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गुरुवार, 7 मई 2009

हास्य दोहे: दोहा श्री ४२० -रामस्वरूप ब्रिजपुरिया, ग्वालियर

१० अप्रैल १९३३ को ग्वालियर में जन्में ब्रिजपुरिया जी १९९१ में उप जिलाध्यक्ष पद से सेना निवृत्ति के बाद से साहित्यसेवा में निमग्न हैं. साद विचार प्रचार अभियान के अन्तर्गर वे ६० पुस्तकें प्रकाशित कराकर निशुल्क वितरित कर चुके हैं. उनके द्वारा जैन ग्रन्थ आदि पुराण का दोहा-चौपाई में ''ऋषभ कथा'' शीर्षक से रचित महाकाव्य बहु प्रशंसित हुआ है. प्रस्तुत है दोहा श्री ४२० के प्रथम १० दोहे.

अंक चार सौ बीस तो, सिर्फ गणित का अंक.
करते अर्थ अनर्थ हैं, माथे लगा कलंक..

ठग औ' धोखेबाज को, कहें चार सौ बीस.
इस क्रमांक पर आ गयी, धारा यह कटपीस..

अब क्रमांक का कुछ नहीं, इसमें यहाँ कुसूर.
क्यों क्रमांक को कह रहे, धोखेबाज हुज़ूर..

लिखे चार सौ बीस ये, दोहे हाथों हाथ.
धोते अंक कलंक रख, दोहा श्री के साथ..

कविगण तो कहते रहे, लिखते हैं दो टूक.
उन पर क्या होगा असर, चाट रहे जो थूक..

फूलों से यह कह रहे, हास्य व्यंग के शूल.
अपनी निज पहचान तुम, कभी न जाना भूल..

बीस चार सौ दोहरे, ज्यों चौसर के दाँव.
देखत में छोटे लगें, देते गहरे घाव..

ब्रम्हा से दोहे बने, बनी विष्णु से टेक.
तेरह-ग्यारह मात्रा, से शिव का अभिषेक..

हास्य-व्यंग को जानिए, ज्यों लड्डू गोपाल.
कहावत में मीठे लगें, जावत पेट बवाल..

हास्य-व्यंग के पात दो, हँसा कबीर देख.
चक्की भी चलती रही, बनी न तन पर रेख..

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