दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 29 मई 2009
भारत के गांव
भारत के गांव
प्रो सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध
सात्विक संतोषी बड़े भारत के सब गांव
जिनकि निधि बस झोपड़ी औ" बरगद की छांव
बसते आये हैं जहां अनपढ़ दीन किसान
जिनके जीवन प्राण पशु खीेत फसल खलिहान
अपने पर्यावरण से जिनको बेहद प्यार
खेती मजदूरी ही है जीवन आधार
सबके साथी नित जहां जंगल खेत मचान
दादा भैया पड़ोसी गाय बैल भगवान
जन मन में मिलता जहां आपस का सद्भाव
खुला हुआ व्यवहार सब कोई न भेद दुराव
दुख सुख में सहयोग की जहां सबों की रीति
सबकी सबसे निकटता सबकी सबसे प्रीति
आ पहुंचे यदि द्वार पै कोई कभी अनजान
होता आदर ातिथि का जैसे हो भगवान
हवा सघन अमराई की देती मधुर मिठास
अपनेपन का जगाती हर मन में विश्वास
मोटी रोटी भी जहां दे चटनी के साथ
सबको ममता बांटता हर गृहणी का हाथ
शहरों से विपरीत है गावो का परिवेश
जग से बिलकुल अलग सा अपना भारत देश
मधुर प्रीति रस से सनी बहती यहां बयार
खिल जाते मन के कमल पा एसा व्यवहार
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
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1 टिप्पणी:
एक सुन्दर और संतुलित रचना |
गावों की याद दिला दी |
अवनीश तिवारी
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