दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
मंगलवार, 26 मई 2009
गीत - मनोज श्रीवास्तव , लखनऊ
चिप्पियाँ Labels:
गीत,
मनोज श्रीवास्तव,
लखनऊ
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
मनोज जी!
वन्दे-मातरम.
आपके ओजस्वी स्वर में राष्ट्रीय भाव-धारा की रचनाएँ जीवंत हो उठती हैं.
आपका लेखन और वाचन दोनों प्रभावशाली हैं.
दिव्य नर्मदा पर पहली बार रिकॉर्डिंग सुनी. यह प्रयोग सफल है.
आज की तरुण और युवा पीढी के लिए इन रचनाओं की प्रासंगिकता है. कवितायेँ प्रभावित करती हैं.
एक टिप्पणी भेजें