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शुक्रवार, 15 मई 2009

नव गीत: -आचार्य संजीव 'सलिल'

कहीं धूप क्यों?,
कहीं छाँव क्यों??...

सबमें तेरा
अंश समाया।
फ़िर क्यों
भरमाती है काया?

जब पाते तब
खोते हैं क्यों?,
जब खोते-
तब पाते- पाया।

अपने चलते
सतत दाँव क्यों?...

नीचे-ऊपर
ऊपर-नीचे।
झूलें सब,
तू डोरी खींचे।

कोई हँसता,
कोई डरता।
कोई रोये
अँखियाँ मींचे।

चंचल-घायल
हुए पाँव क्यों?...

तन पिंजरे में
मन बेगाना।
श्वास-आस का
ताना-बाना।

बुनता-गुनता,
चुप सर धुनता।
तू परखे, दे
संकट नाना।

सूना पनघट,
मौन गाँव क्यों?...

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4 टिप्‍पणियां:

dr. prarthana nigam, ujjain ने कहा…

सरस, मधुर नवगीत पढ़कर आनंद आ गया. वाह...

udantashtaree ने कहा…

मौन गाँव क्यों?...एक गहन प्रश्न उठता गीत...बहुत उम्दा!!

dr. Smt. ajit gupta ने कहा…

श्रेष्ठ रचना...बधाई!

शोभना चौरे ने कहा…

steek rachna.
badhai