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सोमवार, 18 दिसंबर 2017

bhroon hatya: do navgeet

भ्रूण हत्या: दो नवगीत
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*
१. दोहा नवगीत
सोन चिरइया
सुनीता सिंह
*
सोन चिरइया
कह रही
मेरे आँसू पोंछ...

जन्म लिया जिसने नहीं,
सकी न दुनिया देख।
भ्रूण अजन्मी मारते,
पालक निर्दय लेख।।
मुझे समझते तात क्यों,
निर्बल अबला दीन,
आने दो मारो नहीं,
जुर्म न हो संगीन।।

चिंतन की
सँकरी गली,
मकड़जाल सी सोच।
सोन चिरइया
कह रही,
मेरे आँसू पोंछ...

हाट गुबार बजार में,
रावण है चहुँ ओर।
है दहेज़ दानव खड़ा,
मुँह बाए पुरजोर।।
दावानल धधके कहीं,
घायल हर माँ-बाप।
जलती यदि बिटिया कहीं,
जीवन हो अभिशाप।।

ढाई आखर
काम के,
ले अक्षत संग खोंछ।
सोन चिरइया
कह रही,
मेरे आँसू पोंछ...
***
२. नवगीत
हो सके तो
निर्मल शुक्ल
*
सच कहूँ तो
हर किसी के दर्द को
अपना समझना 
हो सके तो
.
एक पल को मान लेना 
हाथ में सीना तुम्हारा
दर्द से 
छलनी हुआ हो
साँस ले-न-ले दुबारा
.
सच कहूँ तो
उन क्षणों में, एक छोटी 
चूक से
बचना-सम्हलना 
हो सके तो
एक पल को, कोख की 
हारी-अजन्मी चीख सुनना
और बदनीयत 
हवा के
हर कदम पर आँख रखना
.
सच कहूँ तो 
उन क्षणों में, याद करना 
बेबसी का हर उलहना 
हो सके तो 
.
हो न हो, उस पल तुम्हारा 
समय से संवाद भी हो 
आह भी 
रोना-सुबकना 
वाद हो, प्रतिवाद भी हो 
.
सच कहूँ तो 
उन क्षणों में 
धैर्य रखना,
और, रिसते घाव भरना 
हो सके तो 

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