शब्द सलिला १-
सैलाब या शैलाब?
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सही शब्द ’सैलाब’ ही है -’शैलाब ’ नहीं।
’सैलाब’[ सीन,ये,लाम,अलिफ़,बे] -अरबी/फ़ारसी का लफ़्ज़ है, जो ’सैल’ और ’आब’ से बना है। ’सैल’ [अरबी लफ़्ज़] मानी बहाव और ’आब’ [फ़ारसी लफ़्ज़] मानी पानी सैलाब माने पानी का बहाव। हम इसका अर्थ अचानक आया पानी का बहाव ,जल-प्लावन या बाढ़ से लेते हैं।
आब गई, आदर गया, नैनन गया सनेह।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देय।।
सैल के साथ आब के अलिफ़ का वस्ल [ मिलन ] हो गया है। अत:, ’सैल आब ’ के बजाय ’सैलाब’ ही पढ़ते - बोलते है । हिन्दी में इसे आप ’दीर्घ सन्धि’ कहते हैं। ’सैल’ मानी ’बहाव’ अर्थात एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना। इसी लफ़्ज़ से ’सैलानी’ बना है, वह जो निरन्तर सैर तफ़्रीह करते हुए एक जगह से दूसरी जगह जाता रहता है।
आँसुओं की बाढ़ को सैल-ए-अश्क भी कहते हैं।
पानी बहने के बाद लौटता नहीं, एक बार जाने के बाद इज्जत भी फिर नहीं मिलती, इस समानता को मद्देनज़र रखकर कवि रहीम ने आब का प्रयोग निम्न दोहे में किया है। आब के पर्यायवाची 'पानी' का प्रयोग कर रहीम ने एक और दोहा कहा है-
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून
यहाँ 'पानी' का अर्थ मोती की चमक, मनुष्य की इज्जत और चूने के सूखने से है। किसी शब्द को किस तरह नए-नए अर्थ दिए जाते हैं, यह दोहा इसका उदहारण है।
हिन्दी शब्द ’शैल’ अर्थ पर्वत होता है। 'जा' का अर्थ उत्पन्न करना, पैदा करना, जन्म देना। इसी से 'जाया' क्रिया बनी है। जिसे जाया जाए वह 'जातक' अर्थात संतान। बुद्ध की जातक कथाएँ विविध योनिओं में जन्म लेने की कहानियाँ हैं।
'शैल' + 'जा' = हिमालय पर्वत की पुत्री पार्वती
पर्वतों से निकलकर बहनेवाली नदियों को भी शैलजा, शैलसुता, शैलात्मजा, शैलकन्या, शैलदुहिता आदि कहते हैं।
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