घनाक्षरी सलिला
आठ-आठ-आठ-सात, पर यति रखकर,
मनहर घनाक्षरी, छंद कवि रचिए।
लघु-गुरु रखकर, चरण के आखिर में,
'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिए।।
अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधार सम,
गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए।
करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण-
'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए।।
*
लक्ष्य जो भी वरना हो, धाम जहाँ चलना हो,
काम जो भी करना हो, झटपट करिए।
तोड़ना नियम नहीं, छोड़ना शरम नहीं,
मोड़ना धरम नहीं, सच पर चलिए।।
आम आदमी हैं आप, सोच मत चुप रहें,
खास बन आगे बढ़, देशभक्त बनिए।।
गलत जो होता दिखे, उसका विरोध करें,
'सलिल' न आँख मूँद, चुपचाप सहिये।।
*
फेस 'बुक' हो ना पाए, गुरु यह बेहतर,
फेस 'बुक' हुआ है तो, छुडाना ही होगा। फेस की लिपाई या पुताई चाहे जितनी हो, फेस की असलियत, जानना जरूरी है।। फेस रेस करेगा तो, पोल खुल जाएगी ही, फेस फेस ना करे तैयारी जो अधूरी है। फ़ेस देख दे रहे हैं, लाइक पे लाइक जो, हीरो जीरो, फ्रेंडशिप सिर्फ मगरूरी है।।
आठ-आठ-आठ-सात, पर यति रखकर,
मनहर घनाक्षरी, छंद कवि रचिए।
लघु-गुरु रखकर, चरण के आखिर में,
'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिए।।
अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधार सम,
गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए।
करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण-
'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए।।
*
लक्ष्य जो भी वरना हो, धाम जहाँ चलना हो,
काम जो भी करना हो, झटपट करिए।
तोड़ना नियम नहीं, छोड़ना शरम नहीं,
मोड़ना धरम नहीं, सच पर चलिए।।
आम आदमी हैं आप, सोच मत चुप रहें,
खास बन आगे बढ़, देशभक्त बनिए।।
गलत जो होता दिखे, उसका विरोध करें,
'सलिल' न आँख मूँद, चुपचाप सहिये।।
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फेस 'बुक' हो ना पाए, गुरु यह बेहतर,
फेस 'बुक' हुआ है तो, छुडाना ही होगा। फेस की लिपाई या पुताई चाहे जितनी हो, फेस की असलियत, जानना जरूरी है।। फेस रेस करेगा तो, पोल खुल जाएगी ही, फेस फेस ना करे तैयारी जो अधूरी है। फ़ेस देख दे रहे हैं, लाइक पे लाइक जो, हीरो जीरो, फ्रेंडशिप सिर्फ मगरूरी है।।
*
संसद के मंच पर, लोक-मत तोड़े दम,
राजनीति सत्ता-नीति, दल-नीति कारा है ।
नेताओं को निजी हित, साध्य- देश साधन है,
मतदाता घोटालों में, घिर बेसहारा है ।
'सलिल' कसौटी पर, कंचन की लीक है कि,
अन्ना-रामदेव युति, उगा ध्रुवतारा है।
स्विस बैंक में जमा जो, धन आये भारत में ,
देर न करो भारत, माता ने पुकारा है।
*
फूँकता कवित्त प्राण, डाल मुरदों में जान,
दीप बाल अंधकार, ज़िंदगी का हरता।
नर्मदा निनाद सुनो,सच की ही राह चुनो,
जीतता सुधीर धर, धीर पीर सहता।।
'सलिल'-प्रवाह पैठ, आगे बढ़ नहीं बैठ,
सागर है दूर पूर, दूरी हो निकटता।
आना-जाना खाली हाथ, कौन कभी देता साथ,
हो अनाथ भी सनाथ, प्रभु दे निकटता।।
*
घन अक्षरी गाइये, डूबकर सुनाइए,
त्रुटि नहीं छिपाइये, सीखिये-सिखाइए।
शिल्प-नियम सीखिए, कथ्य समझ रीझिए,
भाव भरे शब्द चुन, लय भी बनाइए।।
बिंब नव सजाइये, प्रतीक भी लगाइये,
अलंकार कुछ नये, प्रेम से सजाइए।।
वचन-लिंग, क्रिया रूप, दोष न हों देखकर,
आप गुनगुनाइए, वाह-वाह पाइए।।
*
न चाहतें, न राहतें, न फैसले, न फासले,
दर्द-हर्ष मिल सहें, साथ-साथ हाथ हों।
न मित्रता, न शत्रुता, न वायदे, न कायदे,
कर्म-धर्म नित करें, उठे हुए माथ हों।।
न दायरे, न दूरियाँ, रहें न मजबूरियाँ,
फूल-शूल, धूप-छाँव, नेह नर्मदा बनें।।
गिर-उठें, बढ़े चलें, काल से विहँस लड़ें,
दंभ-द्वेष-छल मिटें, कोशिशें कथा बुनें।।
*
संकट में लाज थी, गिरी सिर पे गाज थी,
शत्रु-दृष्टि बाज थी, नैया कैसे पार हो?
करनावती महारानी, पूजतीं माता भवानी,
शत्रु है बली बहुत, देश की न हार हो।।
राखी हुमायूँ को भेजी, बादशाह ने सहेजी,
बहिन की पत राखी, नेह का करार हो।
शत्रु को खदेड़ दिया, बहिना को मान दिया,
नेह का जलाया दिया, भेंट स्वीकार हो।।
*
महाबली बलि को था, गर्व हुआ संपदा का,
तीन लोक में नहीं है, मुझ सा कोई धनी।
मनमानी करूँ भी तो, रोक सकता न कोई,
हूँ सुरेश से अधिक, शक्तिवान औ' गुनी।।
महायज्ञ कर दिया, कीर्ति यश बल लिया,
हरि को दे तीन पग, धरा मौन था गुनी।
सभी कुछ छिन गया, मुख न मलिन हुआ,
हरि की शरण गया, सेवा व्रत ले धुनी।।
*
बाधा दनु-गुरु बने, विपद मेघ थे घने,
एक नेत्र गँवा भगे, थी व्यथा अनसुनी।
रक्षा सूत्र बाँधे बलि, हरि से अभय मिली,
हृदय की कली खिली, पटकथा यूँ बनी।।
विप्र जब द्वार आये, राखी बाँध मान पाये,
शुभाशीष बरसाये, फिर न हो ठनाठनी।
कोई किसी से न लड़े, हाथ रहें मिले-जुड़े,
साथ-साथ हों खड़े, राखी मने सावनी।।
*
सावन में झूम-झूम, डालों से लूम-लूम,
झूला झूल दुःख भूल, हँसिए हँसाइए ।
एक दूसरे की बाँह, गहें बँधें रहे चाह,
एक दूसरे को चाह, कजरी सुनाइए।।
दिल में रहे न दाह, तन्नक पले न डाह,
मन में भरे उछाह, पेंग को बढ़ाइए।
राखी की है साखी यही, पले प्रेम-पाखी यहीं,
भाई-भगिनी का नाता, जन्म भर निभाइए।।
*
बागी थे हों अनुरागी, विरागी थे हों सुहागी,
कोई भी न हो अभागी, दैव से मनाइए।
सभी के माथे हो टीका, किसी का न पर्व फीका,
बहनों का नेह नीका, राखी-गीत गाइए।।
कलाई रहे न सूनी, राखी बाँध शोभा दूनी,
आरती की ज्वाल धूनी, अशुभ मिटाइए।
मीठा खाएँ मीठा बोलें, जीवन में रस घोलें,
बहना के पाँव छूलें, शुभाशीष पाइए।।
*
बंधन न रास आए, बँधना न मन भाए,
स्वतंत्रता ही सुहाए, सहज स्वभाव है।
निर्बंध अगर रहें, मर्याद को न गहें,
कोई किसी को न सहें, चैन का अभाव है।।
मना राखी नेह पर्व, करिए नातों पे गर्व,
निभायें संबंध सर्व, नेह का निभाव है।
बंधन जो प्रेम का हो, कुशल का क्षेम का हो,
धरम का नेम हो, 'सलिल' सत्प्रभाव है।।
*
न चाहतें, न राहतें, न फैसले, न फासले,
दर्द-हर्ष मिल सहें, साथ-साथ हाथ हों।
न मित्रता, न शत्रुता, न वायदे, न कायदे,
कर्म-धर्म नित करें, उठे हुए माथ हों।।
न दायरे, न दूरियाँ, रहें न मजबूरियाँ,
फूल-शूल, धूप-छाँव, नेह नर्मदा बनें।
गिर-उठें, बढ़े-चलें, काल से विहँस लड़ें,
दंभ-द्वेष-छल मिटें,कोशिशें कथा बुनें।।
*
लाख़ मतभेद रहें, पर मनभेद न हों,
भाई को हमेशा गले, हँस के लगाइए।
लात मार दूर करें, दशमुख सा अनुज,
शत्रुओं को न्योत घर, कभी भी न लाइए।।
भाई नहीं दुश्मन जो, इंच भर भूमि न दें,
नारि-अपमान कर, नाश न बुलाइए।
छल-छद्म, दाँव-पेंच, द्वंद-फंद अपना के,
राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइये।।
जिसका जो जोड़ीदार, करे उसे वही प्यार,
कभी फूल कभी खार, मन-मन भाया है।
पास आये सुख मिले, दूर जाये दुःख मिले,
साथ रहे पूर्ण करे, जिया हरषाया है।।
चाह-वाह-आह-दाह, नेह नदिया अथाह,
कल-कल हो प्रवाह, डूबा-उतराया है।
गर्दभ कहे गधी से, आँख मूँद - कर - जोड़,
देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है।।
(श्रृंगार तथा हास्य रस का मिश्रण)
*
शहनाई गूँज रही, नाच रहा मन मोर,
जल्दी से हल्दी लेकर, करी मनुहार है।
आकुल हैं-व्याकुल हैं, दोनों एक-दूजे बिन,
नया-नया प्रेम रंग, शीश पे सवार है।।
चन्द्रमुखी, सूर्यमुखी, ज्वालामुखी रूप धरे,
सासू की समधन पे, जग बलिहार है।
गेंद जैसा या है ढोल, बन्ना तो है अनमोल,
बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है।।
*
ये तो सब जानते हैं, जान के न मानते हैं,
जग है असार पर, सार बिन चले ना।
मायका सभी को लगे - भला, किन्तु ये है सच,
काम किसी का भी, ससुरार बिन चले ना।।
मनुहार इनकार, इकरार इज़हार,
भुजहार, अभिसार, प्यार बिन चले ना।
रागी हो, विरागी हो या हतभागी बड़भागी,
दुनिया में काम कभी, 'नार' बिन चले ना।।
(अंतिम पंक्ति में श्लेष अलंकार 'नार' = ज्ञान, पानी, स्त्री)
*
बुन्देली
जाके कर बीना सजे, बाके दर सीस नवे,
मन के विकार मिटे, नित गुनगाइए।
ज्ञान, बुधि, भासा, भाव, तन्नक न हो अभाव,
बिनत रहे सुभाव, गुनन सराहिए।।
किसी से नाता लें जोड़, कब्बो जाएँ नहीं तोड़,
फालतू न करें होड़, नेह सों निबाहिए।
हाथन तिरंगा थाम, करें सदा राम-राम,
'सलिल' से हों न वाम, देस-वारी जाइए।।
*
छत्तीसगढ़ी
अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान,
धरती मा फूँक प्राण, पसीनाबहाव थे।
बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव,
महुआ-अचार खाव, पंडवानीभाव थे।।
बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय,
थोरको न ओतियाय, टूरीइठलाव थे।
भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल,
घोटुल मा रस घोल, मुटियारीभाव थे।।
*
निमाड़ी
गधा का माथा का सिंग, जसो नेता गुम हुयो,
गाँव खs बटोsर वोsट,उल्लूs की दुम हुयो।
मनखs को सुभाsव छे, नहीं सहे अभाव छे,
हमेसs खांव-खांव छे, आपsसे तुम हुयो।।
टीला पाणी झाड़s नद्दी, हाय खोद रएs पिद्दी,
भ्रष्टs सरsकारs रद्दी, पतानामालुम हुयो।
'सलिल' आँसू वादsला, धsरा कहे खाद ला,
मिहsनतs का स्वाद पा, दूरsमाsतम हुयो।।
*
मालवी:
दोहा:
भणि ले म्हारा देस की, सबसे राम-रहीम।
जल ढारे पीपल तले, अँगना चावे नीम।।
कवित्त
शरद की चांदणी से, रात सिनगार करे,
बिजुरी गिरे धरा पे, फूल नभ सेझरे।
आधी राती भाँग बाटी, दिया की बुझाई बाती,
मिसरी-बरफ़ घोल्यो,नैना हैं भरे-भरे।।
भाभीनी जेठानी रंगे, काकीनी मामीनी भीजें,
सासू-जाया नहीं आया,दिल धीर न धरे।
रंग घोल्यो हौद भर, बैठी हूँ गुलाल धर,
राह में रोके हैं यार, हाय! टारे नटरे।।
*
राजस्थानी
जीवण का काचा गेला, जहाँ-तहाँ मेला-ठेला,
भीड़-भाड़ ठेलं-ठेला, मोड़तरां-तरां का।
ठूँठ सरी बैठो काईं?, चहरे पे आई झाईं,
खोयी-खोयी परछाईं, जोड़ तरां-तरां का।।
चाल्यो बीज बजारा रे?, आवारा बनजारा रे?,
फिरता मारा-मारा रे?,होड़ तरां-तरां का।
नाव कनारे लागैगी, सोई किस्मत जागैगी,
मंजिल पीछे भागेगी, तोड़तरां-तरां का।।
*
भोजपुरी
चमचम चमकल, चाँदनी सी झलकल,
झपटल लपकल, नयन कटरिया|
तड़पल फड़कल, धक्-धक् धड़कल,
दिल से जुड़ल दिल, गिरलबिजुरिया।।
निरखल परखल, रुक-रुक चल-चल,
सम्हल-सम्हल पग, धरलगुजरिया।
छिन-छिन पल-पल, पड़त नहीं रे कल,
मचल-मचल चल, चपल संवरिया।।
*
हिन्दी+उर्दू
दर्दे-दिल पीरो-गम, किसी को दिखाएँ मत,
दिल में छिपाए रखें, हँस-मुस्कुराइए।
हुस्न के न ऐब देखें, देखें भी तो नहीं लेखें,
दिल पे लुटा के दिल, वारी-वारी जाइए।।
नाज़ो-अदा नाज़नीं के, देख परेशान न हों,
आशिकी की रस्म है कि, सिर भी मुड़ाइए।
चलिए न ऐसी चाल, फालतू मचे बवाल,
कोई न करें सवाल, नखरे उठाइए।।
*
जनहरण घनाक्षरी
लक्षण छंद:
दिशि वसु गज युग, गुरु रखकर रच, सुन-गुन लिख-पढ़, कवि -मन कविता।
तम हर रवि लख , जग उठ झटपट, चटपट चटपट,
जनहरण घनाक्षरी
लक्षण छंद:
दिशि वसु गज युग, गुरु रखकर रच, सुन-गुन लिख-पढ़, कवि -मन कविता।
तम हर रवि लख , जग उठ झटपट, चटपट चटपट,
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