षट्पदी
*
करे न नर पाणिग्रहण, यदि फैला निज हाथ
नारी-माँग न पा सके, प्रिय सिंदूरी साज?
प्रिय सिंदूरी साज, न सबला त्याग सकेगी
'अबला' 'बला' बने क्या यह वर-दान मँगेंगी ?
करता नर स्वीकार, फजीहत से न डरे
नारी कन्यादान, न दे- वरदान नर करे
***
कवि-कविता की प्रेरणा, मन-मंजूषा साथ
ज्योति कांति आभा प्रभा, क्रांति थामती हाथ
क्रांति थामती हाथ, कल्पना-कांता के संग
अन्नपूर्ण मिथलेश छेड़ती दोहा की जंग
करे साधना 'सलिल' संग हो रजनी सविता
बन तरंग आ जाती है फिर भी संग कविता
***
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करे न नर पाणिग्रहण, यदि फैला निज हाथ
नारी-माँग न पा सके, प्रिय सिंदूरी साज?
प्रिय सिंदूरी साज, न सबला त्याग सकेगी
'अबला' 'बला' बने क्या यह वर-दान मँगेंगी ?
करता नर स्वीकार, फजीहत से न डरे
नारी कन्यादान, न दे- वरदान नर करे
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कवि-कविता की प्रेरणा, मन-मंजूषा साथ
ज्योति कांति आभा प्रभा, क्रांति थामती हाथ
क्रांति थामती हाथ, कल्पना-कांता के संग
अन्नपूर्ण मिथलेश छेड़ती दोहा की जंग
करे साधना 'सलिल' संग हो रजनी सविता
बन तरंग आ जाती है फिर भी संग कविता
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