दिया :
सारी ज़िन्दगी
तिल-तिल कर जला.
तिल-तिल कर जला.
फिर भर्र कभी
हाथों को नहीं मला.
हाथों को नहीं मला.
होठों को नहीं सिला.
न किया शिकवा गिला.
आख़िरी साँस तक
अँधेरे को पिया
अँधेरे को पिया
इसी लिये तो मरकर भी
अमर हुआ
अमर हुआ
मिट्टी का दिया.
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salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५९६१८
www.divyanarmada.in. #हिंदी_ब्लॉगर
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