वक्त बद-वक्त सही
आसमां सख्त सही...
न कोई ठौर-ठिकाना कहीं ज़माने में,
खुशी की ज़िक्र तक बाकी नहीं फ़साने में,
कब से पोशीदा लिए बैठा हूँ इन ज़ख्मों को,
टूटे दिल को तेरे मरहम की ज़रूरत भी नहीं।
अश्क अब सूख चले आँख के समंदर से-
अब गिला तुझसे नहीं दिल से शिकायत भी नहीं।
वक्त बद-वक्त सही आसमां सख्त सही........
वो ढलती शाम का कहना यहीं रुक जाओ तुम,
जाने कल कौन सा अज़ाब लिए आए सहर।
कल आफ़ताब उगे जाने किसका पी के लहू।
जाने कल इम्तिहाने-इश्क पे आ जाए दहर।
आज बस जाओ इस दिल के गरीबखाने में।
न कोई ठौर-ठिकाना कहीं ज़माने में।
वक्त बद-वक्त सही आसमां सख्त सही........
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1 टिप्पणी:
मनु जी! बहुत खूब. आपकी हर रचना अलग रंग-ओ-बू से महमहाती है.
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