विदुषी कहानीकार सुमनलता श्रीवास्तव के
जन्मदिवस पर प्रणतांजलि:
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सुमन लिए श्री धरा पर, देती गंध बिखेर
आ महेंद्र ने समेटा, किंचित करी न देर
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सुर वाणी से स्नेह है, जग वाणी से प्यार
कलम सु-मन के भाव को, देती सतत निखार
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शत वर्षों तक सृजन से, भर हिंदी का कोष
सकल जगत में व्याप्त हों, तब ही हो संतोष
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