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सोमवार, 25 मई 2009

काव्य-किरण: गजल -मनु बेतखल्लुस. दिल्ली

बस आदमी से उखडा हुआ आदमी मिले



हमसे कभी तो हँसता हुआ आदमी मिले



इस आदमी की भीड़ में तू भी तलाश कर,



शायद इसी में भटका हुआ आदमी मिले



सब तेजगाम जा रहे हैं जाने किस तरफ़,



कोई कहीं तो ठहरा हुआ आदमी मिले



रौनक भरा ये रात-दिन जगता हुआ शहर



इसमें कहाँ, सुलगता हुआ आदमी मिले



इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी



इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले



बाहर से चहकी दिखती हैं ये मोटरें मगर,



इनमें इन्हीं पे ऐंठा हुआ आदमी मिले।



देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर



गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले



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3 टिप्‍पणियां:

Divya Narmada ने कहा…

एक और सशक्त गजल...आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं?

pramod jain ने कहा…

behatareen.

M.M.Chatterji ने कहा…

achchhee lagee.