दोहांजलि:
वीरांगनाओं के प्रति
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वीरांगना शतश: नमन, नत मस्तक हम आज।
त्याग तुम्हारा अपरिमित, रखी देश की लाज।
स्वामी, सुत, पितु, भ्रात को, तुमने कर बलिदान।
बचा-बढ़ाई देश की, युगों-युगों से शान।
रक्षित कर निज देश को, उन्नत रखतीं माथ।
गाथा जनगण गा रहा, रहे शीश पर हाथ।
दुर्गा, लक्ष्मी, चेन्नम्मा, रचें नया इतिहास।
प्राण लुटाये देश पर, प्रसरित कीर्ति-उजास।
जीजा बाई ने जना, शिवा सरीखा शूर।
भारत माँ के मुकुट का, रत्न अपरिमित नूर।
लक्ष्मीबाई ब्रिगेड ने, खूब मचाई धूम।
दिल दहले अँगरेज़ के, देश गया था झूम।
तुमने गवाँ सुहाग निज, बचा लिया है देश।
उऋण न हो सकते कभी, हम सब ऋण से लेश।
प्रिय शहीद के शौर्य की, याद बनी पाथेय।
उस के सुत को उसी सा, बना सको है ध्येय।
त्याग-तपस्या अपरिमित, तुम करुणा की मूर्ति।
नहीं अभावों की तनिक, कोई कर सके पूर्ति।
तव चरणों में स्वर्ग है, माने-पूजे नित्य।
तभी देश यह हो सके, रक्षित और अनित्य।
भारत माँ साकार तुम, दो सबको वरदान।
तव चरणों में हो सके, 'सलिल' विहँस बलिदान।
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