व्यंग्य लेख:
हाथ पाकिस्तान का
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हाथ पाकिस्तान का
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ये ससुरा पकिस्तान भी गजब किये जा रहा है। 'घर में नईयां दाने और अम्मा चली भुनाने' खुद से अपना घर सम्हाले नहीं सम्हल रहा और चला है 'न भूतो न भविष्यति' का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे स्वयंभू महामानव, महानायक, महानेता और ना जाने कितने-कितने महा के घर के चुनाव में बाजी पलटने के लिए उन्हीं की राजधानी में, उन्हीं के प्रमुख विपक्षी दल के साथ बैठक करने।
कमबख्त को इतनी भी तमीज नहीं कि किसी के विरुद्ध षड्यंत्र करना हो तो अपने देश में बैठक करे, कुछ समय पहले से योजना बनाये। यह क्या बात हुई कि 'हथेली पर सरसों उगाने चले', जब चुनाव सिर पर आ गए तब शतरंज की बिसात बिछाने का विमर्श कर रहे हैं? इससे तो हमारी काम वाली बाई ही अच्छी है कि जिस्स्की इज्जत उतारनी होती है उसके काम में कुछ न कुछ 'खुआ' (कमी) निकाल लेती है और फिर दे तेरी की.... ऐसा गजब का तमाशा होता है कि सारे खानों की सारी फ़िल्में फ्लॉप और फ़ेल।
भैया पाकिस्तान! इतना तो लिहाज करो कि जो तुम्हारे वजीरे-आज़म (तत्कालीन) को उनके समकक्ष पद की शपथ ग्रहण करने के पहले ही समारोह में बुला सकता है और उनकी दुख्तर के निकाह में बिना पूर्व सूचना अचानक आसमान से टपक सकता है उसके खिलाफ अलादीन का चराग रगड़कर हैरान न करो। सोचो जो सात फेरे लेने के बाद भी बिना किसी अपराध अपनी पत्नी को छोड़ सकता है, वह तुम्हारे वजीरे आजम (पूर्व) के साथ हाथ मिलाने का रिवाज़ भी तोड़ ही सकता है।
पाकी चचा! चौराहे पर बैठ रही सब्जीवाली को शक है कि तुम उसके पति और प्रेमी के बीच भाँजी मार रहे हो। तुम्हें लव ज़िहाद के लिए ६ बच्चों की यह कमसिन हसीना ही मिली जिसके भव्य रंग के आगे कोयला भी शरमा जाए और जिसके स्वर को सुनकर भूकंप की भी बोलती बंद हो जाए।
हमें बखूबी मालूम है कि बेसिर-पैर की बातें करना तुम्हारा शौक ही नहीं मजहब भी है मगर इतना तो सोच लेते कि प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थी को प्रोफ़ेसर से पंगा नहीं लेना चाहिए।
हमने एक दस हाथवाले की व्यथा-कथा दूरदर्शन पर देखी है। वह कमबख्त भी इस देश के नरेश के चुनाव में कुछ न कर सका, बहुत जुगाड़ के बाद चोरी से उसकी सती-सावित्री को ही ले जा पाया जिसने कभी उसकी तरफ देखा भी नहीं, और बेचारा बेमौत मारा गया।
तुम्हारा इतना दुस्साहस कि तुम उसी देश के शहंशाह के सिंहासन को डुलाने के लिए एक छोटे से प्रान्त की सरकार के चुनाव पर नज़र डालो, वह भी तब जब कि उसके पीछे-पीछे शह दुम हिलाता घूम रहा हो।
देखो भैये! अच्छे से समझ लो यह सत्यवादी हरिश्चंद्र का देश है। इस देश का नरेश या नरेंद्र झूठ भी कह दे तो सच ही समझा जाएगा। इसलिए तुम या और कोई सफाई देने की कोशिश ही न करे तो बेहतर है।
सर्जिकल स्ट्राइक में सेना की कुशलता को ढाल बनाकर अपनी पीठ खुद ही ठोंकने की कला देखकर भी तुम यह नहीं समझ पाए कि जबान पर लगाम न रखनेवाले के घर से दूर रहना चाहिए।
कल को तुम्हारा हाथ हमारी रसोई में रोटी जलने में भी मिलने लगेगा। ऐसे कितने हाथ है दुश्मनेआला आपके पास जो हर लल्लू-कल्लू के काम में अड़ा देते हो। कुछ तो सोचो-समझो तुम्हें चुनाव प्रचार का हिस्सा बनना है तो अपने वजीरे आजम को भेजते वैसे ही जैसे हमारे गए थे, तब तुम्हारा रोल विश्व शांति में सहायक होता।
हमने सुना है 'बिल्ली को ख्वाब में छिछ्ड़े ही दिखते हैं, वैसे ही तुमको भी एक प्रदेश ही दिखता है। तुम लाख कहो कि तुम्हारा नाम हमारे अंदरूनी मामलात में न घसीटा जाए मगर हमारे सरकार तो घसीटेंगे ही क्योंकि अपना उल्लू सीधा करना हर नेता का जन्म सिद्ध अधिकार है।
बांग्ला देश में अड़ी टांग तुड़वा चुकने के बाद अब तुम्हारा हाथ हमारे वजीरे आला की पशेमानी पर सलवट का कारण बन रहा है, यह नाकाबिले बर्दाश्त है। ऐसा करो कि जब-जब हमारे हुजूर चुनाव के मैदान में तशरीफ़ का टोकरा ले जाएँ तुम अपना हाथ उनके हाथ से मिलाए रखा करो। तुम्हें क्या हक़ कि उनके घर में हो रहे चुनाव के समय तुम कहीं, किसी के साथ उठो-बैठो। तुम्हें तो मन की बात समझना चाहिए, ण समझ पाओ तो अपने यार चीन से कुछ सीख लो जो सरहद पर तमाशा करता है, गुर्राता है, फिर दुम हिलाता है, फिर घर बुलाकर स्वागत करता है और चुपके से जो करना है कर लेता है। तुम तो धोबी के गधे ही रह गए, न घर के हुए न घाट के...
चलो जो हुआ सो हुआ, अब मत खोदो कुआ... एक सबक सीख लो कि अपना हाथ उसी से मिलाना जो न मिलाने पर गैर के साथ मिलाने की बात इतनी बार कह सकता हो कि तुम्हें भी भरोसा हो जाए।
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