीवों के स्वामी हुए,
पशुपति पूज्य सुनामी।
*
बेकल मन में कल बसी,
मेकल बसे शशीश।
जलपति, नभपति विरुद पा,
वनद-वनज पृथ्वीश।।
*
शंकाओं के शत्रु बन,
देते हैं विश्वास।
श्रद्धा होती सहचरी,
जगजननी सायास।।
*
वनवासी श्यामांग शिव,
श्रेष्ठिजनों प्रिय गौर।
गौरा संग नित रमण कर,
हुए सृष्टि सिरमौर।।
*
नहीं असंभव कुछ रहा,
करें सतत कल्याण।
हों प्रसन्न वरदान दें,
रूठें ले लें प्राण।।
*
काल आप भयभीत हो,
शिव का ऐसा तेज।
रूठ मौत को मौत दें,
यम को यमपुर भेज।।
"
रौद्र रूप देखे डरे,
थर-थर कांपे सृष्टि।
आंख दिखा दे रुद्र को,
कहीं न ऐसी दृष्टि।।
***
११.१.२०१८
दत्त भवन, नोएडा
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 11 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
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