गमे-हस्ती के सौ बहाने हैं,
ख़ुद ही अपने पे आजमाने हैं
सर्द रातें गुजारने के लिए,
धूप के गीत गुनगुनाने हैं
कैद सौ आफ़ताब तो कर लूँ,
क्या मुहल्ले के घर जलाने हैं
आ ही जायेंगे वो चराग ढले,
और उनके कहाँ ठिकाने हैं
फ़िक्र पर बंदिशें हजारों हैं,
सोचिये, क्या हसीं जमाने हैं
तुझ सा मशहूर हो नहीं सकता
तुझ से हटकर, मेरे फ़साने हैं
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 20 मई 2009
ग़ज़ल: मनु बेतखल्लुस, दिल्ली
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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4 टिप्पणियां:
jaandar gazal.
बढ़िया है ........... अच्छी गजल है
achchhee lagee.
man ko bhayee
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