MOTHER
Mother, why have you gone away,
why have you become so helpless,
why your face is faded,
why have you engulfed in darkness,
the light of the house,
where have you gone
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 25 मई 2009
poetry: डॉ. राम शर्मा, मेरठ
चिप्पियाँ Labels:
mother,
POETRY -DR. RAM SHARMA
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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4 टिप्पणियां:
Oh! its a very beautiful and touching poem.I liked it very much.
आचार्य सलिल जी ,मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया ,हम प्राकृतिक सम्पदा बचाने में जुटे हैं ,दिव्य नर्मदा भी तो हमारी संपदा हैं , आपका ब्लॉग अच्छा लगा , विज्ञान विपाशा खाली क्यों है? फिर मेरी गली आईयेगा
जय हिंद
sweet and simple.
I like such simple poetry.
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