फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें.
नहीं गैर का, खुद का तो उपकार करें..
हरी-भरी धरती, शीतल जल हमें मिला।
नील गगन नीचे, यह जीवन-सुमन खिला॥
प्राणदायिनी पवन शुद्ध ले बड़े हुए।
गिरे-उठे, रो-हँस, लड़-मिलकर खड़े हुए॥
सबल हुए तो हरियाली को मिटा दिया.
पेड़ कटते हुए न कांपा तनिक हिया॥
मलिन किया निर्मल जल, मैल बहाया है।
धुंआ विषैला चारों तरफ उड़ाया है॥
शांति-चैन निज हर, कोलाहल-शोर भरा।
पग-पग पर फैलाया है कूड़ा-कचरा..
नियति-नटी के नयनों से जलधार बही।
नहीं पैर धरने को निर्मल जगह रही..
रुकें, विचारें और न अत्याचार करें.
फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें....
सम्हले नहीं अगर तो मिट ही जायेंगे।
शाह मिलने के पहले पिट भी जायेंगे॥
रक्षक कवच मिट रहा है ओजोन का.
तेजाबी वर्षा झेले नर कौन सा?
दूषित फिजा हो रही प्राणों की प्यासी।
हुई जिन्दगी स्वयं मौत की ज्यों दासी..
बिन पानी सब सून, खो गया है पानी।
दूषित जल ले आया, बंजर-वीरानी.
नंगे पर्वत भू ऊसर-वीरान है।
कोलाहल सुन हाय! फट रहा कान है.
पशु भी बदतर जीवन जीने विवश हुए।
मिटे जा रहे नदी, पोखरे, ताल, कुए.
लाइलाज हो रोग-पूर्व उपचार करें।
फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें...
क्या?, क्यों?, कैसे? बिगडा हमें न होश है।
शासन, न्याय, प्रशासन भी मदहोश है.
जनगण-मन को मीत जगना ही होगा।
अंधकार से सूर्य उगाना ही होगा.
पौधे लेकर गोद धरा को हरा करें।
हुई अत्यधिक देर किन्तु अब त्वरा करें..
धूम्र-रहित तकनीक सौर-ऊर्जा की है।
कृत्रिम खाद से अनुपजाऊ की माटी है.
कचरे से कम्पोस्ट बना उर्वरता दें।
वाहन-ईंधन कम कर स्वच्छ हवा हम लें.
कांच, प्लास्टिक, कागज़ फिर उपयोग करें।
सदा स्वच्छ जल, भू हो वह उद्योग करें..
श्वास-आस का 'सलिल' सदा सिंगार करें।
फ़र्ज़ हमारा क्या है?, तनिक विचार करें...
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1 टिप्पणी:
पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करती बेहद उपयोगी रचना.
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