घनाक्षरी
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सच बात जाने बिना, अफ़वाहे सच मान, धमकी जो दे रहे हैं, नादां राजपूत हैं।
सत्य के न न्याय के वे, साथ खड़े हो रहे हैं, मनमानी चाहते हैं, दहशत-दूत हैं।।
जातिवादी सोच हावी, जाने कैसी होगी भावी?, राजनीति के खिलौने, दंभी भी अकूत हैं।
संविधान भूल रहे, अपनों को हूल रहे, सत्पथ भूल रहे, शांति रहे लूट हैं।।
सत्य के न न्याय के वे, साथ खड़े हो रहे हैं, मनमानी चाहते हैं, दहशत-दूत हैं।।
जातिवादी सोच हावी, जाने कैसी होगी भावी?, राजनीति के खिलौने, दंभी भी अकूत हैं।
संविधान भूल रहे, अपनों को हूल रहे, सत्पथ भूल रहे, शांति रहे लूट हैं।।
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