मंदिर में
सलाखों के बीच
इंसानी फितरत से
भगवान कैद में है.
उसी भगवान से मिलने को
उसकी एक झलक पाने को
इंसानों का समूह बेचैन है.
घने ऊंचे पदों में,
पक्षियों के मधुर कोलाहल के बीच
शांत-सौम्य बहती नदी के साथ
ईशवर स्वतंत्र, स्वच्छंद, जीवंत है.
इन्हें बहुत तेजी से
ख़त्म करता हुआ नासमझ इन्सान
अपने ही ईश्वर से
दूर रहने को अभिशप्त है..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 9 मई 2009
कविता: ईश्वर हमारे कितने करीब -डॉ. अनूप निगम, उज्जैन
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कविता: ईश्वर हमारे कितने करीब -डॉ. अनूप निगम
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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2 टिप्पणियां:
such kaha apne ishvar ko cement kankrit ke mandiro me kaid krke rkh diya hai.
कथ्य अच्छा है |
अवनीश तिवारी
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