दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 14 मई 2009
अमर पंक्तियाँ....
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स्व. रामकृष्ण श्रीवास्तव, जबलपुर
जो कलम सरीखे टूट गए पर झुके नहीं,
उनके आगे यह दुनिया शीश झुकाती है.
जो कलम किसी कीमत पर बेची नहीं गयी,
वह तो मशाल की तरह उठाई जाती है..
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अमर पंक्तियाँ...रामकृष्ण श्रीवास्तव,
कलम,
मशाल,
शीश
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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2 टिप्पणियां:
प्रेरक पंक्तियाँ. पूरा जीवन दर्शन...गागर में सागर, स्व. रामकृष्ण श्रीवास्तव की और रचनाएँ पढना को मिलें तो मजा आ जाये.
prerak panktiyan
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