माहिया
प्राण शर्मा
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क्या तुमको भाती हूँ
जुड़े में अपने
जब फूल सजाती हूँ
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नित मांग सजाती हूँ
सच बतलाना तुम
क्या तुमको भाती हूँ
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जगमग सा करता है
तन पे तुम्हारे प्रिये
हर फूल निखरता है
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जब मांग सजाती हो
सचमुच ,जादू सा
मन पर छा जाती हो
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क्या अच्छी लगती हूँ
पीली साड़ी में
मैं कैसी लगती हूँ
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जब सम्मुख आती हो
सूर्यमुखी जैसी
तुम ख़ूब सुहाती हो
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