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शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

दोहा सलिला

सामयिक दोहे
लोकतंत्र की माँग है, सकल देश हो एक.
जनप्रतिनिधि सेवक बने, जाग्रत रखे विवेक.
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जनसेवक कि क्यों मिले, नेता भत्ता आज.
आम आदमी बन रहे, क्यों आती है लाज?
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दल-दलबंदी बंद हो, हो न व्यर्थ तकरार.
राष्ट्रीय सरकार हो, संसद जिम्मेदार.
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देश एक है, प्रान्त हैं, अलग-अलग पर संग.
भाषा-भूषा-सभ्यता, भिन्न न दिल हैं तंग.
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निर्वाचन हो दल रहित, काबलियत आधार.
उत्तम जन प्रतिनिधि करें, सेवा तज व्यापार.
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हर विचार के श्रेष्ठजन, बना सकें सरकार.
शेष समर्थक साथी हों, तज विरोध-व्यापार.
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राज्य-केन्द्र में विविध दल, काम करें संग-साथ.
करें देश-निर्माण मिल, मिला हाथ से हाथ.
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मात्र एक दल की नहीं, बने सभी सरकार.
मतदाता जाग्रत रहे, सजा यहीं दरकार.
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