रात की मटमैली रजाई अपने मुँह पर से दूर हटाकर ऊषा ने एक बात उछाली- 'ओ पापा! तन तुम्हारा कोयले से भी अधिक काला है।'
                  मैं जल उठ कोयले सा। कसकर एक तमाचा ऊषा के गाल पर जमा दिया। एक लाल-लाल फफोला उभर आया ऊषा के गाल पर।
                 वह चुप रही, पर उसकी आँखों से गिरे आँसू चीख-चीखकर कह रहे थे- 'अरे पापी! मन तुम्हारा कोयले से भी अधिक काला है।'
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1 टिप्पणी:
जीवन दर्शन समेटे सशक्त लघुकथा.
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