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बुधवार, 29 नवंबर 2017

doha- nar-naree ke

दोहा सलिला
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नारी के दो-दो जगत,
वह दोनों की शान. 
पाती है वरदान वह,
जब हो कन्यादान.
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नारी को माँगे बिना,
मिल जाता नर-दास.
कुल-वधु ले नर दान में,
सहता जग-उपहास.
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दल-बल सह जा दान ले,
भिक्षुक नर हो दीन.
नारी बनती स्वामिनी,
बजा चैन से बीन.
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चीन्ह-चीन्ह आदेश दे,
हक लेती है छीन. 
समता कर सकता न नर,
कोशिश नाहक कीन.
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दो-दो मात्रा अधिक है,
नारी नर से जान.
कुशल चाहता तो कभी,
बैर न उससे ठान.
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यह उसका रहमान है,
वह इसकी रसखान.
उसमें इसकी जान है,
इसमें उसकी जान.
...
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