एक रचना -
*
करें पत्ते परिंदों से गुफ्तगू
व्यर्थ रहते हैं भटकते आप क्यूँ?
दरख्तों से बँध रहें तो हर्ज़ क्या
भटकने का आपको है मर्ज़ मया?
परिंदे बोले न बंधन चाहिए
नशेमन के संग आँगन चाहिए
फुदक दाना चुन सकें हम खुद जहाँ
उड़ानों पर भी न बंदिश हो वहाँ
बिना गलती क्यों गिरें हम डाल से?
करें कोशिश जूझ लें हर हाल से
चुगा दें चुग्गा उन्हें असमर्थ जो
तौल कर पर नाप लें हम गगन को
मौन पत्ता छोड़ शाखा गिर गया
परिंदा झटपट गगन में उड़ गया
***
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करें पत्ते परिंदों से गुफ्तगू
व्यर्थ रहते हैं भटकते आप क्यूँ?
दरख्तों से बँध रहें तो हर्ज़ क्या
भटकने का आपको है मर्ज़ मया?
परिंदे बोले न बंधन चाहिए
नशेमन के संग आँगन चाहिए
फुदक दाना चुन सकें हम खुद जहाँ
उड़ानों पर भी न बंदिश हो वहाँ
बिना गलती क्यों गिरें हम डाल से?
करें कोशिश जूझ लें हर हाल से
चुगा दें चुग्गा उन्हें असमर्थ जो
तौल कर पर नाप लें हम गगन को
मौन पत्ता छोड़ शाखा गिर गया
परिंदा झटपट गगन में उड़ गया
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