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रविवार, 24 दिसंबर 2017

muktika

मुक्तिका
तुम
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
सारी रात जगाते हो तुम
नज़र न फिर भी आते हो तुम.
थक कर आँखें बंद करुँ तो-
सपनों में मिल जाते हो तुम.
पहले मुझ से आँख चुराते,
फिर क्यों आँख मिलाते हो तुम?
रूठ मौन हो कभी छिप रहे,
कभी गीत नव गाते हो तुम
नित नटवर नटनागर नटखट
नचते नाच नचाते हो तुम
'सलिल' बाँह में कभी लजाते,
कभी दूर हो जाते हो तुम.
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