मुक्तक
प्रो. सी. बी. श्रीवास्तव विदग्ध
जिस घर की ईटें हैं जुड़ी गारे के प्यार से
दीवारें हैं रंगी हुई शुभ संस्कार से
उसमें कभी तकरार की आंधी नहीं आती
जलते हैं वहां दीप सदा सद्विचार के
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 30 मई 2009
एक मुक्तक
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
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2 टिप्पणियां:
bhut steek vichar.
achha muktak hai ... bahut khoob
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