क्षणिकाएँ
सरला खरे, भोपाल
जब देश पर विपत्ति आएगी
तब काम आएगा
विदेशी बैंकों में
संचित किया धन॥
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देश जूझ रहा है,
मंदी की मार है.
सकल देश में
चुनाव की बहार है॥
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क्या पियेंगे पानी?
कैसे कटेंगी रातें?
बिन पानी सब सून।
बिन बिजली सब अँधेरा॥
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पहले भी थे मंत्री,
सरकार भी थी जोरदार।
आगे भी आयेंगे,
ऐसे ही कर्णधार?
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वादा है- छवि सुधारेंगे।
जिनसे वोट खरीदे है,
उन्हीं को तो तारेंगे॥
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 26 मई 2009
काव्य-किरण
चिप्पियाँ Labels:
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देश,
पाने,
मंदी,
विदेशी बैंक,
विपत्ति,
वोट
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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3 टिप्पणियां:
rochak kshanikayen.
Pathneeya hain.
पोल खोलक भावनाएं
जो भावनाओं में ही
खनक पैदा कर दें
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