कविता
ऐसा क्यों?...
शोभना चौरे
ऐसा क्यो होता है ?
जहाँ 'फूल तोड़ना मना है'
लिखा है
हम वहीं पर
सबसे ज्यादा फूल तोड़ते है
जहाँ वाहन खडा करना वर्जित हो,
वनीं सर्वाधिक गाडियां खड़ी होती हैं
जहाँ धूम्रपान 'वर्जित है,
वहीं तथाकथित भद्रजन
धुएँ के छल्ले उडाते देखे जाते हैं
जहाँ कचरा फेंकना मना है,
वहीं पर
घर और शहर कचरा फेकते हैं,
डब्बे में पेट्रोल ले जाना मना है,
तो पेट्रोल पम्प पर धड़ल्ले से
डब्बे में पेट्रोल भरते देखे जा सकते हैं.
हम समझना ही नहीन चाहते
मन्दिर की शान्ति को सराहते हैं,
परन्तु
जूतों की गंदगी
वहाँ भी फैला ही आते हैं.
आप ही बताएन
ऐसा क्यों होता है?
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 8 मई 2009
शोभना चौरे
चिप्पियाँ Labels:
कचरा,
धुएँ,
पर्यावरण प्रदूषण,
वाहन,
शोभना चौरे
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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