द्विपदियाँ :
मैं नर्मदा तुम्हारी मैया, चाहूँ साफ़ सफाई
माँ का आँचल करते गंदा, तुम्हें लाज ना आई?
माँ का आँचल करते गंदा, तुम्हें लाज ना आई?
भरो बाल्टी में जल- जाकर, दूर नहाओ खूब
देख मलिन जल और किनारे, जाओ शर्म से डूब
देख मलिन जल और किनारे, जाओ शर्म से डूब
कपड़े, पशु, वाहन नहलाना, बंद करो तत्काल
मूर्ति सिराना बंद करो, तब ही होगे खुशहाल
मूर्ति सिराना बंद करो, तब ही होगे खुशहाल
पौध लगाकर पेड़ बनाओ, वंश वृद्धि तब होगी
पॉलीथीन बहाया तो, संतानें होंगी रोगी
पॉलीथीन बहाया तो, संतानें होंगी रोगी
दीपदान तर्पण पूजन, जलधारा में मत करना
मन में सुमिरन कर, मेरा आशीष सदा तुम वरना
मन में सुमिरन कर, मेरा आशीष सदा तुम वरना
जो नाले मुझमें मिलते हैं, उनको साफ़ कराओ
कीर्ति-सफलता पाकर, तुम मेरे सपूत कहलाओ
कीर्ति-सफलता पाकर, तुम मेरे सपूत कहलाओ
जो संतानें दीन उन्हें जब, लँहगा-चुनरी दोगे
ग्रहण करूँगी मैं, तुमको आशीष अपरिमित दूँगी
ग्रहण करूँगी मैं, तुमको आशीष अपरिमित दूँगी
वृद्ध अपंग भिक्षुकों को जब, भोजन करवाओगे
तृप्ति मिलेगी मुझको, सेवा सुत से तुम पाओगे
तृप्ति मिलेगी मुझको, सेवा सुत से तुम पाओगे
पढ़ाई-इलाज कराओ किसी का, या करवाओ शादी
निश्चय संकट टल जाये, रुक जाएगी बर्बादी
निश्चय संकट टल जाये, रुक जाएगी बर्बादी
पथवारी मैया खुश हो यदि रखो रास्ते साफ़
भारत माता, धरती माता, पाप करेंगी माफ़
भारत माता, धरती माता, पाप करेंगी माफ़
हिंदी माता की सेवा से, पुण्य यज्ञ का मिलता
मात-पिता की सेवा कर सुत, भाव सागर से तरता
मात-पिता की सेवा कर सुत, भाव सागर से तरता
***
मुक्तिका:
अवगुन चित न धरो
*
सुन भक्तों की प्रार्थना, प्रभुजी हैं लाचार
भक्तों के बस में रहें, करें गैर-उद्धार
कोई न चुने चुनाव में, करें नहीं तकरार
संसद टीवी से हुए, बाहर बहसें हार
मना जन्म उत्सव रहे, भक्त चढ़ा-खा भोग
टुकुर-टुकुर ताकें प्रभो,हो बेबस-लाचार
सब मतलब से पूजते, सब चाहें वरदान
कोई न कन्यादान ले, दुनिया है मक्कार
ब्याह गयी पर माँगती, है फिर-फिर वर दान
प्रभु की मति चकरा रही, बोले:' है धिक्कार'
वर माँगे वर-दान- दें कैसे? हरि हैरान
भला बनाया था हुआ, है विचित्र संसार
अवगुन चित धरकर कहे, 'अवगुन चित न धरो
प्रभु के विस्मय का रहा, कोई न पारावार
**
अवगुन चित न धरो
*
सुन भक्तों की प्रार्थना, प्रभुजी हैं लाचार
भक्तों के बस में रहें, करें गैर-उद्धार
कोई न चुने चुनाव में, करें नहीं तकरार
संसद टीवी से हुए, बाहर बहसें हार
मना जन्म उत्सव रहे, भक्त चढ़ा-खा भोग
टुकुर-टुकुर ताकें प्रभो,हो बेबस-लाचार
सब मतलब से पूजते, सब चाहें वरदान
कोई न कन्यादान ले, दुनिया है मक्कार
ब्याह गयी पर माँगती, है फिर-फिर वर दान
प्रभु की मति चकरा रही, बोले:' है धिक्कार'
वर माँगे वर-दान- दें कैसे? हरि हैरान
भला बनाया था हुआ, है विचित्र संसार
अवगुन चित धरकर कहे, 'अवगुन चित न धरो
प्रभु के विस्मय का रहा, कोई न पारावार
**
नवगीत:
धैर्य की पूँजी
न कम हो
मनोबल
घटने न देना
न कम हो
मनोबल
घटने न देना
जंग जीवट- जिजीविषा की
मौत के आतंक से है
आस्था की कली कोमल
भेंटती शक-डंक से है
मौत के आतंक से है
आस्था की कली कोमल
भेंटती शक-डंक से है
नाव निज
आरोग्य की
तूफ़ान में
डिगने न देना
आरोग्य की
तूफ़ान में
डिगने न देना
मूल है किंजल्क का
वह पंक जिससे भागते हम
कमल-कमला को हमेशा
मग्न हो अनुरागते हम
देह ही है
गेह मन का
देह को
मिटने न देना
वह पंक जिससे भागते हम
कमल-कमला को हमेशा
मग्न हो अनुरागते हम
देह ही है
गेह मन का
देह को
मिटने न देना
चिकित्सा सेवा अधिक
व्यवसाय कम है ध्यान रखना
मौत के पंजे से जीवन
बचाये बिन नहीं रुकना
लोभ को,
संदेह को
मन में तनिक
टिकने न देना
व्यवसाय कम है ध्यान रखना
मौत के पंजे से जीवन
बचाये बिन नहीं रुकना
लोभ को,
संदेह को
मन में तनिक
टिकने न देना
***
मुक्तिका:
हाथ मिले
माथ उठे
माथ उठे
मन अनाम
देह बिके
देह बिके
कौन कहाँ
पत्र लिखे?
पत्र लिखे?
कदम बढ़े
बाल दिये
बाल दिये
वसन न्यून
आँख सिके
आँख सिके
द्रुपद सुता
सती रहे
सती रहे
सत्य कहे
आप दहे
आप दहे
***
बाल कविता
हम बच्चे हैं मन के सच्चे सबने हमें दुलारा है
देश और परिवार हमें भी सचमुच लगता प्यारा है
देश और परिवार हमें भी सचमुच लगता प्यारा है
अ आ इ ई, क ख ग संग ए बी सी हम सीखेंगे
भरा संस्कृत में पुरखों ने ज्ञान हमें उपकारा है
भरा संस्कृत में पुरखों ने ज्ञान हमें उपकारा है
वीणापाणी की उपासना श्री गणेश का ध्यान करें
भारत माँ की करें आरती, यह सौभाग्य हमारा है
भारत माँ की करें आरती, यह सौभाग्य हमारा है
साफ-सफाई, पौधरोपण करें, घटायें शोर-धुआं
सच्चाई के पथ पग रख बढ़ना हमने स्वीकारा है
सच्चाई के पथ पग रख बढ़ना हमने स्वीकारा है
सद्गुण शिक्षा कला समझदारी का सतत विकास करें
गढ़ना है भविष्य मिल-जुलकर यही हमारा नारा है
गढ़ना है भविष्य मिल-जुलकर यही हमारा नारा है
***
नव गीत
मन की महक
संजीव 'सलिल'
*
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
*
नेह नर्मदा नहा,
छाछ पी, जमुना रास रचाये.
गंगा 'बम भोले' कह चम्बल
को हँस गले लगाये..
कहे : 'राम जू की जय'
कृष्णा-कावेरी सरयू से-
साबरमती सिन्धु सतलज संग
ब्रम्हपुत्र इठलाये..
लहर-लहर
जन-गण मन गाये,
'सलिल' करे मनुहार.
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
*
विन्ध्य-सतपुड़ा-मेकल की,
हरियाली दे खुशहाली.
काराकोरम-कंचनजंघा ,
नन्दादेवी आली..
अरावली खासी-जयंतिया,
नीलगिरी, गिरि झूमें-
चूमें नील-गगन को, लूमें
पनघट में मतवाली.
पछुआ-पुरवैया
गलबहियाँ दे
मनायें त्यौहार.
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
*
चूँ-चूँ चहक-चहक गौरैया
कहे हो गयी भोर.
सुमिरो उसको जिसने थामी
सब की जीवन-डोर.
होली ईद दिवाली क्रिसमस
गले मिलें सुख-चैन
मिला नैन से नैन,
बसें दिल के दिल में चितचोर.
बाज रहे
करताल-मंजीरा
ठुमक रहे करतार.
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
****************
मन की महक
संजीव 'सलिल'
*
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
*
नेह नर्मदा नहा,
छाछ पी, जमुना रास रचाये.
गंगा 'बम भोले' कह चम्बल
को हँस गले लगाये..
कहे : 'राम जू की जय'
कृष्णा-कावेरी सरयू से-
साबरमती सिन्धु सतलज संग
ब्रम्हपुत्र इठलाये..
लहर-लहर
जन-गण मन गाये,
'सलिल' करे मनुहार.
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
*
विन्ध्य-सतपुड़ा-मेकल की,
हरियाली दे खुशहाली.
काराकोरम-कंचनजंघा ,
नन्दादेवी आली..
अरावली खासी-जयंतिया,
नीलगिरी, गिरि झूमें-
चूमें नील-गगन को, लूमें
पनघट में मतवाली.
पछुआ-पुरवैया
गलबहियाँ दे
मनायें त्यौहार.
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
*
चूँ-चूँ चहक-चहक गौरैया
कहे हो गयी भोर.
सुमिरो उसको जिसने थामी
सब की जीवन-डोर.
होली ईद दिवाली क्रिसमस
गले मिलें सुख-चैन
मिला नैन से नैन,
बसें दिल के दिल में चितचोर.
बाज रहे
करताल-मंजीरा
ठुमक रहे करतार.
मन की महक
बसी घर-अँगना
बनकर बंदनवार...
****************
नवगीत:
महका-महका :
संजीव सलिल
*
महका-महका
मन-मंदिर रख सुगढ़-सलौना
चहका-चहका
*
आशाओं के मेघ न बरसे
कोशिश तरसे
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घर से
बासन माँजे, कपड़े धोए
काँख-काँखकर
समझ न आए पर-सुख से
हरसे या तरसे
दहका-दहका
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका-लहका
*
एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
कौन बनाए
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताए
मेहनत भूखी, चमड़ी सूखी
आँखें चमकें
कहाँ जाएगी मंजिल
सपने हों न पराए
बहका-बहका
सम्हल गया पग, बढ़ा राह पर
ठिठका-ठहका
*
लख मयंक की छटा अनूठी
मन-मंदिर रख सुगढ़-सलौना
चहका-चहका
*
आशाओं के मेघ न बरसे
कोशिश तरसे
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घर से
बासन माँजे, कपड़े धोए
काँख-काँखकर
समझ न आए पर-सुख से
हरसे या तरसे
दहका-दहका
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका-लहका
*
एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
कौन बनाए
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताए
मेहनत भूखी, चमड़ी सूखी
आँखें चमकें
कहाँ जाएगी मंजिल
सपने हों न पराए
बहका-बहका
सम्हल गया पग, बढ़ा राह पर
ठिठका-ठहका
*
लख मयंक की छटा अनूठी
तारे हरषे.
नेह नर्मदा नहा चन्द्रिका
चाँदी परसे.
नर-नरेंद्र अंतर से अंतर
बिसर हँस रहे.
हास-रास मधुमास न जाए-
घर से, दर से.
दहका-दहका
सूर्य सिंदूरी, उषा-साँझ संग
धधका-दहका...
***************
नेह नर्मदा नहा चन्द्रिका
चाँदी परसे.
नर-नरेंद्र अंतर से अंतर
बिसर हँस रहे.
हास-रास मधुमास न जाए-
घर से, दर से.
दहका-दहका
सूर्य सिंदूरी, उषा-साँझ संग
धधका-दहका...
***************
द्विपदियाँ
स्नेह-दीप
salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५५९६१८
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